राहुल गांधी के विषय में यह सर्वमान्य सत्य है कि वह बिना प्रमाणों के बोलते हैं। जबकि बोलने से ही सब कुछ नही हो जाता है। बोलने के लिए अध्ययन करना पड़ता है, तथ्य और प्रमाण एकत्र करने पड़ते हैं, चिंतन करना पड़ता है, सारी रात भर जागना पड़ता है। देखना यह भी होता है कि आगे से बोलने वाला कौन है? निश्चित रूप से अरूण और सुषमा यदि सामने थे तो कांग्रेस की ओर से राहुल गांधी को विशेष तैयारी करके आना चाहिए था। सारे प्रकरण पर देश खडग़े को नही राहुल को सुनना चाहता था। क्योंकि आरोप वह लगा रहे थे और विदेशमंत्री के ‘दुराचरण और गैन कानूनी कृत्य’ की सारी पोल राहुल को ही खोलनी चाहिए थी। पर उन्होंने देश का 261 करोड़ रूपया संसद की कार्यवाही पर ऐसे ही व्यय कराकर देश का केवल ‘आउल’ बनाया, यह राहुल ने अच्छा नही किया।
राहुल गांधी ने भाजपा को घेरने के लिए चक्रव्यूह रचना चाहा था। पर समय ने सिद्घ कर दिया कि राहुल चक्रव्यूह के विषय में कुछ नही जानते। उन्होंने जिस चक्रव्यूह की रचना करने का प्रयास किया उसके लिए वह तो प्रयास ही करते रहे और अपने विरोधी सत्तापक्ष को अपने विरूद्घ ही चक्रव्यूह रचने का अवसर प्रदान कर दिया। राहुल धरने पर बैठे रहे और सरकार ने ‘बच्चू’ को घेरने के लिए सारे मोहरे बिछा दिये। बुधवार को जब संसद में बहस हुई तो राहुल और सोनिया गांधी सोच रहे होंगे कि आज सरकार उनके सामने पानी भरेगी और सारा देश देखेगा कि उन्हें कितनी बड़ी सफलता मिल गयी है?
अरूण जेटली ने कांग्रेस के नेता पर तीखा प्रहार किया और एक ही झटके में राहुल गांधी को यह कहकर नि:शस्त्र और निरूत्तर कर दिया कि ‘राहुल गांधी बिना ज्ञान के विशेषज्ञ हैं’। राहुल गांधी ‘अलीबाबा बने अपने चालीस चोरों’ के साथ बैठे अपने ऊपर लगे आरोपों को चुपचाप सुनते रहे। इसी प्रकार सुषमा स्वराज ने भी राहुल गांधी की धज्जियां उड़ा कर रख दीं। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को छुट्टियों पर जाने का शौक है, वे जायें, पर एकांत में बैठकर कभी अपने परिवार का ही इतिहास पढ़ें और फिर सोनिया गांधी से पूछें कि मां! ये क्वात्रोच्चि और शहरमार कौन थे? जेटली ने अपने भाषण में यह भी स्पष्टï कर दिया कि ललित मोदी के विरूद्घ शोर मचा रही पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने ही उसे बचाने का काम किया था। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी बिना काम किये नेता बन गये हैं।
एक स्तरीय बहस को होते हुए देखकर सारे देश ने अच्छा अनुभव किया। पर यह बात तो फिर भी खड़ी की खड़ी रह गयी कि देश की ऊर्जा, समय और धन का दुरूपयोग कराके कांग्रेस ने अपनी कौन सी देशभक्ति का परिचय दिया है? बिना तैयारी के परीक्षा भवन में जा बैठी कांग्रेस दावा कर रही थी कि वह परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करेगी। पर उसने जग हंसाई करा ली क्योंकि वह परीक्षा में असफल रही है।
वास्तव में कांग्रेस इस समय उस बचकाने नेतृत्व के हाथों खेल रही है, जिसने चुनौतियों का कभी सामना नही किया। जब पीएम बनने का अवसर आया तो न केवल सोनिया गांधी उससे भाग गयी थीं, वरन उनका बेटा राहुल भी उससे बचता रहा। यहां तक कि लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता पद को भी राहुल ने नही संभाला, हां इन दोनों को सत्ता को अपने आसपास रखने का स्वाद अवश्य मुंह लग गया है। ये बिना जिम्मेदारी के सबसे बड़े नेता बनकर रहना चाहते हैं। वास्तव में यह मानसिकता पतन का संकेत करती है। आपको यदि बड़ा बनना है तो बड़ी जिम्मेदारी भी संभालिये, उससे भागिये मत। यदि मनमोहन सिंह जिस समय स्वयं सत्ता छोडऩे का मन बना रहे थे उसी समय राहुल देश के पीएम बन जाते तो उन्हें जिम्मेदारी का अनुभव हो जाता।
अब देश बहुत आगे बढ़ चुका है, अब यहां किसी विरासत के आधार पर सियासत नही चलती। अब विरासत के लिए किसी परिवार का दामन थामना आवश्यक नही है, अब तो संपूर्ण भारत एक ‘विरासत’ बन रहा है यदि आप ‘सियासत’ में आना चाहते हैं तो पहले सारे भारत को समझो, फिर बोलो।
राहुल गांधी ने भारत को समझे बिना ही भारत को रोककर खड़ा करने का प्रयास किया, पर पूरे भारत को रोकने में उनकी युवा बाजुएं कांप गयीं, जुबान लड़खड़ा गयी और धैर्य टूट गया। जबकि सुषमा और अरूण जेटली ने समय को पकड़ लिया और समय के आइने में राहुल को उनका चेहरा दिखाकर भारत को आगे बढऩे का संकेत दे दिया। अब राहुल और सोनिया को अपनी नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए। टूटे हुए धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने का काम करोगे तो पहले झटके में ही ‘शत्रु’ से पराजित हो जाओगे। ‘योद्घाओं’ के बीच टूटे हथियार को लेकर जाओगे तो जग हंसाई के अतिरिक्त और कुछ पल्ले नही पडऩे वाला।
मुख्य संपादक, उगता भारत