पुस्तक समीक्षा : ‘प्रतिनिधि पंजाबी कहानियां’
‘प्रतिनिधि पंजाबी कहानियां’ की अनुवादक श्रीमती सावित्री चौधरी हैं। जिन्होंने अबसे पूर्व में अपनी कई ख्यातिलब्ध पुस्तकें लिखकर दर्जनों पुरस्कार प्राप्त किए हैं।
अपनी इस पुस्तक में उन्होंने बड़ा डॉक्टर, रब अपने असली रूप में, जैथा ग्वाला, जूठे आम, सैहबी फिर भी अकेला था, मांग, सोलहवां साल, मीनू , उफ़ क्या है ?, काला बाप – गोरा बाप, मां के नाम पत्र, दूध का उबाल, एक टुकड़ा बिस्कुट, कितना बदल गया इंसान, खून का मोल, हैरानी की बात, वह सोचती, – नामक 17 पंजाबी कहानियों का हिंदी अनुवाद किया है।
इन कहानियों के बारे में वह स्वयं लिखती हैं कि पंजाबी की यह 17 प्रतिनिधि कहानियां हैं जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन सभी कहानियों की मार्मिकता और संवेदनाओं को ज्यों का त्यों प्रदर्शित करने का मैंने पूरा प्रयास किया है। पाठक पढ़कर कह सकते हैं कि कहानियों के इस गुलदस्ते में कई रंगों और महकदार फूलों को आकर्षक तरीके से सजाया गया है। यह कहानियां हमारे समाज, उसकी बुराइयों और लोगों की गलत सोच पर तीखा प्रहार करने के साथ-साथ पाठक की पलकों को भिगोने का सामर्थ्य रखती हैं ।
बहुत देर तक आत्ममंथन करने पर भी विवश कर देती हैं। यह हमारे आसपास की नहीं, हमारी कहानियां हैं। जो समय की बेरहमी के कारण हमारा हृदय घायल करती हैं और मस्तिष्क को सजग व सचेत बनाती हैं।
वास्तव में विदुषी लेखिका ने जिन 17 कहानियों को इस पुस्तक के माध्यम से हमारे समक्ष प्रस्तुत किया है, वह पंजाबी की प्रतिनिधि कहानी होने का पूरा सम्मान और गौरव रखती हैं। प्रत्येक कहानी अपने साथ पाठक को बांधे रखने में पूर्णतया सफल रही है। कहानी की गंभीरता और गंभीर संदेश को समझ कर पाठक कई बार पलकों को ना चाहते हुए भिगो ही लेता है।
सचमुच श्रीमती सावित्री चौधरी जी धन्यवाद और बधाई की पात्र हैं। जिन्होंने विशेष परिश्रम करके कहानियों को हमारे समक्ष पुस्तक रूप में प्रस्तुत किया है।
यह पुस्तक कुल 106 पृष्ठों में पूर्ण हो जाती है पुस्तक का मूल्य ₹200 है। पुस्तक के प्रकाशक साहित्यागार, धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता, जयपुर 0141-2310785, 4022382 है । पुस्तक प्राप्ति के लिए उपरोक्त दूरभाष पर संपर्क किया जा सकता है।
- डॉ राकेश कुमार आर्य