पैरोडी बनता बिहार चुनाव
विडंबना है कि बिहार के चुनावों को पैरोडी में तबदील कर दिया गया है। पैरोडी के मायने हैं-किसी बात को तोड़-मरोड़ कर, नई तुकबंदी के साथ कहना। बेशक प्रधानमंत्री मोदी हों या नीतीश कुमार-लालू यादव, वे पुख्ता मुद्दों और भावी विकास के ब्लू प्रिंट पेश करने के बजाय पैरोडियां बनाने में व्यस्त हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने लालू यादव की पार्टी आरजेडी की पैरोडी बनाई है-रोजाना जंगलराज का डर। और जेडीयू की पैरोडी है-जनता का दमन और उत्पीडऩ। बदले में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीजेपी की पैरोडी तैयार की है-बडक़ा झु_ा पार्टी और लालू का कहना है-भारतीय जुमला पार्टी। प्रधानमंत्री कुछ हदें लांघते हुए अनजान बनने का नाटक करते हैं कि ‘भुजंग प्रसाद कौन है और चंदन कुमार कौन है? ये जहर पीने वाले लोग चुनावों के बाद जहर ही उगलेंगे, जिससे बिहार का वातावरण भी जहरीला हो जाएगा। अंतत: जनता ही मारी जाएगी। जंगलराज पार्ट-2 से बिहार का जीवन ही बर्बाद होगा। दरअसल ये जुमले, पैरोडियां पुराने हैं, आरोप गले-सड़े हैं और ऐसी बातों से बिहार की आम जनता का कोई सरोकार नहीं है। लालू यादव और उनकी पत्नी की लगातार 15 सालों तक सत्ता का जनादेश जनता का ही था। नीतीश कुमार का नेतृत्व भी जनता ने ही 10 सालों तक तय किया था। आगे के लिए अभी चुनाव होने हैं। लिहाजा इतना तो आज की जनता जानती है कि किसे जनादेश देकर सरकार बनानी है। तब सवाल है कि ऐसी पैरोडियों से क्या हासिल होगा? क्या देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य बिहार में विधानसभा चुनाव ऐसे ही मजाकों के बूते लड़े जाएंगे? क्या इन राजनीतिक पैरोडियों को ही जनादेश दिया जा सकता है? विकास का कोई ब्लू प्रिंट, कौशल प्रशिक्षण की कोई तय रूपरेखा, बिहार को ‘बीमारू’ राज्य की जमात से बाहर निकालने की कोई आर्थिक योजना आदि पर सार्वजनिक बहसें क्यों शुरू नहीं हुई हैं? ऐसी ही शब्दावली, कटाक्षों का इस्तेमाल प्रधानमंत्री मोदी ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव के दौरान भी किया था और अरविंद केजरीवाल के संदर्भ में ‘बदनसीब’ सरीखा असंसदीय शब्द का भी प्रयोग किया था। नतीजा वाकई ऐतिहासिक रहा, क्योंकि ऐसी ऐतिहासिक पराजय भाजपा को कभी भी दिल्ली में झेलनी नहीं पड़ी थी। हमारा कहने का अभिप्राय यह नहीं है कि प्रधानमंत्री जिस तरह नीतीश और लालू का उपहास उड़ा रहे हैं, उससे भाजपा बिहार में भी पराजित हो सकती है। बिहार की जनता राजनीतिक तौर पर बहुत परिपक्व है। इसी जनता ने जब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में भरपूर जनादेश दिया था, तब इन पैरोडियों का सहारा नहीं लिया गया था।