कश्मीर में लक्षयित हिंसा खेलता हिंदू

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प्रभुनाथ शुक्ल

दक्षिण एशिया में चरमपंथ और अतिवाद को खूब खाद-पानी मिल रहा है। अफगान में तालिबानी संस्करण आने के बाद आतंकवाद को ‘सेफ्टी ऑक्सीजन’ मिल गया है। अफगानिस्तान में तख्तापलट के बाद आतंकवाद के हौसले बुलंद हैं। आतंकवाद पूरी दुनिया का तालिबानीकरण करना चाहता है। कश्मीर घाटी में ‘हिन्दुओं की टारगेट किलिंग’ इसी तरफ इशारा करती है। आतंकवादी संगठन कश्मीर को छोटा तालिबान बनाना चाहते है। हालांकि तालिबानी सरकार ने साफ तौर पर कई बार यह संकेत दिया है कि वह किसी भी देश के अंदरूनी मामले में दखल नहीं करेगा, लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ दिखता नहीं है। पाकिस्तान में फैली आतंक की नर्सरी कश्मीर में अल्पसंख्य हिन्दुओं और सिखों का कत्ल तालिबानी संस्कृति की एक तरह से लान्चिंग है।
कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद हिन्दुओं की हत्याएं बेहद खतरनाक मंसूबों की तरफ इशारा करती हैं। सवाल उठता है कि कश्मीर क्या कभी अपनी रौ में वापस लौटेगा। भारत के लिए यह बड़ा सवाल है। अगर हम पंजाब में आतंकवाद को समूल नष्ट कर सकते हैं तो कश्मीर में क्यों नहीं? यह हमारी सत्ता और सरकारों के लिए आत्म विश्लेषण का विषय है। हम सर्जिकल स्ट्राइक की घुड़की देकर आतंकवाद से मुकाबला नहीं कर सकते हैं। हमें सियासी नफे-नुकसान को किनारे रख कर कश्मीर पर निर्णायक फैसले और दृढ़ इच्छा शक्ति दिखाने की जरूरत है। आतंकवाद पर पाकिस्तान को कब तक करते रहेंगे यह जानते हुए भी कि वह अपनी आदत से बाज आने वाला नहीं।
कश्मीर में आतंकवाद की लड़ाई में कब तक हमारे सैनिक शहीद होते रहेंगे। आतंकवाद के मसले को लेकर अगर पाकिस्तान हमारे लिए चुनौती है तो उसके खिलाफ हमें निर्णय लेने की आवश्यकता है। घाटी में आतंकवाद का फन हमें किसी भी तरीके से कुछ चलना होगा जिस तरह हमने पंजाब में कुचला। घाटी में हिंदुओं की हत्या पर कश्मीर के राजनीतिक दल और संगठन चुप्पी साधे हैं। अतिवाद, कश्मीरियत और उसकी संस्कृति एवं सभ्यता को नंगा कर रहा है। आम कश्मीरी आवाम को इसके लिए लामबंद होना पड़ेगा। आम कश्मीरियों के बीच जो आतंकवादी पनाह बनाए हुए हैं उस अड्डे को खत्म करना होगा।

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने एक बेहद अहम सवाल उठाया है। उन्होंने साफ तौर से इशारा किया है कि दक्षिण एशिया में ‘इस्लामिक एजेंडा’ काम कर रहा है। कश्मीर से लेकर बांग्लादेश तक हिंदुओं की हत्या की जा रही है। निश्चित रूप से यह अहम सवाल है। कश्मीर में गैर इस्लामिक धर्म के लोगों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है। आतंकवादी, हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों की हत्याएं क्यों कर रहे हैं। चरमपंथी इस नीति से पूरी दुनिया में इस्लाम और आम कश्मीरी मुसलमानों को खुश करना चाहते हैं। उन्हें संदेश देना चाहते हैं कि हमारी लड़ाई आम कश्मीरी नागरिकों के खिलाफ नहीं, लेकिन हम यहां किसी गैर अल्पसंख्यक समुदायक की दखल बर्दाश्त नहीं कर सकते।
बांग्लादेश में भी नवरात्र के दौरान पूजा पंडालों पर हमले किए गए। हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया गया। इस्कॉन टेंपल में आतंकवादियों ने हमला कर दिया। जिसकी वजह से एक व्यक्ति की मौत हो गई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए। जिस बांग्लादेश को कभी भारत ने पाकिस्तान से अलग कर उसे पाकिस्तान के दमन से आजादी दिलाई आज वहीं भारत के खिलाफ खड़ा दिख रहा है। बांग्लादेश में हिंदू धार्मिक स्थलों और हिंदुओं की हत्या साफ तौर पर जाहिर करती है कि वहां बांग्लादेश भी हिंदुत्व और हिंदुओं के खिलाफ चरमपंथ की जमीन मजबूत हो रही है।
कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यकों पर आतंकी हमले पूर्व नियोजित है। आतंकवादियों के दिमाग में है कि हिंदू अल्पसंख्यकों एवं सिखों की हत्या कर उन्हें बड़ा फायदा होने वाला है। क्योंकि ‘टारगेट किलिंग्स’ से घाटी में एक बार फिर दहशत और भय की वजह से पलायन शुरू हो सकता है। यह पलायन ठीक उसी तरह होगा जिस तरह सालों पूर्व कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़ना पड़ा था। कश्मीर में आतंकवाद से निपटना आसान नहीं है। क्योंकि वहां तालिबान और पाकिस्तान का एजेंडा चलता है। आम कश्मीरी जो कश्मीरियत में विश्वास करते हैं उस संस्कृत में रचे बसे हैं वह कत्लेआम नहीं चाहते हैं।
कश्मीर के अलगाववादी संगठन, राजनीतिक दल और राजनेता धारा 370 के खात्मे से खुश नहीं है। क्योंकि उनकी अघोषित आजादी छीन गई है। घाटी में भारतीय फौजों की कदमताल को वे पसंद नहीं करते हैं। खुलेआम पाकिस्तान का समर्थन करते हैं और कश्मीर को भारत से अलग मानते हैं। सुरक्षाबलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती आम कश्मीरियों के बीच रहने वाले आतंकवादी हैं। जब तक कश्मीर का आम नागरिक आतंकवाद के खिलाफ उठ खड़ा नहीं होगा तब तक घाटी से आतंकवाद का सफाया होना मुश्किल है। क्योंकि कश्मीर में पाकिस्तान के साथ दुनिया की अतिवादी ताकतें काम कर रहीं हैं। कश्मीर के जरिए भारत में वह अपना एजेंडा लागू करना चाहती हैं।
कश्मीर घाटी में तीन दशक से आतंकवाद फल फूल रहा है। आतंकवाद के समूल सफाए के लिए भारत की फौज और सरकारों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार घाटी में अब तक 14000 आम नागरिकों की हत्या हुई है। 5300 से अधिक भारतीय फौज के जवान शहीद हुए हैं। 70,000 से अधिक आतंकी हमले हुए हैं। हमारी सेना ने आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देते हुए 2500 से अधिक आतंकवादियों को मार गिराया है। साल 2021 से अब तक 30 कश्मीरी नागरिकों की हत्या हुई है। पाकिस्तान आतंकवाद के जरिए कश्मीर में इस्लामिक एजेंडा लागू करना चाहता है। वह हिंदुओं व सिखों की हत्या कर कश्मीरीयत को खत्म करना चाहता है।कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति मानती है कि कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर अभी बहुत कुछ नहीं हो पा रहा है। कश्मीरी पंडितों को अभी तक सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है। 90 के दशक में सरकारी नौकरियों में कश्मीरी पंडितों का बोलबाला होता था। 60 से 70 फीसदी कश्मीरी पंडित सरकारी नौकरियों में हुआ करते थे।
कश्मीर में आतंकवादी हिंदुओं की शिनाख्त आधार कार्ड से कर रहे हैं। अक्टूबर के पहले सप्ताह में आतंकवादियों ने कश्मीरी पंडित और हिन्दू चिकित्सक बिंद्रु की हत्या कर दिया। जबकि बिंद्रु आम कश्मीरियों के लिए किसी मसीहा से कम नहीं थे। उन्होंने कभी हिन्दू और मुसलमान में फर्क नहीं किया। वह चुनौतियों को सामाना करते हुए कश्मीर कभी नहीं छोड़ा। प्रवासी मजदूरों की भी हत्या की गई। उस महिला प्रिंसिपल की भी हत्या कर दी गई जिसने एक मुसलमान बच्चे को शिक्षा के लिए गोद लिया था। कश्मीर से अब तक लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडित पलायन कर चुके हैं। आज भी वहां 800 से अधिक कश्मीरी हिंदू का परिवार रहता है। एक आंकड़े के अनुसार 1990 से लेकर अब तक 730 से अधिक कश्मीरी पंडितों की हत्या की जा चुकी है। घाटी में सेना और हिंदुओं का कत्लेआम कर सीधे हिंदुत्व को चुनौती देने की कोशिश है। अब वक्त आ गया है जब आतंकवाद पर निर्णायक फैसले की जरूरत है।

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