गतांक से आगे…
इसके आगे लिखा है कि –
तस्मादप्यद्येहाददान मश्रद्दधानमयज मानमाहुरासुरो
बतेत्यसुराणां ह्मेषोपनिषत्प्रेतस्य शरीरं भिक्षया वसनेनालंकारेणेति संस्कुर्वन्त्येतेन ह्ममुं पलोंक जेष्यन्तो मन्यन्त इति॥
( छान्दोग्य 8/8/5)
अर्थात यही कारण है कि आज कल भी असुर लोग न दान में श्रद्धा रखते हैं और न यज्ञ करते हैं। लोग उनके इस ज्ञान को आसुर उपनिषद कहते हैं। वे मृतशरीर को अनेक मसालों से सवारते और वस्त्र आभूषणों से सजाते हैं और समझते हैं कि, इसी से हम परलोक जीत लेंगे।इस वर्णन में असुरों के ऐसा समझने और यज्ञादि बंद करने का कारण स्पष्ट विद्यमान है। प्रजापति ने उनसे पहले ही कह दिया था कि,’एष आत्मेति होवाचैतदमृतमभयमेतत ब्रह्योति’अर्थात यही आत्मा है, यही अमृत है, यही अभय है और यही बह्य है। बस तभी से अफ्रीका, इजिप्ट असीरिया और बेबिलन में अपने आप को ब्रह्य कहने की प्रथा चली और ‘असुरराणा ह्योषोपनिषद’ अर्थात यही असुरो का उपनिषद कहलाया। यह अहंभाव और नासितकता की बात गीता की आसुरी संपत्ति के वर्णन से अच्छी तरह स्पष्ट हो जाता है। गीता में आसुरी संपत्ति की अनेक बातों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि –
असत्यमप्रतिष्ठित ते जगदाहुरनीश्वरम।(भ०गी०16/8)
ईश्वरोऽहमहं भोगी सिद्धोऽहं बलवान सुखी॥(भ०गी०16/14)
अर्थात असुर लोग मानते हैं कि, यह संसार असत्य है। इसमें कोई ईश्वर नहीं है। मैं ईश्वर हूं, मैं ही भोक्ता हूं और मैं ही सिद्ध, बलवान और सुखी हूं। इन उपनिषद और गीता के प्रमाणों से स्पष्ट हो जाता है कि असुर उपनिषद का प्रधान सिद्धांत यही है कि, अपने आप के अतिरिक्त परमेश्वर कोई वस्तु नहीं है। इसलिए सांसारिक सुखों में ही खाने-पीने ,भोग और ऐश्वर्य में ही जीवन व्यतीत करो। असुरों के इस सिद्धांत की तुलना करते हुए कुछ लोग कहते हैं कि वेदांत का यह सिद्धांत ब्रह्म सत्य है, जगत मिथ्या है और जीव ही ब्रह्य है, असुर उपनिषद का ही परिमार्जित रूप है। क्योंकि वेदान्तियों का ‘अंह ब्रह्यास्मि’ असुरों के गीतोक्त ‘ईश्वररोहम’ और असुरों के उपनिषदुक्त ‘एष आत्मेति, एतद ब्रह्म’ से अच्छी तरह मिल जाता है। इसलिए दोनों सिद्धांत एक ही है । जो हम जो हो ,हम यहा इस बात पर बहस नहीं कर रहे। हम तो केवल आसुरी उपनिषद की उत्पत्ति और उसका प्राचीन उपनिषद और गीता आदि में मिश्रण ही दिख ला रहे हैं और प्रमाणित करना चाहते हैं कि, आसुर उपनिषदों के सिद्धांत वैदिक सिद्धांतों के विपरीत हैं। इतना ही नहीं, प्रत्युत यह भी दिखलाना चाहते हैं कि आसुर उपनिषद वेदों का अपमान भी करते हैं। आसुर उपनिषद के रचियता जानते थे कि अनादिमान्य वेदों को आर्यह्रदयों से सहज मे नहीं निकाला जा सकता। इसलिए उन्होंने यह प्रसिद्ध किया कि वेदों में ज्ञान की शिक्षा नही है। वह तो केवल यज्ञों की विधि बतलाते हैं और स्वर्ग की कामना कराते हैं। इस तरह उन्होंने वेदों की महत्ता और उच्चता को कम करने का उद्योग किया।
क्रमशः
देवेंद्र सिंह आर्य चेयरमैन
उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।