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चमचे चुगलखोर-भाग-दो

बिना हंसी हंसता रहता, और हां में हां कहता रहता।
जिस हांडी में खाता है। तू उसी में छेद करता रहता।

बनता है तू बाल नाक का, है छुपा हुआ आस्तीन सांप।
डसता जिसको, बचता नही वो, दुर्दशा देख जाए रूह कांप।

तू ऐसा तीर चलाता है, दिल छलनी सा हो जाता है।
जहां प्रेम की गंगा बहती थी, घृणा सागर लहराता है।

चाहे कितना अटूट हो रिश्ता, टुकड़े टुकड़े हो जाता है।
हंसतों को रूला, लड़ाकर तू, हंसता है नही शरमाता है।

दौलत की नही, विश्वास प्रेम की, चोरी करता चित्त चोर।
जय हो चमचे चुगलखोर।

हर प्रकार के मौसम मिट्टी में, तू फूलता फलता है। भ्रष्टाचार के साये में अजगर की तरह तू पलता है।

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