सिर्फ राम, कृष्ण ही क्यों ? किसी भी राष्ट्रपुरुष या महापुरुष का अपमान नहीं होना चाहिए

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डॉ. वेदप्रताप वैदिक 

किसी भी महापुरुष का अपमान नहीं किया जाना चाहिए और यदि उनके विरुद्ध कोई अश्लील टिप्पणी करे और जिससे दंगे भी भड़क सकते हों तो उस पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन यह बात सिर्फ राम और कृष्ण के बारे में ही लागू क्यों हो?

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश शेखर कुमार यादव ने आकाश जाटव नामक व्यक्ति को जमानत पर रिहा करते हुए कहा कि राम और कृष्ण के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी करने वालों के विरुद्ध सख्त सजा का प्रावधान होना चाहिए। ये दोनों महापुरुष भारत के राष्ट्रपुरुष हैं। संविधान में संशोधन करके ऐसा प्रावधान किया जाना चाहिए। जज यादव ने बयान में यह ढील जरूर दी है कि कोई नास्तिक भी हो सकता है (या विधर्मी भी हो सकता है या वह राम और कृष्ण को चाहे भगवान नहीं माने) लेकिन उसे अधिकार नहीं है कि वह उनका अपमान करे।

सैद्धांतिक दृष्टि से जस्टिस यादव की बात ठीक है कि किसी भी महापुरुष का अपमान नहीं किया जाना चाहिए और यदि उनके विरुद्ध कोई अश्लील टिप्पणी करे और जिससे दंगे भी भड़क सकते हों तो उस पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन यह बात सिर्फ राम और कृष्ण के बारे में ही लागू क्यों हो? महावीर स्वामी और गौतम बुद्ध के बारे में भी क्यों नहीं और यदि उनके बारे में हो तो यह मांग भी उठेगी कि ईसा मसीह, पैगंबर मुहम्मद और गुरु नानक के बारे में भी क्यों नहीं? इस तरह की मांग द्रौपदी के चीर की तरह लंबी होती चली जाएगी और उसमें आसाराम और राम रहीम जैसे लोग भी जुड़ जाएंगे।

मैं समझता हूं कि किसी भी महापुरुष या तथाकथित भगवान या नेता या विद्वान की आलोचना करने का अधिकार सदा सुरक्षित रहना चाहिए। लोग तो विपदा पड़ने पर सीधे भगवान को भी कोसने लगते हैं। यदि इस अधिकार से लोग वंचित होते तो आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती शायद एक शब्द भी न लिख पाते और न बोल पाते। उन्होंने कुरान, बाइबिल और गुरु ग्रंथ साहब की खरी-खरी आलोचना की तो अपने अमर ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश में हिंदू धर्म के नाम से प्रचलित सभी संप्रदायों के भी परखच्चे उड़ा दिए। महात्मा गांधी जैसा व्यक्ति आज की दुनिया में कहीं ढूंढ़ने से भी नहीं मिल सकता लेकिन उनके विरुद्ध गुजराती, मराठी, हिंदी और अंग्रेजी में कई ऐसे ग्रंथ और लेख लिखे गए हैं, जो बिल्कुल कूड़े की टोकरी के लायक हैं लेकिन उनके लेखकों को सजा देने की बात बिल्कुल नाजायज़ है। यदि आलोचकों को सजा का संवैधानिक प्रावधान होता है तो हम भारत को क्या पाकिस्तान नहीं बना देंगे ? पाकिस्तान में कितने ही लोगों को ईश-निंदा के अपराध में मौत के घाट उतार दिया गया है। भारत में तो नास्तिकों और चार्वाकों की अद्भुत परंपरा रही है। उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार दिया है। ऐसे सर्वसमावेशी राष्ट्र को कठमुल्ला देश नहीं बनाना है।

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