भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र ज्येष्ठ पुत्र हैं कार्तिकेय, जिन्हें दक्षिण भारत में मुरुगन और स्कंद भी कहा जाता है। यह देवताओं के सेनापति हैं। भारत के अलावा भगवान मुरुगन को विश्व में श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर आदि में भी पूजा जाता है। पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान की पूजा का विशेष महत्व है। लेकिन कार्तिकेय को उनका माता पार्वती ने शाप दिया था।
ऐसे हुआ शिव-पार्वती विवाह
स्कंद पुराण के अनुसार कार्तिकेय की जन्म तारकासुर के वध के लिए हुआ था। दरअसल जब भगवान शिव की पत्नी सती अपने पिता दक्ष के यहां आयोजित एक यज्ञ समारोह में बिन बुलाए पहुंच गईं। तब राजा दक्ष ने भगवान शिव का अपमान किया। इससे दु:खी होकर सती यज्ञ की अग्नि में ही आत्मदाह कर लेती हैं। उनके ऐसा करने से सृष्टि शक्तिहीन हो जाती है। ऐसे में सभी देवता भगवान ब्रह्माजी के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करते हैं।
तब ब्रह्माजी तारकासुर के अंत के बारे में बताते हैं कि तारकासुर का अंत सिर्फ भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है। परंतु सती के अंत के पश्चात भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं। इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं।
तब भगवान शंकर पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेते हैं और पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होते हैं और इस तरह शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है। कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं।
जब मां ने दिया पुत्र का शाप
एक बार भगवान शिव ने पार्वती के साथ चौसर खेलने की चाह प्रकट की। खेल में भगवान शंकर अपना सब कुछ हार गए। हारने के बाद भोलेनाथ अपनी लीला को रचते हुए पत्तों के वस्त्र पहनकर गंगा के तट पर चले गए।
कार्तिकेय जी को जब सारी बात पता चली, तो वह माता पार्वती से समस्त वस्तुएं वापस लेने आए। इस बार खेल में पार्वती हार गईं तथा कार्तिकेय शंकर जी का सारा सामान लेकर वापस चले गए। इधर पार्वती भी परेशान थीं कि सारा सामान भी गया तथा पति भी दूर हो गए। पार्वती जी ने अपनी व्यथा अपने प्रिय पुत्र गणेश को बताई तो मातृ भक्त गणेश जी स्वयं खेल खेलने शंकर भगवान के पास पहुंचे।
गणेश जी जीत गए तथा लौटकर अपनी जीत का समाचार माता को सुनाया। इस पर पार्वती बोलीं कि उन्हें अपने पिता को साथ लेकर आना चाहिए था। गणेश फिर भोलेनाथ की खोज करने निकल गए।
भगवान शिव उन्हें हरिद्वार में मिले। उस समय भगवान शिव, भगवान विष्णु व कार्तिकेय के साथ भ्रमण कर रहे थे। पार्वती से नाराज शंकरजी ने लौटने से मना कर दिया। इधर भगवान विष्णु ने भगवान शिव की इच्छा से पासा का रूप धारण कर लिया। गणेश जी ने माता के उदास होने की बात शंकरजी को कह सुनाई। इस पर शंकरजी बोले कि हमने नया पासा बनवाया है, अगर तुम्हारी माता पुन: खेल खेलने को सहमत हों, तो मैं वापस चल सकता हूं।
गणेश जी के आश्वासन पर शंकरजी वापस पार्वती के पास पहुंचे तथा खेल खेलने को कहा। इस पर पार्वती हंस पड़ी और बोलीं, अभी पास क्या चीज़ है, जिससे खेल खेला जाए। यह सुनकर शंकरजी चुप हो गए।
इस पर नारद ने अपनी वीणा आदि सामग्री उन्हें दी। इस खेल में शंकरजी हर बार जीतने लगे। एक दो पासे फैंकने के बाद गणेश जी समझ गए तथा उन्होंने भगवान विष्णु के पासा रूप धारण करने का रहस्य माता पार्वती को बता दिया। सारी बात सुनकर पार्वती जी को क्रोध आ गया। तब उन्होंने शंकरजी को शाप दे दिया कि गंगा की धारा का बोझ उनके सिर पर रहेगा। नारद को कभी एक स्थान पर न टिकने का शाप मिला।
भगवान विष्णु को शाप दिया कि त्रेतायुग में रावण तुम्हारा शत्रु होगा। कार्तिकेय को भी माता पार्वती ने हमेशा बाल्यवस्था में रहने का शाप दिया दे दिया। इस तरह यह कहानी जन्म जन्मांतर तक आगे बढ़ती गई और पुराणों में उल्लेखित होती गई।