इतिहास छल करने का प्रपंच
विकास सारस्वत
केरल में वर्तमान कम्युनिस्ट सरकार ने केरल में पत्तनम में एक पामा NGO द्वारा उत्खनन की रिपोर्ट को आधार बनाकर यह सिद्ध करने का प्रयास यह स्थल ईसा पूर्व 1000 वर्ष पुराना है। पुरातत्व विभाग द्वारा इस उत्खनन को न मान्यता नहीं दी गई है और न ही कोई विशिष्ट पुरातत्व अनुसन्धान कर्ता इससे जुड़ा हैं। जाने-माने पुरातत्वविद प्रोफेसर सुंदर ने पुरातत्व स्थल पर कोई भी ढांचागत अवशेष न होने की स्थिति में चेरियन को उसी मंच से फटकार लगाई। चेरियन ने पत्तनम को तमिलनाडु के कीलड़ी पुरातात्विक स्थल से जोड़ने का भी प्रयास किया। पत्तनम और कीलड़ी में संबंध दर्शाने के लिए चीनी मिट्टी के बर्तन और धातु से बनी वस्तुएं नदारद हैं। यहां से केवल मिट्टी के पात्रों का ही बड़ी संख्या में मिलना नागस्वामी जैसे वरिष्ठ पुरातत्वविदों को अखर रहा है।
अकादमिक जगत में निरंतर आलोचना के बावजूद एक समूह की उत्खनन को लेकर आतुरता सभी के लिए कौतूहल का विषय है। दरअसल मुजिरिस हेरिटेज प्रोजेक्ट केरल के प्रभावशाली साइरो मालाबार चर्च द्वारा ईसाइयत के 12 देवदूतों में से एक सेंट थामस के भारत आगमन रूपी मिथक को ऐतिहासिक प्रामाणिकता देने का प्रयास है, ताकि ईसाइयत को भारतीय मूल का धर्म बताया जा सके और ऐसा विमर्श मतांतरण में सहायक बने। यह योजना यरुशलम और पत्तनम के बीच किसी भी तरह समुद्री संबंध स्थापित कर दिखाना चाहती है कि सेंट थामस ने यहां आकर ईसा मसीह के जीवन काल में ही बस्ती बसाई। जबकि पुरातत्वविद एवं लेखक बीएस हरिशंकर ने सिद्ध किया है कि अपनी भूआबद्ध आकृति के चलते पत्तनम में कभी कोई बंदरगाह होने की संभावना ही नहीं रही। सेंट थामस के भारत आने की कहानी को 15 वर्ष पूर्व तक वेटिकन भी नहीं मानता था। पोप बेनेडिक्ट-16 ने ऐसी किसी संभावना से साफ इन्कार किया था। चर्च के आधिकारिक ग्रंथ ‘एक्ट्स आफ सेंट थामस’ में भी सेंट थामस के फारस से आगे जाने का कोई उल्लेख नहीं है। इसके बावजूद साइरो मालाबार चर्च के दबाव में आकर वेटिकन ने 2006 में इस कहानी को मान लिया और इसकी ऐतिहासिक पुष्टि का आदेश दिया। उल्लेखनीय है कि इसी वर्ष पत्तनम में उत्खनन कार्य शुरू हुआ।
चेरियन एसोसिएशन फार द प्रिजर्वेशन आफ सेंट थामस क्रिश्चियन हेरिटेज के अध्यक्ष भी हैं। उनकी संस्था केसीआरएच को देश-विदेश के बाइबल जानकारों के साथ जोड़ा गया। धर्माधता से प्रेरित इस प्रवंचना की जानकारी पत्तनम उत्खनन से जुड़े सुनील पी इलयीडोम के इस दावे से मिलती है कि भगवत गीता सेंट थामस के प्रवचनों पर आधारित है। पुरातत्व द्वारा इतिहास की छलरचना में चर्च और द्रविड़ नस्लीय विचारधारा की साठगांठ रही है।
मदुरई के निकट कीलड़ी उत्खनन में जिन्होंने पुरातत्व स्थल की ऐतिहासिकता को आर्य अतिक्रमण सिद्धांत और द्रविड़ विचारधारा के खांचे में झूठ द्वारा बैठाने का प्रयास किया, वही पत्तनम में भी सक्रिय रहे। दुराग्रह से प्रेरित इस अकादमिक छलावे को द्रमुक और कम्युनिस्ट नेताओं का संरक्षण मिला। कीलड़ी को भारतीय संस्कृति का हिस्सा न मानने वाले द्रमुक नेता त्यागराजन अभी तमिलनाडु के वित्त मंत्री हैं। अकादमिक और सामाजिक शोध के नाम पर छल द्वारा दुराग्रह से ग्रस्त एजेंडाधारियों को इतिहास से खिलवाड़ की अनुमति नहीं दी जा सकती। एजेंडा से प्रेरित और मानकों के विरुद्ध चले पत्तनम उत्खनन पर रोक अच्छा कदम है। वैसे पामा ने दिल्ली हाई कोर्ट में अर्जी लगाई है, परंतु आशा करनी चाहिए कि अदालत पामा की कारगुजारियों का संज्ञान लेकर सही निर्णय करेगी।
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