रावण के दस शीश और बीस भुजाओं का क्या था रहस्य
डॉ डी0 के0 गर्ग
आज कल हमको रावण की दो तरह के रूप दिखाई देते हैं एक मे एक सिर है तो दूसरे मे 10 सिर है. रामलीला मे भी उसका विशाल पुतला बनाया जाता है और उसके भी दस शिश तथा बीस भुजायें बनाई होती है। इतना ही नहीं, उसके मध्यसिर के ऊपर एक गधे का सिर भी बनाया होता है।
इतना ही नहीं रामलीलाओं मे और फिल्मी प्रदर्शन किया जाता है जिसमें ऐसा दिखाते है कि जब रामचन्द्र जी महाराज का रावण से युद्ध हुआ तो उसके सिरों को अपने वाणों से काट गिराते थे और तत्काल नये सिर पैदा हो जाते थे.
इसके पीछे क्या तथ्य है? क्या रावण के वास्तव में दस शिर और बीस भुजायें थी?क्या ऐसा सम्भव है कि सिर शरीर से अलग हो जाए और तुरंत दूसरा सिर भी आ जाए?
विशलेषण –
इस विषय में जब पड़ताल की तो कई अलग अलग विचार सामने आये इसलिए सभी विचारो पर ध्यान देकर सत्यता की पड़ताल करते है।
1. पहला विचार हैं कि रावण के दस सिर नहीं थे किंतु वह दस सिर होने का भ्रम पैदा कर देता था इसी कारण लोग उसे दशानन कहते थे। जैन शास्त्रों में उल्लेख है कि रावण के गले में बड़ी-बड़ी गोलाकार नौ मणियां होती थीं। उक्त नौ मणियों में उसका सिर दिखाई देता था जिसके कारण उसके दस सिर होने का भ्रम होता था।
2 एक अन्य विद्वान के अनुसार रावण के दस सिर होना मैं इस परिप्रेक्ष्य में स्वीकार करता हूँ कि दसों दिशाओं में उसकी ताकत और ज्ञान की तूती बोलती थी दसों दिशाओं में उसकी और उसके ज्ञान , बल की चर्चा होती थी।
3. एक अन्य विद्वान के अनुसार रावण दस मस्तक, बड़ी दाढ़ी , ताम्बे जैसे होंठ और बीस भुजाओं के साथ जन्मा था l वह कोयले के समान काला था और उसकी दस ग्रिह्वा कि वजह से उसके पिता ने उसका नाम दशग्रीव रखा था l इसी कारण से रावण दशानन, दश्कंधन आदि नामों से प्रसिद्ध हुआ l
4. बाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था इसीलिए उसे दसकंठी और दशानन भी कहा जाता था। दसकंठी कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके दस सिर मान लिए गए।
विभिन्न मान्यताओं से तो यही अर्थ निकलेगा की अपनी -अपनी ढपली ,अपना -अपना राग ऐसा तब होता है जब एक ही वाक्य या सन्देश के कई अर्थ निकाले जाये और असलियत को समझने या गहन चिंतन का कोई प्रयास न करे क्योकि एक शब्द है ` क्या फरक पड़ता है ‘ श्रोता /पाठक शांत है और अंधविश्वासी है और कथाकार, फिल्म द्वारा भरपूर मनोरंजन हो रहा है, एक विलेन है तो एक हीरो.
हम लोगों की समझ संकृण है। और किसी ने भी ये चेष्टा नहीं की कि रामायण का मूल रूप और मूल भाव को समझना चाहिए।
रामायण जो टी वी पर हमने देखी है, वो एक मनोरंजन है और टीवी सेरिएल के शुरुआत में ही लिख दिया है की ये सेरिएल प्रामाणिक नहीं है ।
प्रश्न एक और भी है कि इस प्रकार की विकृति वाला मनुष्य जिवित नहीं रह सकता है और यदि जिवित है तो उसकी और दुर्गति है क्योंकि कुछ नहीं कर सकता. लेकिन सृष्टि से अभी तक इस प्रकार का कोई उदाहरण नहीं मिला कि कोई 10 सिर, 20 भुजा वाला पैदा हुआ है, इस से लगता है कि ये एक कहावत है.
जैन साहित्य मे जो 10 मणियों वाली बात है वो उस से प्रतीत होता है कि कुछ छुपाने के लिए तुकबंदी की गई है.
सिर काट दिया फिर जुड़ गया इसका कारण बता दिया कि रावण मायावी था. इस सिर काटने वाले खेल में हाथ पैर काे काटने और फिर से जुड़ने का वर्णन नहीं है. क्या यदि १० सिर २० भुजाये मान ली जाये तो २० पैर क्यों नहीं।
ये बात भी तुकबंदी ज्यादा लगती है और प्रकृति एव विज्ञान के विरुद्ध है और बिल्कुल नकारने योग्य हैं.
यदि १० दिशाओं मे उसके ग्यान की तूती बोलने की बात को देखा जाए तो ये बात भी वहीं विद्वान कह रहे हैं जो पहले 10 सिर और 20 भुजाएं बता रहे हैं. यानी उनका विचार भी एक जगह नहीं है.
और रामायण में कोई ऐसा प्रमाण नहीं मिलता कि उसकी 10 दिशाओं मे ग्यान की तूती बोलती थीं इसलिए दशानन कहा गया.
लेकिन उपरोक्त वाक्य समझने लायक है क्योंकि यहा अलंकार का प्रयोग साफ़ दिखाई देता है. इस आलोक मे बाल्मीकि रामायण का सहारा ले तो मालूम होता है कि रावण छह दर्शन और चारों वेद का ज्ञाता था जो कि उसकी कंठस्थ थे इसलिए उसको सम्मान के रूप मे दशानन या फिर दसकंठी भी कहा गया.
रावण एक विद्वान व्यक्ति था और आर्य था परन्तु उसको गलती किये जाने के कारण लोगो ने विद्वान मानने से मना कर दिया और दशानन या दसकंठी की उपाधि को विकृत रूप दे दिया ये रावण के प्रति क्रोध के कारण किया गया ताकि इतिहास मे उसको विद्वान ना स्वीकार किया जाए.
दसकंठी या दशानन कहे जाने के कारण प्रचलन में उसके दस सिर मान लिए गए।
हम इस आधुनिक युग में रहते हुए इस बात को स्वीकार कैसे कर सकते हैं कि रावण के दस सिर थे क्योंकि दस सिरों के साथ वह अपना रहन सहन कैसे मैनेज करता होगा ये अपने आप मे ही एक सवाल है ।वही दूसरी ओर बीस भुजाओ के बारे में हम आज के युग में कह सकते हैं कि यदि किसी व्यक्ति के यहां दस कर्मचारी काम मे मदद करते है तो कहेंगे कि वह बीस हाथो से काम करता है।उदाहरण के लिए श्री मुकेश अम्बानी जी हज़ार हाथों से काम करते हैं ।
बहुत ही शोधपरक लेख के लिये साधुवाद..
कृपया रावण के पितामह ऋषि पोलितस्य के विषय मे भी लिखने का कष्ट करें!!