“नवरात्रो में मांसाहारियों का व्रत या पाखण्ड”*
श्राद्ध के अन्तिम दिनों में माँसाहारियों ने होटलों पर भीड़ बढ़ाई और डट कर मांस खाया | क्योंकि अब आगे नौ दिन मांसाहार भोजन को छोड़कर धार्मिकता का ढोंग जो करना है ।
बड़ी ही आश्चर्य होती है कि यह कैसी धार्मिक आस्था है, नवरात्रों में तो मांसाहार से दूरी बना कर अपनी श्रद्धा दिखाते हैं और शेष दिनों जीवों का मांस खाते हैं, इसे कहते हैं, धर्म के नाम पर पाखण्ड l
मांसाहारी इन नवरात्रों में मांसाहार नहीं करते हैं ? क्या शेष दिन देवी उन्हे मांसाहार करने की आज्ञा दे देती है ? यदि नहीं तो फिर ये मांसाहारी पूरे वर्ष ही निर्दोष जीवों पर दया धर्म का पालन क्यों नहीं करते हैं ? क्यों नवरात्रों के बाद हिंसक और तामसी (राक्षस) प्रवृत्ति के हो जाते हैं ?
इसलिए मांसाहारी लोगों को यह विचार अवश्य करना चाहिेए कि वह निर्दोष जीवों पर दया धर्म का पालन करें, अन्यथा नवरात्रों पर अहिंसा का व्रत रख, धार्मिकता का ढोंग न करें l ऐसी अंधभक्ति से किसी को कोई आध्यात्मिक या धार्मिक लाभ नहीं होगा ।
आप धार्मिक हो और आस्तिक हो तो सही ढंग से धर्म का पालन करना चाहिए । हिन्दूओं के किसी भी धर्मशास्त्र में मांसाहार को उचित नहीं लिखा गया है, बल्कि तामसी (राक्षसी) भोजन कहा गया है ।
विचारणीय है कि मांसाहार नवरात्रों पर पाप है, तो पूरे वर्ष ही इसे पाप की श्रेणी में आनी चाहिए ।
यदि लोग कहते हैं कि नवरात्रि में बलि देंगे तो माँ खुश होगी, तो बता दूँ, जिन मूक जानवरों की बलि देते हो, उनकी भी माँ होती है और ईश्वर तो माताओं की भी माता है ।
एक माँ को रुला कर, मूक और निर्दोष पशुओं के खून से किसी देवी माँ को प्रशन्न नहीं कर पाओगे । और ईश्वर इस दुष्कृत्य के लिए कभी क्षमा नहीं करेगा ।
यह विचार औषधि की तरह कड़वी लगेगी, परन्तु हिन्दू समाज के लिए सत्याधारित औषधि है |