इस क्रांति को तो अंग्रेजों ने बड़ी ही बर्बरता से कुचल डाला, लेकिन इस क्रांति ने आने वाले दिनों के लिए भारतीय अवाम को एक नई दिशा दी। जवाहरलाल नेहरू ने भी इस क्रांति की चर्चा करते हुए भारत एक खोज में लिखा है-यद्यपि इस क्रांति से देश के केवल कुछ ही हिस्से प्रभावित हो पाये, पर इसने समूचे भारत तथा विशेष रूप से ब्रिटिश प्रशासन को हिला दिया। इस क्रांति ने जहां एक ओर ब्रिटिश राज के सामाजिक आधार की कमजोरियों को उजागर किया वहन् दूसरी ओर अंग्रेजों के प्रति आम जनता की ओर घृणा और असंतोष को भी व्यक्त किया।
ब्रिटिश संसद ने 1858 में भारत सरकार अधिनियम पारित किया, राजसत्ता ईस्ट इंडिया कंपनी से ब्रिटिश ताज को हस्तांतरित कर दी गयी। सेना का पुनगर्ठन किया गया ताकि भविष्य में ऐसी बगावत न हो पाए।
लेकिन ब्रिटिश संसद ने यह भी समझ लिया कि बिना विकास परियोजनाओं के जनता का दिल विकास परियोजनाओं के जनता का दिल जीतना बहुत ही मुश्किल होगा। प्रशासन में कई अपेक्षित सुधार तत्काल करने होंगे। दूसरी ओर ब्रिटिश राजसत्ता के मत में एक बात घर कर गयी कि इस क्रांति से स्वाभिमान और संघर्ष की नई कोंपले देर सबेर फूटेंगी जरूर। इसलिए जहां तक हो सके और जितना हो सके, भारतीय संपदा का दोहन कर लिया जाए। भारत ब्रिटेन के तैयार माल के लिए बहुत बड़ी मंडी के रूप में परिवर्तित हो गया। भारतीय कपास की मांग बढ़ी और यहां से बड़ी मात्रा में कपास निर्यात होने लगा। कहा जा सकता है कि व्यापारिक लिहाज से भारत का जमकर शोषण किया जाने लगा।
लेकिन इस क्रांति का सबसे अहम परिणाम रहा भारतीयों के मन में बगावत के बीच बोना। लोगों को लगने लगा कि जब मुट्ठी भर सिपाही और कुछ प्रांतों के जननायक इतना बड़ा बलवा खड़ा कर सकते हैं और ब्रिटिश राज से लोहा ले सकते हैं तो फिर हम क्यों नही।
सबके मन में कहीं न कहीं यह बात बैठ गयी कि अगर सभी मिलकर लड़ें तो अंग्रेजों को देश से निकाला जा सकता है।
यातायात संचार के क्षेत्र में तेजी से विकास हुआ और ब्रिटिश पूंजी पर आधारित उद्योगों की स्थापना हुई। इससे भारतीय धनिकों में भी अपना उद्योग लगाने की इच्छा बलवती हुई। आगे चलकर इसी इच्छा के बूते स्वदेशी उद्योग स्थापित हुए।
क्रांति के बाद भी क्रांति से जुड़ी घटनाएं देश के कोने कोने तक सुनी सुनाई जाती रहीं। क्रांति के नायकों की वीरता का बखान होता होता रहा। इससे लोगों के मन में देशभक्ति की भावना को संचार हुआ और अंग्रेजों को अपना स्वामी मान लेने की प्रवृत्ति सवालों के घेरे में आ गयी। खासकर नई पीढ़ी में नया जोश पैदा हुआ। क्रांति वीरों की गाथाओं ने नवजवानों के मन मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ी। (साभार)