पुस्तक समीक्षा : आनंद सारा ( उपन्यास )

‘आनंद सारा’ (उपन्यास ) देवाराम भामू जी  द्वारा उपन्यासात्मक शैली में लिखी गई पुस्तक है। वास्तव में इस पुस्तक में दो लघु उपन्यास हैं। जिनमें से एक का नाम ‘आनंद सारा’ है तो दूसरे का ‘एक भूल और जीवन’ है। विद्वान लेखक ने बड़ी सहज और सरल परंतु विद्वतापूर्ण सारगर्भित भाषा शैली में अपनी बात को पाठकों के समक्ष रखने और उनके गले से नीचे उतारने में सफलता प्राप्त की है। संवाद इतने सहज और सरल बन पड़े हैं कि पाठक उनके साथ जुड़े रहने के ‘आनंद को सारा’ ही भोग लेना चाहता है।
विद्वान लेखक पुस्तक के आरंभ में ‘दो शब्द’ के शीर्षक से लिखते हैं कि :- “लिखना आनंद की अनुभूति है ।यह मन मस्तिष्क को तृप्त करता है। यह तब पराकाष्ठा पर पहुंच जाता है जब यह जनहितार्थ हो जाए। मैंने भारतीय साहित्य को पढ़ा पढ़ने के बाद मेरे मन में उत्कंठ इच्छा हुई कि मैं भी लिखूं। मैंने किताब लिखने की सोची। किताब के माध्यम से दबे कुचले लोगों के उत्थान, समाज सुधार और देश – प्रेम के लिए अपने विचार जन – जन तक पहुंचा सकता हूं। इतिहास साक्षी है जो काम कलम कर सकती है, तलवार नहीं कर सकती।”
   लेखक के इन शब्दों से स्पष्ट है कि वह समाज के दबे – कुचले, शोषित उपेक्षित लोगों के लिए कुछ कर गुजरना चाहते हैं। उनके मन में देश और समाज सुधार के विशेष भाव उमड़ते घुमड़ते हैं। जिन्हें वह कलम के माध्यम से उकेरकर हम सबके सामने साहित्य के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं । निश्चय ही साहित्य वही उत्कृष्ट होता है जो देश और समाज को सही दिशा देने में सक्षम हो और पाठक को आंदोलित करने की क्षमता रखता हो। प्रस्तुत पुस्तक इसी प्रकार की उत्तेजनात्मक विचारधारा की प्रतिनिधि पुस्तक है।
     लेखक के मन की पीड़ा यही व्यक्त करती है कि वह ऐसे ही साहित्य के समर्थक हैं। स्पष्ट है कि प्रस्तुत पुस्तक ऐसे ही भाव विचार को लेकर आगे बढ़ी है और ऐसा कुछ संकेत और संदेश देने में सफल रही है जो देश व समाज सुधार के प्रति समर्पित हो और दलित शोषित उपेक्षित समाज के लिए कुछ विशेष संदेश दे सकती हो।
  विद्वान लेखक एक युवा हैं। निश्चय ही यह अवस्था में होती है जो सारी दुनिया को बदल देने की अर्थात क्रांतिकारी सोच के साथ नए नए परिवर्तन देने की शक्ति सामर्थ्य और सपने रखती हैं। लेखक इसी क्रांतिकारी अवस्था में हैं। जिन की यह पहली कृति है।
‘आनंद सारा’ के घटनाक्रम प्रकृति के बहुत निकट हैं। बाल विनोद, संघर्ष ,मेहनत ,परिवार, देश भक्ति, समाज सुधार का इसमें अद्भुत संगम है।
  ‘एक भूल और जीवन’ में हमारे परिवेश के एक खानाबदोश जाति के चित्र को विद्वान लेखक के द्वारा उकेरने का प्रयास किया गया है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि घुमक्कड़ जीवन जीने वाले लोग अपनी वास्तविक स्थिति से अनजान रहते हुए हवा में जीवन जीते हैं। जिसका खामियाजा उसके परिवार को भुगतना पड़ता है और यह परिवार तहस-नहस हो जाता है   इस तरह की स्थितियां आज भी भारत के ग्रामीण परिवेश में हैं।
  कुल मिलाकर पुस्तक संग्रहणीय और पठनीय है।
पुस्तक कुल 88 पृष्ठों में लिखी गई है । जिसका मूल्य ₹200 है। पुस्तक के प्रकाशक ‘ग्रंथ विकास’ हैं । पुस्तक प्राप्ति के लिए ‘ग्रंथ विकास’ सी -37, बर्फखाना, राजा पार्क , जयपुर, फोन नंबर 0141 – 23 22 382 है।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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