प्रणव प्रियदर्शी
बहुचर्चित आर्यन खान ड्रग्स केस में गुरुवार को मुंबई की एक विशेष अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया। दशहरे की छुट्टियों की वजह से बीच में कोर्ट बंद रहेगा। सो, यह तय हो गया है कि आर्यन अब कम से कम 20 अक्टूबर तक तो जेल में ही रहेंगे।
मामला ड्रग्स की जब्ती से जुड़ा है और ऐसे आपराधिक मामलों में केस के मेरिट पर कोई टिप्पणी इस स्टेज में नहीं की जा सकती। मगर, न तो यह ड्रग्स से जुड़ा कोई पहला मामला है, न ही फिल्मी दुनिया से जुड़ी कोई शख्सियत पहली बार ऐसे विवाद में आई है। यह मामला भी बॉलिवुड के सबसे बड़े सुपर स्टार शाहरुख खान के बेटे से जुड़ा होने के कारण पहले ही दिन से चर्चा में है। इसलिए दोषी या निर्दोष होने के सवाल को फिलहाल छोड़ दिया जाए, तब भी यह महत्वपूर्ण सवाल बना रहता है कि देश, दुनिया के अलग-अलग हिस्से इस मामले को किस रूप में देख रहे हैं। यह राय इस खास मामले से जुड़े तथ्यों में कोई बदलाव नहीं ला सकती, लेकिन इससे यह जरूर पता चलता है कि फिल्म इंडस्ट्री, इससे जुड़ी सिलेब्रिटीज, हमारी जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता और उनके सही या गलत इस्तेमाल के बारे में आम धारणा किस तरह की शक्ल ले रही है। सबसे बड़ी बात, खुद फिल्म इंडस्ट्री इस तरह की कार्रवाई के बारे में क्या सोच रही है। उसके और शासन व्यवस्था के संबंधों पर ऐसी एकाध घटनाओं का कोई गंभीर प्रभाव तो नहीं पड़ सकता, लेकिन शासन व्यवस्था की उसके बारे में और उसकी शासन व्यवस्था की कार्यशैली के बारे में धारणा अगर इनसे थोड़ी भी प्रभावित हो रही हो, तो यह निश्चित रूप से गौर करने लायक बात है क्योंकि इसका प्रभाव काफी दूर तक जाएगा।
बात फिल्म इंडस्ट्री को लेकर शासन व्यवस्था की धारणा की हो या शासन व्यवस्था के प्रति फिल्म इंडस्ट्री की राय की, दोनों में थोड़ी-बहुत असहजता शुरू से रही है। इसके बावजूद फिल्म इंडस्ट्री इसी शासन-प्रशासन व राजनीतिक तंत्र में फलती-फूलती रही। इक्का दुक्का लोगों के कुछ नेताओं अफसरों से खट्टे मीठे रिश्ते रहे, लेकिन संपूर्णता में कभी कोई बड़ी दिक्कत नहीं आई।
लेकिन पिछले कुछ समय से दिक्कतें लगातार आ रही हैं। न केवल इंडस्ट्री का एक हिस्सा इसी के दूसरे वर्ग के खिलाफ विषवमन करता रहा है बल्कि उसे सत्तारूढ़ हलकों के एक तबके का समर्थन भी मिलता रहा है। निस्संदेह, इस पक्ष-विपक्ष की बहस का एक हिस्सा वैचारिक है। यह भी गौर करने की बात है कि आम तौर पर वैचारिक मामलों में मुखरता से संकोच करने वाली फिल्म इंडस्ट्री में इस बीच ऐसे कई लोग आए और बेहतरीन काम से अपनी जगह बनाई, जो वैचारिक तौर पर भी खासे मुखर रहे हैं। मगर बात वैचारिक ध्रुवीकरण की प्रक्रिया के तहत होने वाले हमलों और प्रति हमलों की ही नहीं है। सत्तारूढ़ हलकों की तरफ से फिल्म के कंटेंट को कंट्रोल करने की कोशिशें भी सामान्य से कहीं ज्यादा हो गई हैं। ‘मिर्जापुर’ और ‘तांडव’ जैसे कई वेबसीरीज के कंटेंट को लेकर मामले दर्ज किए गए।
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मगर इन सब पर हावी रहा सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद चला अभियान। रिया चक्रवर्ती और शोविक चक्रवर्ती की गिरफ्तारी के बाद फिल्म इंडस्ट्री के ड्रग्स कनेक्शन को लेकर जिस तरह का हौवा खड़ा किया गया, उसने पूरी इंडस्ट्री को हिला दिया। रवि किशन समेत सत्तारूढ़ दल के कई सांसदों और प्रभावशाली व्यक्तियों के बयान साफ बता रहे थे कि मामला सिर्फ मीडिया के अभियान का नहीं है। फिल्म इंडस्ट्री की देर रात होने वाली पार्टियों को लेकर भी तरह-तरह की बातें होने लगीं। करण जौहर के घर की एक पार्टी से जुड़े विडियो को भी निशाना बनाया गया। कुल मिलाकर संदेश यह गया कि इंडस्ट्री में कोई भी सुरक्षित नहीं है।
अब आर्यन खान को लेकर जो विवाद हुआ है, उसका भी एक खास संदर्भ है। लंदन में रह रहे अंग्रेजी के जाने-माने लेखक आतिश तासीर ने आर्यन की गिरफ्तारी के कुछ दिन बाद इस खास संदर्भ की तरफ इशारा करते हुए ट्वीट किया, ‘खान्स को लेकर खौफनाक बात यह है कि ये सब कितना पूर्व नियोजित लगता है। 2015 में मैं एक बुक लॉन्च में था, जब आरएसएस के एक सीनियर आइडियोलॉग ने मेरी मां (वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह) से साफ-साफ कहा, ‘इनको तो हटाना ही है।’ इसके बाद जोड़ा कि उनके अपने सिक्स पैक वाले हीरो हैं, इनकी जगह लेने को। अब यह मजाक नहीं लगता।’ प्रसंगवश, आतिश जहां मोदी सरकार के मुखर विरोधी रहे हैं, वहीं तवलीन सिंह हाल तक मोदी सरकार के समर्थन में लिखती रहीं। नवंबर 2019 में बेटे आतिश का ओसीआई स्टेटस समाप्त किए जाने के बाद से वह भी सरकार के खिलाफ हो गई हैं।
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बहरहाल, सवाल यह नहीं है कि आर्यन के इस मामले में खान को लेकर हिंदुत्ववादी हलकों में लंबे समय से कायम पूर्वाग्रह की कोई भूमिका है या नहीं। सवाल यह है कि जिस आशंका की ओर आतिश तासीर ने इशारा किया है क्या खुद शाहरुख खान के मन में वह बात नहीं होगी? और क्या फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े अन्य लोगों के मन में यह बात नहीं होगी? अगर हां तो क्या वे इस कार्रवाई को महज ‘खान्स’ पर हमला मान कर चुप रहेंगे या इसे पूरी इंडस्ट्री पर हमला भी मान सकते हैं?
ध्यान रखना चाहिए कि आज भी फिल्म इंडस्ट्री देश की सबसे सेकुलर जगह है। यहां उस तरह का विभाजन नहीं है और निकट भविष्य में हो भी नहीं सकता जैसा समाज के कुछ अन्य हिस्सों में दिखने लगा है। पिछले तीन दशकों से खान्स की जो जगह बॉलिवुड में बनी हुई है, उसे देखते हुए अगर कोई इस कार्रवाई को सोचे-समझे हमले के रूप में लेगा तो निश्चित रूप से इसे इंडस्ट्री के इस्टैब्लिशमेंट पर हमला मानेगा। इंडस्ट्री इसे क्या मानती है और इस पर आखिरकार कैसे रिएक्ट करेगी यह स्पष्ट होने में थोड़ा वक्त लगेगा। फिलहाल तो सबका ध्यान इसी बात पर है कि आर्यन को जमानत कब मिलती है।
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