पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव लडऩे के लिए हरियाणा सरकार द्वारा तय की गयी शैक्षिक योग्यता, घर में शौचालय होने तथा बिजली बिल बकाया न होने जैसी शर्तों का स्वागत ही किया जाना चाहिए। बेशक सरकार ने यह फैसला तब किया है, जब पंचायत चुनाव ज्यादा दूर नहीं रह गये हैं। नतीजतन अनेक संभावित उम्मीदवारों का गणित गड़बड़ा गया है, लेकिन एक अच्छी पहल जब भी की जाये, उसका स्वागत ही किया जाना चाहिए। हरियाणा सरकार ने जिला परिषद, पंचायत समिति और ग्राम समिति चुनाव लडऩे वाले सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों के लिए दसवीं पास होने की शैक्षिक योग्यता रखी है तो अनुसूचित जाति और महिला उम्मीदवारों के लिए यह योग्यता आठवीं पास रखी गयी है। पंचायती संस्थाओं के ज्यादातर निर्वाचित प्रतिनिधियों के अशिक्षित होने के चलते विकास राशि में धांधलियों और सरकारी तंत्र की मनमानी की शिकायतें आम रही हैं। कहना नहीं होगा कि निर्वाचित प्रतिनिधि शिक्षित होने से ऐसी स्थितियों से बचा जा सकेगा। इससे एक बड़ा बदलाव यह भी आयेगा कि पंचायती राज संस्थाओं में युवाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। अभी तक बुजुर्ग स्त्री-पुरुषों को ही पंचायती चुनावों में आगे कर दिया जाता रहा है, लेकिन शैक्षिक योग्यता की शर्त के चलते युवाओं को आगे लाना ही पड़ेगा। पंचायती चुनाव लडऩे के लिए घर में शौचालय होने तथा बिजली बिल बकाया न होने संबंधी शर्त भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। अब जबकि हर घर शौचालय का देशव्यापी अभियान चल रहा है, इस शर्त से जहां शिक्षित-सुसंस्कृत परिवार ही पंचायती राज संस्थाओं में आगे आयेंगे, वहीं अन्य को भी ऐसा करने की प्रेरणा मिलेगी। हरियाणा में बिजली बिलों की वसूली हमेशा एक बड़ी चुनौती रही है।
विशाल पंचायती राज व्यवस्था की चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के इच्छुकों के लिए बिजली बिल भुगतान की शर्त से वसूली की चुनौती कुछ तो आसान अवश्य ही होगी। गंभीर अपराधों में जिनके विरुद्ध आरोपपत्र दाखिल हो चुके हैं, वे तथा सहकारी बैंकों के बकायादार भी चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की चुनाव प्रणाली का लोहा सभी मानते हैं, लेकिन निर्वाचित प्रतिनिधियों के स्तर और कामकाज को लेकर सवाल अकसर उठते रहे हैं। जाहिर है, उसे बेहतर बनाने के लिए दीर्घकालीन कारगर कदमों की दरकार होगी। हरियाणा सरकार के ताजा फैसले हों या फिर राजस्थान सरकार द्वारा पंचायती चुनावों में शैक्षिक योग्यता के साथ ही दो बच्चों की शर्त—ये कदम उस दिशा में सहायक अवश्य साबित हो सकते हैं। कम मतदान प्रतिशत भी हमारे यहां एक चुनौती रही है। उसी के मद्देनजर गुजरात में स्थानीय निकाय चुनावों में मतदान अनिवार्य बनाया गया है। उसके परिणामों के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन कर राष्ट्रीय स्तर पर भी मतदान प्रतिशत सुधारने के कदम उठाये जा सकते हैं।