भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक रद्द होना निराशाजनक है। पिछले वर्ष अगस्त के ही महीने में प्रस्तावित विदेश सचिव स्तर की बातचीत के नहीं हो पाने के बाद से दोनों देशों के बीच ठोस संवाद की यह पहली कोशिश थी। पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने भारत पर वार्ता की नयी शर्तें थोपने का आरोप मढ़ा है। उनका कहना है कि कश्मीर के अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से मुलाकात की उनकी पुरानी परंपरा रही है और भारत उन्हें ऐसा करने से रोक रहा था। भारत ने स्पष्ट तौर पर इन आरोपों को नकार दिया है।
सरताज अजीज राजनीति और कूटनीति का लंबा अनुभव रखते हैं। अगर वह इस बातचीत के महत्व और अपनी जिम्मेवारी को सही तरह से समझ रहे होते, तो यह निराधार आरोप लगाते ही नहीं। सुरक्षा सलाहकारों की यह बैठक दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की उफा में हुई मुलाकात में तय हुई थी। उस समय जारी साझा बयान में यह साफ कहा गया था कि सुरक्षा सलाहकार आतंकवाद से जुड़े सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे। उक्त बयान में कश्मीर का कोई जिक्र नहीं था। ऐसे में सरताज अजीज द्वारा कश्मीर को एजेंडे में लाने की कोशिश न सिर्फ पाकिस्तान के गैरजिम्मेवाराना रवैये का परिचायक है, बल्कि आतंकवाद के विरु द्ध उसके सतही और लापरवाह रु ख का भी सूचक है। अगर भारत को निर्धारित एजेंडे से बाहर जाकर बात करनी होती, तो वह भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान द्वारा लगातार किये जा रहे युद्धविराम के उल्लंघन का मुद्दा भी उठा सकता है।
चूंकि इस बातचीत का एकमात्र विषय आतंकवाद, पाकिस्तान द्वारा भारत में आतंकवाद को समर्थन तथा भारत में आतंकी गतिविधियों और साजिशों को अंजाम देनेवाले खतरनाक अपराधियों के पाकिस्तान में होने के बारे में था। वार्ता रद्द करने के पाकिस्तान के फैसले से यह बात साफ हो जाती है कि वह भारत के सवालों का सामना करने से बचने की कोशिश कर रहा है। वह उन सबूतों को नकारने में अक्षम है, जो भारत ने उसके सामने रखा है। वह हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, नावेद जैसे जीते-जागते आतंकवादियों से संबंधित दस्तावेजों को खारिज करने से बचना चाह रहा है। पिछले चार सालों में युद्धविराम का एक हजार से अधिक दफा उल्लंघन कर गोलीबारी करनेवाला पाकिस्तान इस सच को झूठ तो नहीं कह सकता है कि तीन सालों में सीमा पार से भारत में एक हजार से अधिक बार घुसपैठ की घटनाएं हो चुकी हैं। वर्ष 1993 में हुए मुंबई धमाकों और 2008 के मुंबई हमले की साजिशें रचनेवाले आज भी भारत को लहू-लुहान करने की कोशिशों में लगे हैं। गुरदासपुर और उधमपुर में हुए हालिया हमले इस बात के पुख्ता सबूत हैं।
ऐसे में पाकिस्तान के पास कश्मीर राग फिर से अलापने के अलावा कोई और चारा नहीं है। सरताज अजीज ने फिर उन आरोपों को दुहराया है कि भारत उनके देश में आतंकवादी गतिविधियों को शह देता है। अगर इन आरोपों के कोई सबूत हैं, तो उन्हें इस वार्ता में हिस्सा लेकर उन्हें भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के सामने रखना चाहिए था। अगर दोनों देशों के संबंधित अधिकारी आमने-सामने बैठेंगे, तभी तो इन मसलों पर कोई ठोस पहल कर पाना संभव होगा। भारत ने हमेशा इस बात को रेखांकित किया है कि कश्मीर दोनों देशों के बीच एक विवादित मसला है और इसका समाधान बातचीत से ही संभव है।
वर्ष 1972 में हुए शिमला समझौते में साफ कहा गया है कि इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं हो सकती है। इसके बावजूद पाकिस्तान द्वारा कश्मीर के अलगाववादियों को इस प्रक्रि या में शामिल करने की कोशिश बेमानी जिद्द ही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कार्यभार संभालने के समय से ही पाकिस्तान से बातचीत का संकल्प रेखांकित करते रहे हैं। शपथ-ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित करने से लेकर उफा में जारी साझा बयान उनके प्रयासों के प्रमाण हैं। इसके विपरीत पाकिस्तान अब भी छद्म युद्ध के जरिये भारत को अस्थिर करने की अपनी नीति पर ही चल रहा है। पिछले वर्ष भारत ने हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तानी उच्चायोग में बुलाने के मामले पर ही विदेश सचिवों की बैठक रद्द की थी। इस बार भी भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि अलगाववादी गुटों द्वारा द्विपक्षीय वार्ता को प्रभावित करने की कोशिश स्वीकार नहीं की जा सकती है। यह कश्मीर और आतंकवाद पर हमारी सरकार के मजबूत आत्मविश्वास को प्रदर्शित करता है। भारत ने शिमला समझौते और उफा के साझा बयान की भावनाओं का पूरा आदर किया है। पाकिस्तान के उकसावे के बावजूद भारत ने बातचीत की गंभीर पहल की। इस पूरे प्रकरण पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भी नजर है और दोनों देशों की जनता भी कूटनीतिक पैंतरों को देख रही है। अगर पाकिस्तान ने अपने रवैये में बदलाव नहीं किया, तो आतंक की आग में वह भी झुलसता रहेगा और वैश्विक राजनीतिक पटल पर उत्तरोत्तर हाशिये की ओर धकेले जाने के लिए अभिशप्त रहेगा।