ललित गर्ग
आचार्य विनोबा भावे ने अंग्रेजी शिक्षा के स्थान पर भारतीय मूल्यों के अनुरूप शिक्षा देने की आवश्यकता को महसूस किया, लेकिन उनके सुझाव एवं विचारों को अनसूना किया गया। इतना ही नहीं देश की शिक्षा उन लोगों के हाथों में सौंपी जो अंग्रेजी मानसिकता से ग्रस्त थे।
भारत को विश्वगुरु का दर्जा दिलाने में प्राचीन शिक्षा ही मुख्य आधार थी, उसी विश्वगुरु भारत ने दीर्घकाल काल तक चले संघर्ष एवं चरित्र एवं नैतिक बल के कमजोर होने के फलस्वरूप अपना गुरुत्व खो दिया। अपना गुरुत्व खो देने से भारत कमजोर हुआ। एक षड्यंत्र के तहत अंग्रेजों ने भारत की सशक्त प्राचीन शिक्षा प्रणाली को कमजोर किया। इसके श्रेष्ठ वेद ज्ञान को गड़रियों के गीत अर्थात् मिथक घोषित कर शिक्षा की मूल धारा को बाधित किया। आजादी के संघर्ष के दौरान स्वदेश प्रेमियों ने इस बात को गहराई से समझ लिया था, लेकिन आजादी के बाद बनी सरकारों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया और अंग्रेजों की शिक्षा प्रणाली को ही अपना लिया, जो भारतीयता के संस्कार मिटाकर पाश्चात्य संस्कारों एवं सोच को भरती रही है, जो देश के लिए घातक बनी।
अंग्रेजी शिक्षा के विरोधस्वरूप सबसे पहले रवीन्द्रनाथ ठाकुर उनके बाद महर्षि अरविन्द, स्वामी विवेकानंद, भगिनी निवेदिता, स्वामी दयानंद सरस्वती, लाल-बाल-पाल तथा गांधीजी ने राष्ट्रीय शिक्षा की ज्योति को प्रज्ज्वलित रखा। ऐसे ही समय में हिन्दू विचारधारा के अनुरूप विद्या भारती के रूप में प्राचीन एवं आधुनिक शिक्षा का एक समग्र एवं समन्वित अभियान प्रारंभ हुआ। जब आजाद भारत में भी अभारतीय शिक्षा ही दी जाती रही, तब विद्या भारती ने शिक्षा क्षेत्र में भारतीय मूल्यों की शिक्षा के अभियान का शंखनाद किया। सन् 1952 में विद्या भारती योजना का पहला सरस्वती शिशु मंदिर, गोरखपुर में प्रारम्भ हुआ। आज तो विद्या भारती के लगभग 25 हजार शिक्षा केन्द्र चल रहे हैं, जिनमें व्यक्ति निर्माण से लेकर राष्ट्र निर्माण की शिक्षा दी जा रही है। नये भारत के निर्माण और जन चेतना को सर्वांग एवं सशक्त बनाने में शिक्षा क्रांति के अवदान विद्या भारती की जो भूमिका है, उसके समुचित परिचय और पहचान की सामथ्र्य न तो शब्दों में ही है, न किसी माध्यम में। राष्ट्र-निर्माण में सक्रिय शिक्षा का यह अभियान न केवल विलक्षण, अद्भुत, चमत्कारी बल्कि विशाल है।
विद्या भारती जिसका पूरा नाम विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान है। इस संस्थान ने अपने नाम को सार्थक किया है। उत्तर में लेह से लेकर, दक्षिण के रामेश्वरम तक तथा पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा से लगे मुनाबाव से लेकर पूर्वोत्तर में हाफलांग तक विद्या भारती के विद्या मंदिर हैं। बड़े-बड़े महानगरों की समृद्ध कालोनियों से लेकर गिरिकन्दराओं में बसी छोटी-छोटी बस्तियों तक विद्या भारती के शिक्षा केन्द्र राष्ट्र निर्माण के इस महत्वपूर्ण कार्य में लगे हुए हैं। विद्या भारती ने संगठनात्मक दृष्टि से पूरे देश को ग्यारह क्षेत्रों में बाटा हुआ है। प्रत्येक क्षेत्र में एक क्षेत्रीय समिति है, जिसके निर्देशन में प्रान्तीय समितियां अपने-अपने प्रान्त के कार्यों की देखभाल करती हैं। इन प्रान्तीय समितियों के अन्तर्गत जिला समिति एवं विद्यालय समिति प्रत्यक्ष कार्य करती है। ये सभी ग्यारह समितियां केन्द्रीय समिति के मार्गदर्शन में कार्य करती हैं। केन्द्रीय समिति का प्रधान कार्यालय देश की राजधानी दिल्ली में है। देश में कुल जिले 711, इनमें कार्ययुक्त जिले 632 हैं। कुल औपचारिक विद्यालय 12,830, कुल अनौपचारिक केन्द्र 11,353, कुल शैक्षिक इकाइयां 24,183, देशभर में अध्ययनरत छात्रों की संख्या 34 लाख 47 हजार 856, कुल आचार्य 1.5 लाख हैं। इस सांख्यिकी के आधार पर कहा जा सकता है कि गैर सरकारी स्तर पर विद्या भारती देश का ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा शिक्षा संस्थान है। विद्या भारती गैरसरकारी होते हुए भी सर्वाधिक असरकारी शिक्षा संस्थान भी है।
किसी भी समाज और राष्ट्र के विकास में शिक्षा का महत्वपूर्ण योगदान है। शिक्षा ही वह सेतु है, जो व्यक्ति-चेतना और समूह चेतना को राष्ट्रीय, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल्यों से अनुप्राणित करती है। भारत के सामने जो समस्याएं सिर उठाए खड़ी हैं, उनमें पाश्चात्य पैटर्न पर दी जाने वाली मूल्यहीन शिक्षानीति एक ज्वलंत कारण रही है। शिक्षा ही जब मूल्यहीन हो जाए, तो देश में मूल्यों की संस्कृति कैसे फलेगी? वर्तमान में शिक्षा का उद्देश्य जीवन को उन्नत बनाना नहीं, अपितु आर्थिक स्तर को ऊंचा उठाना हो गया है। विद्या भारती का मंतव्य है- ‘‘यदि भारत के भविष्य को बदलना है तो भावी पीढ़ी पर ध्यान देना ही होगा, उन्हें अपनी संस्कृति एवं मूल्यों से जोड़ना होगा।’’ आचार्य विनोबा भावे ने अंग्रेजी शिक्षा के स्थान पर भारतीय मूल्यों के अनुरूप शिक्षा देने की आवश्यकता को महसूस किया, लेकिन उनके सुझाव एवं विचारों को अनसूना किया गया। इतना ही नहीं देश की शिक्षा उन लोगों के हाथों में सौंपी जो अंग्रेजी मानसिकता से ग्रस्त थे।
प्राचीनकाल में गुरुकुल में 24 घंटे शिक्षा चलती थी। हर समय गुरु के समक्ष रहने से विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास हो जाता था, लेकिन वर्तमान में मजदूरी, साक्षरता और आजीविका के तौर पर प्राप्त शिक्षा से जीवन पुष्ट और समर्थ नहीं बन रहा है। विद्या भारती की शिक्षा की आवश्यकता का कारण बना कि ‘‘वर्तमान की शिक्षा में जीविका के पहाड़े तो पढ़ाए जा रहे हैं, पर जीवन के पहाड़े नहीं पढ़ाए जाते। केवल जीविका की बात जुड़ने से समग्र व्यक्तित्व का निर्माण नहीं हो सकता।’’ अंग्रेजी भाषा पर बल दिया जाता है, स्वभाषाओं की उपेक्षा होती है। इन विसंगतियों का दूर करने के लिये अनेक आयोग गठिन होने पर भी देश की शिक्षण-पद्धति कार्यकारी सिद्ध नहीं हो सकी। इस स्थिति में विद्या भारती ने शिक्षा की कमियों को पूरा करने का बीड़ा उठाया। केवल पुस्तकीय शिक्षा से विद्यार्थियों के व्यक्तितव का निर्माण नहीं होता, उनके जीवन में चरित्र की शिक्षा देना भी अनिवार्य है। यदि प्रारंभ से विद्यार्थियों को अच्छे संस्कार दिये जाएं, मूल्यपरक शिक्षा से उनका मानस अनुप्राणित किया जाए तो वे देश के लिए श्रृंगार, हार और उपहार बन सकते हैं। समुचित प्रशिक्षण के अभाव में वे अशांति, उपद्रव और हिंसक प्रवृत्तियों में भाग लेकर अपने जीवन को विनाश के गर्त में भी डाल सकते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों के सर्वांगीण व्यक्तित्व-निर्माण के लिए विद्या भारती का प्रकल्प एक वरदान है। इसमें केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं, अपितु प्रयोग के माध्यम से संतुलित और सर्वांगीण व्यक्तित्व-निर्माण की बात है। इस पद्धति से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक विकास संभव है। विद्या भारती इस प्रकार की राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का विकास करना चाहती है, जिसके द्वारा ऐसी युवा पीढ़ी का निर्माण हो सके जो हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत हो, शारीरिक, प्राणिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्ण विकसित हो तथा जो जीवन की वर्तमान चुनौतियों का सामना सफलतापूर्वक कर सके और उसका जीवन ग्रामों, वनों, गिरिकन्दराओं एवं झुग्गी-झोपड़ियों में निवास करने वाले दीन-दुखी, अभावग्रस्त अपने बान्धवों को सामाजिक कुरीतियों, शोषण एवं अन्याय से मुक्त कराकर राष्ट्र जीवन को समरस, सुसम्पन्न, एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए समर्पित हो। विद्या भारती के चार आयाम हैं- देश की विद्वत् शक्ति को इस ज्ञान यज्ञ में आहुति देने के लिए विद्वत परिषद है। शिक्षा में क्रिया शोध कर उसे और अधिक उपयोगी बनाने के लिए शोध विभाग है। भारतीय संस्कृति मय जीवन बनाने हेतु संस्कृति बोध परियोजना है और अपने पूर्व छात्रों में दिए गए संस्कार अमिट रहें, इसके लिए पूर्व छात्र परिषद है। अत्यन्त हर्ष का विषय है कि विद्या भारती के पूर्व छात्र परिषद ने अपने पोर्टल में आठ लाख से अधिक पूर्व छात्रों को जोड़ा है, जो विश्व कीर्तिमान बना है।
‘सा विद्या या विमुक्तये’ इस उक्ति को सार्थक करने की योग्यता विद्या भारती की शिक्षा में निहित है। यहां विद्यार्थी को शिक्षा केवल परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिक अंक लाने के लिए नहीं दी जाती, बल्कि जीवन की चुनौतियों का डटकर मुकाबला करते हुए परिपक्व नागरिक बन राष्ट्र निर्माण करने के लिए तथा सम्पूर्ण मानवता के लिए जीवन खपाने हेतु दी जाती है। ऐसा जीवन केवल पुस्तकें पढ़ने से नहीं बनता अपितु क्रिया, अनुभव, विचार, विवेक तथा दायित्व बोध आधारित शिक्षा देने से बनता है। यही भारतीय शिक्षा है, इसी शिक्षा से योग्य, चरित्रसम्पन्न एवं निष्ठावान नागरिक निर्माण होते हैं, यह विद्या भारती का अनुभूत मत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शिक्षा की इस अपेक्षा का महसूस करते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 घोषित की है। इस प्रकार विद्या भारती देश में भारतीय शिक्षा की पुर्न प्रतिष्ठा करने के कार्य में अग्रसर है। इसी से भारत आत्मनिर्भर तो होगा ही, अपनी ज्ञान विरासत के बल पर पुनः एक बार विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर हो सकेगा।