आर्य समाज दादरी का वार्षिक सम्मेलन हुआ संपन्न
दादरी ( संजय कुमार ) यहां स्थित आर्य समाज का वार्षिक सम्मेलन संपन्न हो गया है । जिसमें विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग सत्रों में अपने गहन विचार रख लोगों का मार्गदर्शन किया। आर्य समाज के जाने-माने विद्वान और सन्यासी स्वामी शिवानंद जी महाराज ने विशेष रुप से लोगों का मार्गदर्शन किया। स्वामी शिवानंद जी महाराज ने कहा कि स्वामी दयानंद सरस्वती शिक्षा को एक प्रक्रिया मानते हैं। उनके अनुसार यह प्रक्रिया गर्भावस्था से प्रारम्भ होती है और जीवन-पर्यन्त चलती रहती है। उन्होंने शिक्षा को आन्तरिक शुद्धि के रूप में माना है। यह शुद्धि आचरण, विचार तथा कर्म में प्रदर्शित होती है। एक स्थान पर स्वामी जी ने शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि ‘शिक्षा सत्य आचरण की योग्यता है।’ इस योग्यता की प्राप्ति के लिए शुभ गुणों को प्राप्त करना परमावश्यक है।
इस सम्बन्ध में स्वयं स्वामी दयानंद ने लिखा है- ‘‘शिक्षा वह है, जिससे मनुष्य-विद्या आदि शुभ गुणों को प्राप्त करें और अविद्या आदि दोषों को त्याग कर सदैव आनन्दमय जीवन व्यतीत कर सके।’’
स्वामी जी ने कहा कि भारत की जिन महान विभूतियों ने अपने स्वतन्त्र चिन्तन द्वारा इस देश की शिक्षा के स्वरूप को रूपान्तरित करने एवं शिक्षा-प्रणाली को नवीन दिशा देने का प्रयास किया है, उनमें स्वामी दयानंद सरस्वती का नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू धर्म के प्रबल समर्थक होने के कारण उन्होंने समकालीन शिक्षा पद्धति की तीक्ष्ण आलोचना की है। कार्यक्रम का सफल संचालन रामनिवास आर्य एडवोकेट द्वारा किया गया।