भारतीय स्वाधीनता का अमर नायक राजा दाहिर सेन, अध्याय – 12 (ख) खलीफा ने जारी किया फरमान


स्थितप्रज्ञ और दूसरे के मनोविज्ञान को समझने वाली भारत की राजकुमारियों के ऐसे शब्दों को सुनकर खलीफा क्रोध में पागल हो गया। उसे यह बहुत ही बुरा लगा कि वह जिस ‘भोजन’ को स्वयं ग्रहण करने की तैयारी कर रहा था उसे पहले ही उसका एक व्यक्ति जूठा कर चुका था। उसे लगा कि यदि मोहम्मद बिन कासिम ने ऐसा किया है तो निश्चय ही उसने अक्षम्य अपराध किया है। ऐसा करके मोहम्मद बिन कासिम ने अपने खलीफा के खिलाफ बहुत बड़ी गुस्ताखी की है । उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाई है। क्रोध में पागल हुए खलीफा को हिन्द की बेटियों के एक-एक शब्द पर विश्वास हो गया। कामाग्नि में दहकते हुए खलीफा ने मोहम्मद बिन कासिम के विरुद्ध तुरन्त आदेश जारी किया कि कासिम को बैल के चमड़े की बोरी ( कहीं इसे ऊंट के चमड़े की बोरी भी लिखा गया है ) में बंद करके दमिश्क में उसके समक्ष उपस्थित किया जाए।

काम,क्रोध में पागल होकर
मालिक ने यह फरमान दिया।
सजा मिलेगी उस कासिम को
जिसने जूठा मेरा ‘माल’ किया।।

     कामी और क्रोधी व्यक्ति सचमुच मूर्ख व पागल होता है। उसका विवेक मर जाता है। जिससे वह अक्सर ऐसे ही निर्णय लिया करता है ,जिससे उसका आत्मविनाश होना निश्चित होता है । वास्तव में पाप के मार्ग पर बढ़ते हुए व्यक्ति अपने पतन का रास्ता स्वयं ही निश्चित कर लेते हैं। कर्मों के फल की व्यवस्था के अन्तर्गत फिर एक दिन ऐसा आता है जब ऐसे व्यक्ति गड्ढे में गिर कर स्वयं ही विनाश को प्राप्त हो जाते हैं। उनसे मोक्ष की ओर बढ़ने या आत्मोन्नति के मार्ग को अपनाकर संसार का कल्याण करने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इस्लाम को मानने वाले लोगों में अकल का दखल कहीं नहीं देखा जाता। 
   यही कारण था कि वहाँ उपस्थित लोगों में से किसी का भी यह कहने का साहस नहीं हुआ कि खलीफा जो निर्णय ले रहे हैं वह उचित नहीं है। उन्हें पहले सत्य का, यथार्थ का पता लगा लेना चाहिए अर्थात भारत की राजकुमारी जो कह रही हैं उसकी वास्तविकता क्या है ? पहले यह जान लेना आवश्यक है । तभी कोई ऐसा आदेश दिया जाना उचित होगा। जिस समाज या जिस दरबार में लोग अनुचित बात का समय पर विरोध न कर सकें और अपने स्वामी के सामने नतमस्तक होकर खड़े हो जाएं, वहाँ स्वतंत्रता नाम की कोई चीज नहीं होती। वहाँ के बारे में समझ लेना चाहिए कि वहाँ केवल गुलामी है और जो लोग इसके उपरान्त भी गुलामी वाले मजहब को प्रगतिशील मानते या कहते हैं, वे कितने बड़े धोखे में हैं ? -यह भी समझ लेना चाहिए।

इस विषय में हमारा यह भी मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति काम, क्रोध, मद ,मोह ,लोभ – इन पांच विकारों में से किसी एक विकार से इतना अधिक घिरा हुआ होता है कि वह उसी के मकड़जाल में फंसकर आत्मविनाश कर लेता है। निश्चय ही खलीफा इस समय काम नाम से विकार से प्रत्यक्षत: घिरा हुआ दिखाई दे रहा था। इसके साथ-साथ वह क्रोध से भी त्रस्त था तभी तो उसने बिना विचारे अपने वफादार मोहम्मद बिन कासिम को इस प्रकार गिरफ्तार करवा कर मंगवाने का आदेश जारी कर दिया था।
यदि सूक्ष्मता से देखें तो वह भारत को लूटने के लिए भेजे गए अपने लूट दल से मिलने वाले लूट के माल के मोह और लोभ में भी फंसा हुआ था। इतना ही नहीं सत्ता और शक्ति का मद भी उस पर सवार था । इस प्रकार जहां सामान्य व्यक्ति एक ही विकार से मर जाते हैं, वहां खलीफा पर तो इस समय पांचों विकारों का बड़ा तेज हमला हो चुका था। उसका विनाश तो निश्चित था।
जो लोग पांच विकारों के वशीभूत होकर निर्णय लिया करते हैं, उनके निर्णय एकपक्षीय हुआ करते हैं । जिन्हें लेने के पश्चात वह स्वयं ही पछताते हैं। वास्तव में न्याय वही होता है जो दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात तथ्यात्मक साक्ष्य के आधार पर पारित किया जाता है।

अंधा तीर जा लगा कासिम को

     मोहम्मद बिन कासिम अपने खलीफा के प्रति पूर्ण निष्ठा रखते हुए उसके कार्यों को बड़ी तन्मयता के साथ भारत में अंजाम देता जा रहा था । उसे तनिक भी यह आभास नहीं था कि उसके विरुद्ध उसका खलीफा इतना कठोर निर्णय ले सकता है कि उसे बिना सुने ही उसकी हत्या का फरमान जारी कर सकता है? परन्तु अब तो जो होना था ,सो हो गया था। तीर कमान से छूट चुका था और अब वह तीर  खलीफा द्वारा अपने आदेश को लागू कराने के लिए भेजी गई एक सैन्य टुकड़ी के घुड़सवारों के माध्यम से बड़ी तेज गति से भारत की ओर बढ़ता आ रहा था। जहाँ उसे मोहम्मद बिन कासिम को ढूंढना था और उसके कलेजे में जा लगना था। अज्ञान के अंधेरे में छोड़ा गया यह तीर अन्धा था और इसका भेजने वाला भी अंधा ( कामान्ध ) था। इसके अतिरिक्त इसे लेकर आने वाले लोग भी अंधे थे। इसी को अंधेर नगरी चौपट राजा कहा जाता है । अंधे के द्वारा भेजा गया यह अंधा तीर अन्धों के द्वारा अंधे ( धर्मांध मोहम्मद बिन कासिम ) को जा लगा । 

अंधियारे में अन्ध ने भेजा अन्धा तीर।
अंधे भक्त को जा लगा घायल हुआ शरीर।।

  कर्म फल के विषय में  वेद की मान्यता है कि  कर्म फल अपने  पात्र को वैसे ही खोज लेता है जैसे  गायों के बड़े झुंड में बछड़ा अपनी माँ को ढूंढ लेता है। खलीफा के पास से मोहम्मद बिन कासिम के लिए 'मौत का वारंट' लेकर चला उसका सैन्य दल दूत के रूप में अन्ततः भारत में मोहम्मद बिन कासिम को ढूंढने में सफल हो गया। मोहम्मद बिन कासिम ने भारत में रहते हुए अब तक जो पाप किए थे उन पापों के फल ने कैसा खेल रचा कि उसका मालिक ही  उसकी हत्या का कारण बन गया। 

खलीफा द्वारा भेजे गए सैन्य दल के सदस्यों ने जैसे ही खलीफा का वह फरमान मोहम्मद बिन कासिम को दिखाया तो उसने बड़े चाव से उसे पढ़ने का प्रयास किया। क्योंकि वह सोच रहा था कि खलीफा ने हिंद की दोनों बेटियों के सौंदर्य से प्रसन्न होकर निश्चय ही उसके लिए कोई बड़ा पुरस्कार देने की या तो घोषणा की होगी या उसके लिए उसे नियुक्त किया होगा? वह सोच रहा था कि अब शायद उसके दिन फिर गए हैं और खलीफा निश्चय ही उसे उसके किए का बड़ा पुरस्कार देते हुए कोई बहुत बड़ा ओहदा उसे देने चुका है ?
पर यह क्या ? उस फरमान में तो कुछ और ही लिखा था । जिसे पढ़कर मोहम्मद बिन कासिम सन्न रह गया। एकबारगी उसकी सांस रुक गई । उस खत में जो फरमान लिखा था उसने मोहम्मद बिन कासिम की आशाओं पर पानी फेर दिया। उसके लिए सचमुच यह फरमान अप्रत्याशित था। उसको पढ़कर उसे समझ नहीं आया कि आखिर खलीफा ने उसके लिए यह फरमान किस अपराध की एवज में भेज दिया है ? उसने अपने खलीफा के प्रति पूर्ण निष्ठा व्यक्त करते हुए अपने आपको सहर्ष खलीफा के भेजे गए दूत के सामने प्रस्तुत कर दिया।

राजकुमारियों का कौशल कर गया काम

    खलीफा के दूत ने उसे दिए गए निर्देशों के अनुसार बैल की चमड़ी की बोरी में बंद किया और अपने साथियों के साथ भारत से दमिश्क लेकर चल दिया। रास्ते में दम घुटने से मोहम्मद बिन कासिम नाम के इस राक्षस का अन्त हो गया। निश्चय ही उसके इस प्रकार के अन्त के लिए हमारे राजा दाहिर सेन की दोनों बेटियों का बौद्धिक कौशल ही काम कर रहा था। जिन्होंने अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी अपने कौमार्य की रक्षा के लिए और उस समय के देश के सबसे बड़े शत्रु का अन्त करने की योजना बनाई।  जिसमें वह सफल रहीं। इस प्रकार इस राक्षस का अन्त कराके उन्होंने भारत के अपमान का प्रतिशोध लेने में सफलता प्राप्त की। 
    आगे चलकर हमें औरंगजेब की जेल से भाग निकलने का साहसिक निर्णय लेने वाले शिवाजी का वृतांत सुनने को मिलता है। निश्चय ही शिवाजी ने भी उस समय वैसे ही साहस का परिचय दिया था जैसे साहस का परिचय राजा दाहिर सेन की इन दोनों बेटियों ने उस समय दिया था। हमने दोनों घटनाओं का मिलान इसलिए किया है कि अत्यंत विषम परिस्थितियों में भी हमारे वीर क्रान्तिकारी योद्धाओं ने या देशभक्त लोगों ने समय-समय पर अपनी योजना से शत्रु का अन्त करने या उसके पापों का विनाश करने के लिए अपने आप को प्रस्तुत किया है । दोनों राजकुमारियों को शिवाजी जैसे महान क्रान्तिकारी व्यक्तित्व के महान कार्य के साथ जोड़कर देखना ही उचित होगा। जैसे शिवाजी औरंगजेब की जेल की  जलती हुई अग्नि की भट्टी से अपने आपको निकलने में सफल हुए थे, वैसे ही राजकुमारियों द्वारा खलीफा के दरबार में अपनी योजना को सही ढंग से क्रियान्वित करना अपने आपको जलती हुई आग की भट्टी में झोंकने के समान ही था।

(हमारी यह लेख माला मेरी पुस्तक “राष्ट्र नायक राजा दाहिर सेन” से ली गई है। जो कि डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा हाल ही में प्रकाशित की गई है। जिसका मूल्य ₹175 है । इसे आप सीधे हमसे या प्रकाशक महोदय से प्राप्त कर सकते हैं । प्रकाशक का नंबर 011 – 4071 2200 है ।इस पुस्तक के किसी भी अंश का उद्धरण बिना लेखक की अनुमति के लिया जाना दंडनीय अपराध है।)

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत एवं
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति

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