भारत स्वतंत्र हुआ
14 अगस्त सन 1947 ई. को पाकिस्तान नामक एक नये राष्ट्र ने जन्म लिया। जबकि 15 अगस्त सन 1947 ई. को भारत स्वतंत्र किया गया। इस प्रकार माउंटबेटन ने अंग्रेजी साम्राज्य की उस परंपरा का भारत के संदर्भ में भी पूर्ण निर्वाह किया जिसके वह आज तक अपने प्रत्येक उपनिवेश को विभाजित करके ही वहां से लौटते आये थे। उसने यदि यूनियन जैक को लालकिले से उतारने का दुखद निर्णय लिया तो उसकी एवज में भारत का एक बहुत बड़ा भाग काटकर अलग देश की स्थापना करके उसका बहुत भारी मूल्य भी प्राप्त कर लिया। पाकिस्तान को पहले दिन भारत से अलग करके उसके बाद ही लॉर्ड माउंटबेटन ने हिंदुस्तान को स्वतंत्र किया। इसका अर्थ था कि वह किसी भी प्रकार से पाकिस्तान के निर्माण को टालना नही चाहता था।
आजादी की घोषणा होते ही लगभग पौने दो करोड़ लोग विस्थापित होकर इधर से उधर और उधर से इधर को चल दिये। लोगों ने बहशीपन और पाशविकता का खेल खेलना आरंभ कर दिया। बताया जाता है कि लगभग दस लाख लोग इस विस्थापन में मारे गये। लूट, हत्या और डकैती का ऐसा खेल खेला गया कि इतिहास के सारे कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया गया।
जिस स्वतंत्रता के लिए गांधीजी की कांग्रेस और स्वयं गांधीजी का दावा रहा था कि वह बिना खडग़ और बिना ढाल के हमें यूं ही मिल गयी जिसके लिए हमें तनिक भी हिंसा का सहारा लेना नही पड़ा। वही स्वतंत्रता हमें जब मिली तो हिंसा का तूफान साथ लेकर आयी। इस तूफान में गांधीजी की अहिंसा का झूठा छप्पर यूं उड़ गया कि मानो था ही नही। स्वतंत्रता को अहिंसा के बल पर लाने का दावा करने वाले स्वतंत्रता का हिंसा स्नान अथवा ताण्डव नृत्य देखकर स्वयं यह समझ गये होंगे कि स्वतंत्रता का मूल्य होता है?
लियोनार्ड भोंसले ने उस समय स्वतंत्रता दिवस की सजावट के विषय में लिखा है-
‘‘स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए दिल्ली में चटकीले महाराबों और सजावटों का सिलसिला आरंभ हुआ। किन पार्कों में खुशी का गाना होगा? यह फेेसला करने के लिए कमेटियां बन गयी थीं। दिल्ली में कौंसिल यह जानकर नाराज थी, कुछ खुली जगहों में लोग भरे पड़े थे। एक मस्जिद के सामने उर्दू पार्क में 4000 शरणार्थी डेरा डाले पड़े थे।’’
पंजाब का कुछ हिस्सा अलवर से सटा था और पंजाब में भी मेव थे। अलवर में रहने वाले मुस्लिमों का एक विशेष फिरका जो मेव थे, वे लोग वहां से भाग रहे थे। ‘‘महाराजा और उसके दीवान डा. खरे (सनकी हिंदू) किसी प्रकार की जिम्मेदारी से इंकार कर रहे थे। लेकिन हिंदू महासभा के डा. खरे ने जिस बात का प्रचार किया था उसका एक प्रभाव अवश्य हो रहा था, कि वे भगदड़ में अपनी भूमि संपत्ति सब कुछ छोडक़र भाग रहे थे।’’
ऐसी परिस्थितियों में भी कांग्रेस ने इस अवसर पर अपने लिए (भारत के लिए नही) अंग्रेजों द्वारा राज छोडऩे के लिए उनका धन्यवाद किया और इस अवसर पर जमकर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए स्वतंत्रता समारोह का आयोजन किया। उसने देश विभाजन की घटना को हल्के रूप में लिया। जबकि स्वतंत्रता मिलने को इस प्रकार महिमामंडित किया कि वह मानो उसके द्वारा ही देश को प्रदान की गयी है। गांधीजी इस स्वतंत्रता संग्राम के ‘हीरो’ थे और उनसे अलग जिसने भी क्रांतिकारी नेता या राष्ट्रवादी दलों के वीर स्वतंत्रता सेनानी हुए वे सबके सब ‘जीरो’ थे।
इस महिमामंडन ने सत्ता षडय़ंत्र का यदि पहला जुआ भारत माता के कंधों से उतारा तो दूसरे को रख दिया। मां बंधनों में ही जकड़ी पड़ी थी और बंधनों में ही जकड़ी पड़ी रह गयी। लैरी कालिंस एण्ड डोमिनियल लिबरेट्री ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में हमें बताते हैं-‘‘हिंदू महासभा द्वारा संचारित दैनिक हिंदू राष्ट्र पूना से प्रकाशित पत्र का संपादकीय 15 अगस्त सन 1947 ई. को प्रथम पेज पर निकला तथा संपादकीय वाले कॉलम में शोक प्रकट करने के लिए काले फीते का निशान बनाकर खाली छोड़ दिया गया था।’’
यह सच ही था। लेखनी विभाजन की पीड़ा का वर्णन करने पर मौन हो गयी थी। उसे स्वतंत्रता की इतनी प्रसन्नता नही थी जितनी कि विभाजन की पीड़ा थी।