केसी त्यागी
आज 11 अक्टूबर (1902) जेपी का जन्मदिन है। गांधी के बाद देश की राजनीति में जितने और जिस तरह के प्रयोग जेपी ने किए, वैसे उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। समतामूलक समाज, लोकतंत्र, नागरिक अधिकार, भ्रष्टाचार उन्मूलन और सभी प्रकार के शोषण और जुल्म-ज्यादती से मुक्त समाज का जिक्र होते ही जयप्रकाश याद आते हैं। उनका समूचा जीवन दर्जनों नए आदर्शों को समर्पित रहा।
अमेरिका के प्रसिद्ध संस्थानों में शिक्षा पूरी कर भारत लौटने से पहले जेपी प्रखर मार्क्सवादी रंग में रंग चुके थे। लेनिन के नेतृत्व में 1917 की सोवियत साम्यवादी क्रांति को तब तक एक दशक से ज्यादा हो चुका था। भारत में भी वैचारिक तौर पर प्रतिबद्ध नौजवानों का बड़ा वर्ग तैयार हो चुका था जो सोवियत संघ को एक आदर्श के रूप में निहारता था और सभी प्रकार के शोषण विहीन समाज की स्थापना के लिए तैयार था।
1929 में भारत आगमन के साथ ही जेपी स्थानीय तौर पर सक्रिय मार्क्सवादी लोगों के संपर्क में आते हैं और उनकी राजनीतिक गतिविधियां शुरू होती हैं। उधर पं. नेहरू ब्रिटेन में अपनी पढ़ाई समाप्त कर स्वदेश लौट कांग्रेस पार्टी के कार्यक्रम में रुचि लेते हैं और जेपी जैसे वैचारिक रुझानों के समर्थकों मसलन मीनू मसानी, मोहनलाल गौतम, एन.जी. गोरे, ई.एम.एस. नंबूदरीपाद, आचार्य नरेंद्र देव, डॉ. संपूर्णानंद, कमला देवी चटोपाध्याय, डॉ.राम मनोहर लोहिया, एस.एम. जोशी, नवकृष्ण चौधरी, अच्युत पटवर्धन, यूसुफ मेहर अली, सज्जाद जहीर, अशोक मेहता, दिनकर मेहता और रामवृक्ष बेनीपुरी आदि के साथ कांग्रेस पार्टी के व्यापक मोर्चे में शामिल होकर इसको आर्थिक, सामाजिक परिवर्तन के औजार रूप में परिवर्तित करना चाहते हैं।
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जेपी 1932 में पहली बार गिरफ्तार किए जाते हैं। उन्हें नासिक सेंट्रल जेल में रखा जाता है। उससे पहले वह भूमिगत रहकर सशस्त्र संघर्ष की संभावनाओं को तलाश करते हुए नौजवानों के साथ सक्रिय तौर पर जुड़े होते हैं। यह वही दौर है जब सरदार भगत सिंह एवं उनके साथियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दिए जाने की सनसनी हवा में फैली हुई है। इससे पहले भगत सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी नामक संगठन का नेतृत्व कर सोवियत संघ सरीखी क्रांति का बिगुल भी बजा चुके हैं।
1933 में पं नेहरू मीनू मसानी को लिखे पत्र में कहते हैं कि मैं कांग्रेस पार्टी में समाजवादी ग्रुप के गठन का स्वागत करूंगा, कांग्रेस पार्टी आर्थिक और सामाजिक बदलाव का भी संगठन बने जो आजादी के बाद नए भारत का निर्माण करे। जेपी के प्रयासों से इस संगठन की भी शुरुआत बिहार से होती है जब पटना के अंजुमन इस्लामिया हॉल में 17 मई 1934 को आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में समाजवादियों का एक सम्मेलन आयोजित होता है, जेपी इस संगठन के महासचिव बनाए जाते हैं। इसमें अच्युत पटवर्धन, मीनू मसानी, अशोक मेहता, एन.जी. गोरे, यूसुफ मेहर अली आदि शामिल हैं।
आजादी के आंदोलन के नायक के रूप में उनका पुनर्जन्म होता है जब वे भारत छोड़ो आंदोलन के चलते हजारीबाग जेल की 17 फुट ऊंची दीवार को फांद कर 8 नवंबर 1942 को जेल तोड़ने में कामयाब हो जाते हैं। भूमिगत रहकर वह एक शीर्षस्थ नेता के रूप में युवाओं को संगठित कर एक व्यापक राष्ट्रव्यापी आंदोलन संचालित करते हैं और इसी क्रम में 1943 में नेपाल में डॉ. लोहिया के साथ गिरफ्तार होकर लाहौर सेंट्रल जेल लाए जाते हैं और वहां भीषण यातनाओं का शिकार बनते हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में साम्यवादियों की भूमिका उन्हें गांधी के करीब और कम्युनिस्टों से दूर कर देती है। 21 अप्रैल 1946 को जेल से छूटने के बाद पटना के गांधी मैदान में उनका अभिनंदन आयोजित किया जाता है।
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1947 आते-आते संविधान सभा के निर्माण, भारत-पाक बंटवारा आदि सवालों पर समाजवादी पं. नेहरू से निराश हैं। गांधी जी की इच्छा के विरुद्ध जाकर 1948 में सभी समाजवादी नासिक में एक सम्मेलन आयोजित कर अलग दल का निर्माण करते हैं। 1952 में पं. नेहरू के आभामंडल से टकराकर उनकी चुनाव में बुरी हार होती है और जेपी सक्रिय राजनीति को तिलांजलि देकर भूदान की राह पकड़ते हैं। फिर 1974 में लोकनायक के रूप में उनका पुनर्जन्म होता है, जब वह संपूर्ण क्रांति के वाहक बनकर उभरते हैं। जेपी के कार्य सदा हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
(लेखक जेडीयू के महासचिव हैं)
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