फिल्म जगत और यह दीवाली:
एक समय था, जब भगत सिंह पर फ़िल्म बनी “शहीद”!
मनोज कुमार ने इसके लिए उनके जीवित साथी बटुकेश्वर दत्त से बहुत कुछ जानकारी ली! जब फ़िल्म का लोकार्पण हुआ (रिलीज़ हुई) तो पटकथा लेखन में उनका नाम था !
वह यह देख कर रो पड़े थे !
भगत सिंह की माता ने फ़िल्म देखी, तो वे तो भी रो पड़ी थी!उनके मुख से अनायास ही निकला: ”इतनी अच्छी तो मै असली जीवन में कभी न थी!“
भारत के प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने फ़िल्म देखी, तो मनोज कुमार से निवेदन किया, “एक फ़िल्म देश के जवान और किसान पर भी बनाइए!”
मनोज कुमार ने फ़िल्म बनायी ‘उपकार‘ जिसमें शास्त्रीजी के नारे “जय जवान! जय किसान! को जीवंत दिखाया गया है! अफ़सोस, कि फ़िल्म पूरी होने से पहले ही शास्त्री जी का निधन हो गया!
मनोज कुमार को आज तक इसका रंज है!
फ़िल्म ने सफलता के सभी बहुत सारे विक्रम तोड़ डाले हैं! क्या “फ़िल्म फ़ेयर”, क्या राष्ट्रीय पुरस्कार! लाइन लग गयी!
*इस फ़िल्म में बहुत सच्चे और अच्छे गीत थे!
“मेरे देश की धरती, सोना उगले, उगले हीरे मोती”;
और “क़समें, वादे, प्यार, वफ़ा, सब, बातें हैं, बातों का क्या?”
“कोई किसी का नहीं, है ये नाते हैं, नातों का का क्या?”
समर्पण का यह आलम था कि फिल्मों के अधिकांश भाग दिल्ली के समीप नरेला गांव के घोघा विस्तार में फिल्माए गए थे!
फिल्मों में दर्शाया गया शिव मंदिर भी घोघा में ही स्थित है!
“कसमे, वादे” और “मेरे देश की धरती” गाने भी यहीं पर फिल्माए गए हैं!
फिर मनोज कुमार जी ने वहीं पर एक बाग खरीद लिया विशाल बाग, जो नरेला गांव की प्रमुख सडक, बवाना मार्ग पर स्थित है!
मनोज कुमार “भारत कुमार” हो गए!
फिर, न जाने क्या बिजली गिरी, फ़िल्म जगत “बॉलिवुड” हो गया!
उसने एक ही गीत अपना लिया! कसमें, वादे टूटने लगे!
सेना बलात्कारी हो गयी (“दिल से”)!
सेना, पुलिस कर्मी हत्यारे हो गए; तोड़े गए मंदिर क़ब्रस्तान हो गए (“हैदर”)!
शाकाहारी हेरोइन मांसाहारी बना दी गयी; हनुमान-भक्त कसाई के दिए तावीज़ से जीतने लगे (“दंगल”)!
हिंदू भगवान त्याज्य और हंसी के पात्र हो गये, प्रसाद तिरस्कृत हुआ!
किंतु ७८६ का बिल्ला रक्षक हो गया (“दीवार”)!
स्मगलर, आतंकवादी, टेररिस्ट, गुंडे, देशद्रोही, डाकू – सारे हीरो बन गये! (“दीवार”, “रइस”, गुलाम-ए-मुस्तफा”, “गेंग़स्टर”)!
देश-भक़्त सभी सभी “धर्म विशेष” के हो गए, और भ्रष्ट पंडित, नेता, पुलिस कर्मी, सभी “दूसरे” धर्म के हो गए !
मीर रंजन नेगी कबीर खान बना दिए गए! (“चक दे इंडिया”)
आज समझ में आता है कि “कलाकारीता की स्वतंत्रता” (CREATIVE FREEDOM) के नाम पर कई षड्यंत्र चल रहे हैं !
अब यह षड्यंत्र असह्य हो गये हैं !
महिला पायलट के जीवन पर, उन्ही के नाम से बनी फ़िल्म में ही वायुसेना अधिकारी महिला को छेड़ते हैं!वह महिला चीख-चीख कर कह रही है, कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई! पर उसकी सुनता कौन है?
निर्लज्ज बोलिवुड हंस कर कहता है ,”क्रीएटिव फ़्रीडम है“!
दुख इस बात का नहीं, कि पैसे कमाने के लिए बालीवुड बिका गया; दुःख इस बात का है, जी बिलकुल दुःख इस बात का है, कि सिस्टम अंधा है, देश का “सेंसर बोर्ड” ही ये फ़िल्में पास करता आ रहा है!
भोली जनता पैसे खर्च कर फ़िल्मी से अपराधी का प्रोत्साहन (प्रमोशन) कर रही है!
इस अभियान में हिंदू, मुस्लिम, ब्राह्मण, बनिए, दलित, क्षत्रिय, सारे शामिल हैं!
न जाने कौन सी जादुई ड्रग (नशीली औषधी) है बाॅलीवुड के पास है, जो भी जाता है, उसे देशद्रोह प्यारा, और देशभक्ति त्याज्य लगने लगती है!
इसलिए भारतीय बनो! यह न देखो कि “लक्ष्मी बम” ला रही है या फिर “हैदर”, जब तक बाॅलीवुड सुधरता नहीं, इसका सम्पूर्ण बहिष्कार होना चाहिए!
करीना सच ही कहतीं है: “किसने कहा क़ि हमारी फ़िल्म देखो ?”
आज, जब कोरोना महामारी का काल है, तब प्रश्न करता है यह चुनौती भरा समय: जब देश हित में पटाखे, मिठाई, रंग, गुलाल, छोड़ दिया, तो क्या अब समय नहीं आ गया है कि इस दीपावली कुछ अलग हो, तब मैंने निर्णय किया है, कि इस दीपावली पर कोई फ़िल्म नहीं देखूँगा!
विचार करें: आपके टिकट के पैसे पर पहला हक़ किसका है? करोड़पति हीरो-हिरोईन का, या आपके आस पास बसे किसी ग़रीब नागरिक का?
आपका एक न ख़रीदा हुआ टिकट किसी के घर में दिया जला सकता है, किसी के घर में चूल्हा जला सकता है, किसी तेजाब-पीड़ित के चेहरे पर मरहम लगा सकता है, किसी के बूढ़े सपनों में पंख लगा सकता है! निश्चय आपने करना है!
इस दीवाली, देशद्रोहियों का दीवाला!
दुष्यंत कुमार के शब्दों में, बाॅलीवुड से प्रार्थना है:
जो जम गई है पीर-पर्वत सी, पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए!
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए!
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए!
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा उद्देश्य नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए!
मेरे सीने में नहीं, तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए!🟣
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