रमेश सर्राफ धमोरा
पंजाब में घटे राजनीतिक घटनाक्रम से अशोक गहलोत को काफी मजबूती मिली है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के दौरान उन्होंने खुलकर कांग्रेस आलाकमान के समर्थन में बयान दिया ताकि आलाकमान उनको लेकर कड़ा रुख नहीं अपनाये।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की राजनीति में सशक्त होकर उभरे हैं। कुछ दिनों पूर्व ही पंजाब की सत्ता के फेरबदल हुआ था। उस दौरान राजस्थान की राजनीति के जानकारों को लगने लगा था कि अब गहलोत भी राजनीति में कमजोर पड़ जाएंगे। कांग्रेस पार्टी में कैप्टन अमरिंदर सिंह के बाद अगला निशाना अशोक गहलोत को ही बनाया जाएगा। मगर पंजाब कांग्रेस के नवनियुक्त अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा नाराज होकर अपने पद से इस्तीफा देने से कांग्रेस की राजनीति में अचानक ही बड़ा भूचाल आ गया। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इन सब घटनाक्रम का जिम्मेदार गांधी परिवार को माना। कपिल सिब्बल, कैप्टन अमरिंदर सिंह, नटवर सिंह जैसे कई वरिष्ठ नेताओं ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की कार्यशैली पर सवाल उठाए।
इन वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि गांधी भाई-बहन की अपरिपक्वता के चलते ही पंजाब में अमरिंदर सिंह जैसे जनाधार वाले नेता को हटाया गया। वहां नवजोत सिंह सिद्धू जैसे कुछ साल पहले ही कांग्रेस में शामिल होने वाले पूर्व भाजपाई को पंजाब कांग्रेस की कमान देने से पार्टी कमजोर हुई है। पार्टी के पुराने वफादार नेताओं में इससे असंतोष व्याप्त हुआ है। वरिष्ठ नेताओं को लगने लगा है कि जिस तरीके से राहुल गांधी व प्रियंका गांधी काम कर रहे हैं। उसमें आने वाले समय में उनको भी राहुल, प्रियंका की राजनीति का शिकार बनाया जा सकता है।
राजस्थान की राजनीति में भी पिछले डेढ़ वर्ष से जो घटनाक्रम चल रहा था। उसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद को असहज महसूस कर रहे थे। राहुल गांधी व प्रियंका गांधी द्वारा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बजाए उनके प्रतिद्वंद्वी नेता सचिन पायलट को अधिक तवज्जो दिए जाने से अशोक गहलोत नाराज चल रहे थे। अशोक गहलोत चाहते थे कि जिस तरह से सचिन पायलट ने पार्टी के खिलाफ बगावत की है। उसके बाद पायलट को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए था।
मगर कांग्रेस आलाकमान ने ऐसा नहीं कर पायलट को संरक्षण देना शुरू कर दिया। कांग्रेस आलाकमान ने तो गहलोत पर इस बात को लेकर भी पूरा दबाव बना रखा था कि पायलट समर्थक विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करें। उनको राजनीतिक नियुक्तियों व पार्टी संगठन में भी पूरा महत्व दिया जाए। जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ऐसा करने के पूरी तरह खिलाफ थे। इसी असमंजस के चलते राजस्थान में लंबे समय के बाद भी मंत्रिमंडल में फेरबदल व विस्तार नहीं हो पाया है। जबकि मंत्रिमंडल के कुल 30 में से 9 पद रिक्त चल रहे हैं।
मुख्यमंत्री गहलोत राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। इसी कारण लंबे समय तक कोरोना के बहाने मंत्रिमंडल विस्तार व फेरबदल को टालते रहे हैं। पिछले दो-तीन महीनों से अपने खराब स्वास्थ्य का हवाला देकर उन्होंने कोई फेरबदल नहीं किया। यहां तक कि पिछले डेढ़ साल से गहलोत अपने घर से ना तो बाहर निकले ना ही किसी कार्यक्रम में शामिल हुए। सरकार के सभी काम अपने राजकीय आवाज से ही संपादित करते रहे। विधानसभा चलने के दौरान भी गहलोत की सदन में भी बहुत कम उपस्थिति रही। डेढ़ साल के लंबे अंतराल के बाद गांधी जयंती के दिन अशोक गहलोत प्रदेश कांग्रेस कार्यालय जाकर पुष्पांजलि कार्यक्रम में शामिल हुए व सचिवालय में भी जाकर कार्य किया। उपचुनाव के लिये दोनों विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नामांकन के वक्त भी गहलोत ने सभा को सम्बोधित किया।
पंजाब में घटे राजनीतिक घटनाक्रम से अशोक गहलोत को काफी मजबूती मिली है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के इस्तीफे के दौरान उन्होंने खुलकर कांग्रेस आलाकमान के समर्थन में बयान दिया ताकि आलाकमान उनको लेकर कड़ा रुख नहीं अपनाये। उन्होंने आलाकमान के सुर में सुर मिलाकर यह जताने की पूरी कोशिश की कि आलाकमान की हर बात का वो समर्थन करते हैं और वह पूरी तरह से कांग्रेस संगठन से बंधे हुए हैं। पार्टी के खिलाफ जाकर बगावत करने की कभी सोच भी नहीं सकते हैं। जैसा कि पूर्व में सचिन पायलट कर चुके हैं। पायलट की बगावत को गहलोत राजनीतिक हथियार के तौर पर उपयोग कर रहे हैं। पंजाब के घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री गहलोत पूरे जोश से लबरेज नजर आ रहे हैं तथा वह बैक फुट की बजाय फ्रंट फुट पर आकर राजनीति के शॉट लगा रहे हैं। हाल ही में उन्होंने एक बयान देकर अपने विरोधियों पर खुलकर निशाना साधा है। गहलोत ने गांधी जयंती पर आयोजित राज्य स्तरीय कार्यक्रम में एक तीर से दो शिकार किए हैं। विपक्ष को जवाब देने के साथ साथ उन्होंने पायलट खेमे को भी जवाब दे दिया। गहलोत ने कहा कि प्रदेश में उनकी सरकार पूरे पांच साल चलेगी और रिपीट भी होगी। उन्होंने यह भी कह दिया कि शांति धारीवाल को फिर से नगरीय विकास मंत्री बनाऊंगा। इस बयान से उन्होंने पायलट खेमे को आईना भी दिखा दिया कि अगली बार भी मुख्यमंत्री वे ही बनेंगे। उन्होंने साफ किया कि उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी को कहीं कोई खतरा नहीं है।
विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कमरे में बंद रहते हैं, बाहर ही नहीं निकलते। इसी का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पलटवार किया। पायलट खेमे की ओर इशारा करते हुए यह भी कह दिया कि जिनके दर्द हो रहा है उनकी वे जानें। केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि अमित शाह, धर्मेंद्र प्रधान और अन्य लोगों की कृपा से हम लोागें को 34 दिन होटलों में रहना पड़ा था। उन्होंने कहा कि हमारे वफादार विधायकों की कृपा से वो टाइम भी निकल गया।
गहलोत बोले कि मुझे 15-20 साल कुछ नहीं होने वाला है। यदि कोई दुखी हो तो हों, मैं कहीं जाने वाला नहीं हूं। यह सरकार पांच साल चलेगी और दोबारा भी हमारी ही सरकार बनेगी। गहलोत ने कहा कि जनता खुद कहती है कि राजस्थान में कहीं भी एंटीइनकम्बेंसी नहीं है। हां हमारे पार्टी के कुछ साथी जरूर लाइन पार कर देते हैं। प्रदेश की जनता कांग्रेस की ही सरकार बनाएगी। हमने काम में कोई कमी नहीं रखी। पता नहीं आगे क्या होगा, लेकिन इस बार जनता का मूड वापसी का है। दो बार में एक बार हम 56 पर आए, दूसरी बार 21 पर। हमने दोनों बार काम में कोई कसर नहीं रखी थी। अब लगता है रिपीट होंगे। राजस्थान में इसी माह वल्लभनगर व धरियावाद की विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। जिनमें से वल्लभनगर कांग्रेस व धरियावाद भाजपा के पास थी। उपचुनाव में गहलोत दोनों सीटों पर कांग्रेस को जिता कर अपनी ताकत दिखाने के लिए पूरा जोर लगाएंगे। पिछले 3 सालों में राजस्थान में 6 विधानसभा सीटों के उपचुनाव हो चुके हैं। जिनमें तीन पर कांग्रेस, दो पर भाजपा व एक पर आरएलपी जीती थी। मगर इस बार गहलोत की नजर दोनों सीटों पर टिकी हुई है। यदि गहलोत दोनों सीटों पर कांग्रेस को जिताने में कामयाब हुए तो उनके प्रभाव में बढ़ोतरी होगी। तब कांग्रेस आलाकमान को उन पर ही भरोसा बनाए रखना होगा। डेढ़ साल के लंबे एकांतवास के बाद मुख्यमंत्री गहलोत फील्ड में निकल कर अपनी सक्रियता दिखाने जा रहे हैं। जिसके माध्यम से वह अपने विरोधियों को भी अपने तंदुरुस्त होने का संदेश देंगे।
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