हिरोशिमा नागासाकी में, कोप की देखी थी दृष्टि।
तुझे यौवन में मदहोश देख, आज कांप रही सारी सृष्टि।
मानता हूं कोप तेरे से, हर जर्रा मिट जाएगा।
किंतु अपने हाथों तू, आप ही मिट जाएगा।
क्या कभी किसी को मिल पाएंगे, जीवन के कहीं निशान?
अरे ओ आधुनिक विज्ञान!
तेरी चमक -दमक में उड़ गये, जीवन के वे मूल्य।
जिनके कारण नर होता था, कभी देवता तुल्य।
धर्म और नैतिकता की, तेरी टूट रही नकेल।
विश्वशांति समझौता वार्ता, हो रही निशिदिन फेल।
दानवता की ओर अग्रसर, मानव नाम का प्राणी।
कांप रहा है अंबर भी, आज सुन अवनि की वाणी।