“दुखों को बढ़ाना या घटाना, बहुत कुछ आपके अपने हाथ में है।”
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दुख तो जीवन में आते थे, आते हैं, और जब तक जीवन है, तब तक आते रहेंगे। इन से पूरी तरह बचने का तो केवल एक उपाय है, वह मोक्ष। "मोक्ष प्राप्त कर लेने पर फिर दुख नहीं आते। क्योंकि मोक्ष में दुख का कारण शरीर नहीं होता। जितने भी दुख आते हैं वे सब शरीर के कारण आते हैं। ऐसा कोई व्यक्ति संसार में आज तक हुआ नहीं, जिसने शरीर धारण किया हो और वह दुख से बच गया हो।" शास्त्रों में बता रखा है, कि जो भी व्यक्ति शरीर धारण करेगा, उसे कुछ न कुछ दुख तो भोगने ही पड़ेंगे।
कभी तो हम अपनी मूर्खता से अपने दुख बढ़ा लेते हैं। अनेक बार अन्य मनुष्यों या प्राणियों से भी दुख मिलते रहते हैं। और कभी-कभी प्राकृतिक दुर्घटनाओं से अर्थात आंधी तूफान बाढ़ सूखा आदि से भी दुख आते रहते हैं।
यदि हम बुद्धिमत्ता दूरदर्शिता सभ्यता नम्रता आदि से सारे व्यवहार करें, तो हम बहुत सीमा तक अपनी मूर्खता से होने वाले दुखों से बच सकते हैं । यदि दूसरे मनुष्यों या सांप बिच्छू आदि प्राणियों से सावधान रहें, तो उनके आक्रमण से होने वाले दुखों से भी एक बड़ी सीमा तक हम बच सकते हैं। इसी प्रकार से यदि हम पहले से सावधानी का प्रयोग करें, तो आंधी तूफान बाढ़ सूखा आदि प्राकृतिक दुर्घटनाओं से होने वाले दुखों से भी काफी कुछ बच सकते हैं। परंतु हम बच तभी सकते हैं, जब अपने सोचने का ढंग ठीक कर लें। यदि सोचने का ढंग ठीक कर लिया, तो हम अपने सुखों को बढ़ा लेंगे, और दुखों को घटा लेंगे।
सुखों को बढ़ाने तथा दुखों को घटाने का उपाय इस प्रकार से है। जब भी दुख आए, तो "सबसे पहली बात - चिंता न करें।" क्योंकि चिंता करने से समाधान तो कोई निकलता नहीं, बल्कि दुख ही और बढ़ते रहते हैं। इसलिए सबसे पहली सावधानी यह रखें, कि दुख आने पर चिंता न करें।
"दूसरी बात - एकांत में बैठ कर उन दुखों या समस्याओं पर गंभीरता से चिंतन मनन करना चाहिए। उससे कोई न कोई समाधान भी निकल आता है।" ऐसा करने से वे दुख कम हो जाते हैं/ हल्के हो जाते हैं।
यदि चिंतन आदि का अपना सामर्थ्य कम हो, तो फिर "तीसरी बात - अन्य बुद्धिमान मनुष्यों तथा ईश्वर की सहायता लेनी चाहिए। उनसे प्रार्थना करनी चाहिए। तो समाज के बुद्धिमान मनुष्य और ईश्वर भी आप की समस्याओं को दूर कर देंगे।" इसके लिए समाज के बुद्धिमान लोगों से सलाह लेवें। एकांत में बैठकर ईश्वर का ध्यान करें। आपकी समस्या का कोई न कोई समाधान निकल आएगा।
"संसार में ऐसा कोई ताला आज तक नहीं बना, जिसकी कोई चाबी न हो।" प्रत्येक ताले की कोई न कोई चाबी होती ही है। इसी प्रकार से सभी समस्याओं का कोई न कोई समाधान अवश्य होता है। लोग उस समाधान को ढूंढने का परिश्रम नहीं करते। इसलिए समाधान मिलता नहीं। "यदि समाधान ढूंढने का परिश्रम किया जाए। अन्य लोगों की सहायता ली जाए, ईश्वर की भी सहायता ली जाए, तो निश्चित रूप से कोई न कोई समाधान निकल ही आएगा। जिससे आपके दुख समाप्त हो जाएंगे, और आप सुख शांति से अपना जीवन जी सकेंगे।"
—– स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।