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आज का चिंतन

वेदों का काव्य-अनुवाद करने वाले यशस्वी विद्वान श्री वीरेन्द्र राजपूत’

ओ३म्

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श्री वीरेन्द्र राजपूत जी देहरादून में निवास करते हैं। वह मुरादाबाद के रहने वाले हैं। देहरादून में वह अपनी पुत्री के साथ निवास करते हैं। उनके साथ उनकी धर्मपत्नी भी हैं। बहिन जी चल नहीं सकती। वह व्हीलचेयर पर रहती हैं और उस पर बैठ कर ही अपने आवश्यक कुछ कार्य कर लेती हैं। बहिन जी मुरादाबाद में शिक्षिका एवं एक कालेज की प्राचार्या रही हैं। श्री वीरेन्द्र राजपूत में परमात्मा प्रदत्त काव्य लेखन का विशेष गुण है। उन्होंने अपनी इस प्रतिभा से वेदों का काव्यानुवाद करने का संकल्प किया हुआ है। सम्प्रति वह यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद का पूरा काव्यानुवाद कर चुके हैं जो प्रकाशित भी हो चुका है। वर्तमान में उन्होंने ऋग्वेद के एक हजार से अधिक मन्त्रों का काव्यानुवाद पूरा कर लिया है। यह काव्य-अनुवाद अमरोहा से ऋषिभक्त डा. अशोक आर्य, आर्यावर्त केसरी प्रकाशित कर रहे हैं। ऋग्वेद काव्यानुवाद प्रथम भाग ग्रन्थ का कम्प्युटर पर कम्पोजिंग का कार्य हो चुका है। एक बार प्रफू भी संशोधित कर दिये गये हैं। पुनः एक बार प्रुफ देखकर इसका प्रकाशन हो जायेगा।

वर्तमान में श्री वीरेन्द्र राजपूत जी ऋग्वेद के शेष भाग का काव्यानुवाद करने में सक्रिय वा संलग्न हैं। उनका समय अपनी धर्मपत्नी जी की देखभाल के कार्यों एवं काव्यानुवाद में ही व्यतीत होता है। ऋग्वेद के काव्यानुवाद में वह ऋषि के मन्त्रार्थों सहित पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी के अर्थों का भी सहयोग लेते हैं। उनका लेख अत्यन्त शुद्ध एवं स्पष्ट है। हमने कल दिनांक 9-10-2021 को उनके हस्तलेख को देखा है। जिस डायरी में वह क्रमशः मन्त्र का काव्यानुवाद लिखते हैं उसमें कहीं कोई त्रुटि व काट-छाट नहीं होती है। उनका हस्तलेख इतना सुन्दर और स्पष्ट है कि हम शब्दों में इसकी प्रशंसा नहीं कर सकते। इस समय उनकी अवस्था 82 वर्ष की है।

कुछ दिन पूर्व श्री वीरेन्द्र राजपूत जी ने हमें पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी कृत ऋग्वेद भाष्य का दूसरा भाग उपलब्ध कराने को कहा था। प्रथम भाग तो हमारे पास था जो हमने इस भाग के काव्यानुवाद से पूर्व उन्हें दे दिया था। दूसरा भाग हमारे पास न होने के कारण हमने वैदिक विद्वान डा. कृष्ण कान्त वैदिक, देहरादून से प्राप्त किया और आचार्य वीरेन्द्र राजपूत जी को सुलभ करा दिया है। 82 वर्ष की आयु में जबकि उनका शरीर आयु के अनुरूप दुर्बल हो गया है, उनका वेदानुराग और जीवन का अधिकांश समय बिना किसी से कोई अपेक्षा रखे वेद कार्य में व्यतीत करना, हमें आर्यों के लिए प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय प्रतीत होता है। हम निजी तौर भी अपने मित्रों से अनुरोध करेंगे कि वह डा. अशोक आर्य, अमरोहा का इस काव्यानुवाद के प्रकाशन में सहयोग करने के लिए उनका आर्थिक सहयोग करें। इसके लिए एक समाचार भी आर्यावर्त केसरी के नवीन अंक में प्रकाशित किया गया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि ऋग्वेद के काव्यानुवाद का कार्य शीघ्र सम्पन्न हो जाये। अभी लगभग 9500 मंत्रों का काव्यानुवाद किया जाना है।

हमारा अनुमान है कि इस कार्य में उन्हें लगभग 10 से अधिक वर्षों का समय लगेगा। आचार्य वीरेन्द्र जी इस बात को समझते हैं। कल उन्होंने हमसे चर्चा करते हुए कहा कि हम कुछ आर्य कवियों के नाम उन्हें सुझाावें जो शेष कार्य के एक हजार एक हजार मंत्रों का काव्यानुवाद करने का दायित्व वहन करें। वह चाहते हैं कि उनके जीवन काल में ही यह कार्य पूरा हो जाये। ईश्वर से पुनः प्रार्थना है कि ऋग्वेद का शेष काव्यानुवाद भी श्री वीरेन्द्र राजपूत जी के जीवन काल में पूरा होकर प्रकाशित हो जाये। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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