बाबा रामदेव इस समय शांत हैं। लगता है उन्होंने जिस क्रांति की इच्छा की थी वह हो गयी है। वह अलग बात है कि देश का काला धन आज भी विदेशों में ही है, देश में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, भूख, अशिक्षा, बेरोजगारी आदि पूर्ववत मुंहबाए खड़ी हैं। इस पर बाबा की कडक़ आवाज शांत है। क्या बात है- कुछ समझ नही आता।
माना कि मोदी की सरकार को देश की समस्याओं के समाधान के लिए कुछ समय देने की आवश्यकता है, पर इसका अभिप्राय यह तो नही कि बाबा रामदेव चुप घर में बैठ जाएं। उन्हें आज सरकार जब समर्थन मिल रहा है तब तो और भी अच्छी कार्ययोजना को लेकर उन्हें मैदान में उतरना चाहिए था। परंतु बाबा ने अपनी ऐसी कोई कार्ययोजना घोषित नही की। यह निष्क्रियता भी है, यथास्थितिवाद भी है, प्रमाद भी है और लोगों के साथ किया जाने वाला ‘वचनभंग’ भी है। ‘वचनभंग’ इसे इसलिए कहना चाहिए कि बाबा ने अपने करोड़ों अनुयायियों को उस समय मोदी के समर्थन में लाकर इसलिए खड़ा किया था कि तुम मोदी के साथ आओ, देश का कल्याण होगा। उस ‘कल्याण’ की कामना छले गये लोगों के लिए बाबा के पास आज एक विस्तृत कार्ययोजना होनी चाहिए थी।
किसी भी सरकार के पास नौकरशाही वही होती है जो उसे पहली सरकार से मिलती है। इस नौकरशाही में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो पिछली सरकार से प्रभावित होते हैं। इसलिए ये लोग नई सरकार के कार्यों में ‘असहयोग’ करने का प्रयास करते हैं। 1947 से लेकर 2014 तक देश में जब भी सरकारें बदलीं हैं नौकरशाही ने ऐसे असहयोग का प्रदर्शन करने में कोई कमी नही छोड़ी है। इसलिए बाबा रामदेव को अपने समर्पित संगठन ‘भारत स्वाभिमान ट्रस्ट’ के लोगों को इस समय मैदान में उतारकर क्रांति को अंजाम देना चाहिए था। परंतु बाबा ने इन सब लोगों को अपने उत्पादों के वितरण लाइसेंस दे देकर ‘भारत स्वाभिमान ट्रस्ट’ का व्यावसायीकरण कर दिया। इसलिए क्रांति की शक्ति रखने वाला बाबा रामदेव नामक व्यक्ति ‘भ्रांति’ में फंसकर रह गया। जिस बाबा रामदेव में लोग क्रांति पुरूष का रूप देखते थे वही बाबा रामदेव अब भ्रांतिपुरूष बनते जा रहे हैं।
अपने भ्रांति पुरूष होने का प्रमाण बाबा रामदेव सावन माह में शिवजी के महात्म्य पर अपने विचार रखते हुए दिया है। उन्होंने कहा है कि इस माह में धतूरे भांग आदि से शिव की भक्ति करना लाभदायक होता है। शिव के इस प्रकार महमामंडन से बाबा रामदेव की वह कलई खुल गयी है जिसे वे यह कहकर लपेटे हुए थे कि वह महर्षि दयानंद के अधूरे मिशन को आगे बढ़ाना चाहते हैं। बाबा रामदेव को यह स्पष्ट करना चाहिए कि उन्होंने शिव भक्ति के लिए जो कुछ कहा है वह वेदसंगत कैसे है? उन्होंने भ्रांतियों केा जन्म देकर वैदिक संस्कृतिक का अहित किया है और महर्षि दयानंद के साथ वैसा ही व्यवहार किया है जैसा उन्होंने दिल्ली में एक बार भव्य वस्त्र त्यागकर महिलाओं के वस्त्र पहनकर अपने भगवा रूप के प्रति किया था। उन्होंने आज पुन: वैदिक भगवे के सत्य सनातन स्वरूप को पाखण्डवाद में फंसाकर मानो पुन: महिलाओं के वस्त्र पहने हैं। बाबा जी! यह क्रम कब तक चलेगा? आर्यसमाज को और महर्षि दयानंद के अनुयायियों को बाबा रामदेव से अब कोई अपेक्षा नही पालनी चाहिए। उन पर अविश्वास तो पूर्व में भी था पर अब उन्होंने अपनी सच्चाई सबके सामने रख दी है, कि वह विचारधारा के धरातल पर कितने निर्बल हैं? वह केवल आसन करना कराना जानते हैं, अष्टांग योग के वह ना तो प्रतिपादक हैं और ना ही ज्ञाता। वह व्यापारी हैं, और एक व्यापारी से देश का कभी भला नही हो सकता।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।