मुकुल व्यास
दुनिया में 2050 तक 9 अरब लोगों को खाद्यान्नों की आवश्यकता पड़ेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि किसानों को सीमित कृषि भूमि पर 50 प्रतिशत अधिक अन्न उगाना पड़ेगा। इस बड़ी चुनौती से निपटने के लिए वनस्पति वैज्ञानिक पौधों में कुछ ऐसी फेरबदल करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे उनमें प्रकाश-संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) की प्रक्रिया सुधरे और फसलों की पैदावार बढ़े। वनस्पति जगत में नीले-हरे शैवाल अथवा ब्लू-ग्रीन एल्गी की एक बहुत बड़ी खूबी यह है कि ये प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया को अधिकांश पौधों की तुलना में ज्यादा कुशलतापूर्वक अंजाम देते हैं। नीले-हरे शैवाल को ‘सायनोबैक्टीरिया’ भी कहा जाता है। शोधकर्ता उनकी इस खूबी का इस्तेमाल करना चाहते हैं। वे ऐसी तरकीब खोज रहे हैं, जिसके जरिए सायनोबैक्टीरिया के तत्वों को खाद्य फसलों में सम्मिलित किया जा सके।
अमेरिका के कॉर्नवेल विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए एक नए अध्ययन में इस लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में हुई प्रगति का विवरण दिया गया है। प्लांट मॉलिक्युलर बायोलॉजी की प्रोफेसर मारीन हेंसन इस अध्ययन की प्रमुख लेखक हैं। केविन हाइंस और विशाल चौधरी इसके सह-लेखक हैं। प्रकाश-संश्लेषण के दौरान पौधे कार्बन डाइऑक्साइड,पानी और प्रकाश को ऑक्सीजन और सुक्रोज में बदलते हैं। सूक्रोज एक प्रकार की शुगर है, जिसका प्रयोग ऊर्जा और नए ऊतकों के निर्माण के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान रूबिस्को नामक एंजाइम हवा से अकार्बनिक कार्बन को ग्रहण करता है और उसे कार्बनिक रूप में बदल देता है। पौधे इस कार्बनिक रूप का प्रयोग ऊतक निर्माण के लिए करते हैं। रूबिस्को एंजाइम सभी पौधों में पाया जाता है।
दरअसल, फसलों में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया में सुधार करने में सबसे बड़ी बाधा यह है कि रूबिस्को हवा में कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन दोनों के साथ क्रिया करता है। लेकिन ऑक्सीजन के साथ एंजाइम की क्रिया से विषाक्त सह-उत्पाद बनते हैं, प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया धीमी हो जाती है और पैदावार कम हो जाती है। सायनोबैक्टीरिया में रूबिस्को एंजाइम के भीतर कार्बोक्सीसोम नामक सूक्ष्म तत्व होते हैं जो रूबिस्को को ऑक्सीजन से बचाव करते हैं। कार्बोक्सीसोम की मदद से सायनोबैक्टीरिया कार्बन डाइऑक्साइड पर ज्यादा ध्यान देते है, जिससे रूबिस्को एंजाइम कार्बन परिवर्तन के काम को ज्यादा तेजी के साथ पूरा करता है। खाद्यान्न फसलों में कार्बोक्सीसोम नहीं होता। अतः शोधकर्ता सायनोबैक्टीरिया की कार्बन को लक्षित करने की समस्त प्रणाली को खाद्य फसलों में हस्तांतरित करना चाहते हैं।
दरअसल, खाद्य फसलों में यह प्रणाली तभी काम कर सकती है जब वैज्ञानिक वनस्पति कोशिकाओं के क्लोरोप्लास्ट से कार्बोनिक एनहाइड्रेज नामक एंजाइम को हटा दें। प्रमुख शोधकर्ता हेंसन ने कहा कि हम अपने प्रयोगों के दौरान एनहाइड्रेज को हटाने में कामयाब रहे हैं। अध्ययन के लेखकों ने अपने शोधपत्र में में बताया कि उन्होंने क्लोरोप्लास्ट में मौजूद एनहाइड्रेज एंजाइम के जीन को निष्क्रिय करने के लिए क्रिस्पर/केस-9 जीन क्लोरोप्लास्ट कोशिका का वह हिस्सा है जहां क्लोरोफिल होता है। इसी में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया होती है। प्रयोगों से पता चलता है कि एनहाइड्रेज एंजाइम के अभाव से प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया प्रभावित नहीं होती जैसा कि पहले कुछ वैज्ञनिकों का खयाल था। एक दिक्कत यह है कि क्लोरोप्लास्ट में पाए जाने वाले एनहाइड्रेज एंजाइम का सबंध पौधे की रक्षा प्रणाली से भी है। लेकिन हेंसन की टीम ने पता लगाया कि इस एंजाइम के निष्क्रिय रूप से पौधे की रक्षा प्रणाली को कायम रखा जा सकता है।
वैज्ञानिकों का एक अन्य दल सौर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए प्रकाश-संश्लेषण की कुदरती प्रक्रिया को दोहराने की कोशिश कर रहा है। इस संबंध में हो रही रिसर्च के परिणाम काफी उत्साहवर्धक हैं। अमेरिका में परजू यूनिवर्सिटी की जैव-भौतिकविद यूलिया पुष्कर सौर ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पौधों के तरीके का अनुकरण कर रही हैं। इस समय पवन ऊर्जा और सूरज ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा के मुख्य स्रोत हैं। पवन ऊर्जा में टर्बाइनों और सौर ऊर्जा में फोटोवोल्टैक सेलों की जरूरत पड़ती है। इन दो ऊर्जा स्रोतों के साथ कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण के रूप में तीसरे विकल्प को जोड़ने से नवीकरणीय ऊर्जा का समूचा परिदृश्य बदल जाएगा। भारी-भरकम बैटरियों के बिना ऊर्जा के भंडारण की क्षमता से समाज को ज्यादा प्रभावी ढंग से स्वच्छ ऊर्जा की आपूर्ति की जा सकेगी। पर्यावरणीय प्रभावों के कारण टर्बाइनों और फोटोवोल्टैक सेलों के उपयोग की कुछ सीमाएं हैं। पुष्कर को उम्मीद है कि कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण के उपयोग से ये खामियां दूर हो जाएंगी। प्रकाश-संश्लेषण बहुत ही जटिल प्रक्रिया है जिसके जरिए पौधे सूरज की रोशनी और पानी के मॉलिक्यूल को ग्लूकोज के रूप में ऊर्जा में बदल देते हैं। यह सब करने के लिए उन्हें क्लोरोफिल, प्रोटीनों, एंजाइमों और धातुओं की जरूरत पड़ती है। इस समय फोटोवोल्टैक टेक्नोलॉजी प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया के सबसे नजदीक है। इसमें एक सौर सेल सूरज की ऊर्जा को बिजली में बदलता है। लेकिन यह टेक्नोलॉजी बहुत कारगर नहीं है। यह सौर ऊर्जा का सिर्फ 20 प्रतिशत हिस्सा ही ग्रहण कर पाती है। दूसरी तरफ प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया ज्यादा कारगर है। यह 60 प्रतिशत सौर ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा के रूप में जमा कर सकती है। प्रकाश ऊर्जा को ग्रहण करने की सेमीकंडक्टर की क्षमता और ऊर्जा उत्पादन की सौर सेल की क्षमता सीमित है। इसी वजह से एक साधारण फोटोवोल्टैक सेल एक सीमा से ज्यादा काम नहीं कर सकता।
वैज्ञानिक कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण के जरिए इन सीमाओं को खत्म कर सकते हैं। पुष्कर ने कहा कि कृत्रिम प्रकाश-संश्लेषण के साथ कोई बुनियादी भौतिक सीमा नहीं है। हम एक ऐसे सिस्टम की कल्पना कर सकते हैं जो 60 प्रतिशत तक कारगर हो। यह सिस्टम उन्नत होने पर 80 प्रतिशत कारगर हो सकता है। पुष्कर की टीम ने पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया का अनुकरण करने के लिए एक कृत्रिम पत्ता बनाया है जो प्रकाश एकत्र करता है और पानी के मॉलिक्यूल विभक्त करके हाइड्रोजन उत्पन्न करता है। इस हाइड्रोजन को ईंधन सेलों के जरिए ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है या प्राकृतिक गैस जैसे दूसरे ईंधनों के साथ मिलाया जा सकता है। हाइड्रोजन ईंधन सेलों से छोटे-मोटे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से लेकर वाहनों, मकानों, अस्पतालों और प्रयोगशालाओं तक हर चीज को बिजली दी जा सकती है। वैज्ञानिक अगले 10-15 वर्षों में व्यावसायिक फोटोसिंथेसिस सिस्टम की उम्मीद कर रहे हैं।
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