Categories
देश विदेश

क्या संयुक्त संस्थान को आरक्षण को समाप्त करवाने का ठेका मिला है?

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा

दो दशक पहले सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे से अनेकानेक असंवैधानिक और मनमाने फैंसले जारी हुए। जिनके कारण अजा एवं अजजा के आरक्षण को मृतप्राय कर दिया गया था। हमने अजा/अजजा संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के बैनर पर देशभर में जनान्दोलन करके, संसद और सु्प्रीम कोर्ट का घेराव करके अधिकांश फैसलों को संसद द्वारा संविधान संशोधन करवाकर निष्प्रभावी करवा दिया था। अब जब कि परिसंघ के अध्यक्ष को संघ/भाजपा ने अपने पाले में बिठा लिया है और परिसंघ भी संघ की भाषा बोलने लगा है तो देशभर का अजा एवं अजजा संगठन बिखर सा गया है। ऐसे में बेशक हमने हक रक्षक दल सामाजिक संगठन का गठन किया है, लेकिन हम अभी प्रारम्भिक दौर में हैं। इसके अलावा हमारे विरोध में मनुवादियों द्वारा संचालित धनकुबेर समता आन्दोलन समिति खुद है और उसके इशारों पर चलने वाले सजातीय मनुवादी, समता आन्दोलन के हित साधन के लिये काम कर रहे हैं। इसके बावजूद चुप तो नहीं ही रहा जा सकता!

राजस्थान में सुप्रीम कोर्ट के माधुरी पाटिल प्रकरण की सिफारिशें को लागू करवाने में समता आन्दोलन के साथ—साथ, जनजाति संयुक्त संस्थान भी आश्चर्यजनक रूप से रुचि दिखा रहा है! यह वही माधुरी पाटिल प्रकरण है जिसके चलते महाराष्ट्र में एक ही दिन मेंं लाखों लोगों के जाति प्रमाण—पत्र निरस्त हुए थे।

सर्वाधिक आश्चर्य तो इस बात का है कि समता आन्दोलन समिति खुद चाहती है कि राजस्थान में माधुरी पाटिल केस की सिफारिशें लागूू की जावें, जिससे किसी दलित—आदिवासी का जाति प्रमाण बने ही नहीं और जो बन चुके हैं वे तत्काल निरस्त हो जावें।

जिसके लिये समता समिति समिति ने पूर्वी राजस्थान के जिलों के लिये पांच हजार करोड़ से अधिक धन आबंटित कर रखा है, उनकी ओर से हर प्रकार का रास्ता अपनाया जा रहा है।

इसके ठीेक विपरीत आदिवासियों के हितों के लिये लडऩे का दवा करने वाले पूर्व न्यायाधीश याद राम मीणा और जनजाति आयोग के पूर्व निदेशक डॉ. गोविन्द सिंह सोमावत के नेतृत्व में संचालित जनजाति संयुक्त संस्थान की ओर से भी माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों को उस समय लागू करवाया जा रहा है, जबकि मीणा या मीना नाम से जनजाति प्रमाण—पत्र नहीं बन पा रहे हैं।

इसे क्या कहा जाये—राजस्थान सरकार माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों को लागू करने के लिये समय मांग रही है और समता आन्दोलन समिति और संयुक्त संस्थान तुरन्त इसे लागू करवाना चाहते हैं। ऐसे में आरक्षित वर्गों को और विशेषकर राजस्थान की मीणा/मीना जन जाति के प्रबुद्धजनों को विचार करना होगा कि क्या संयुक्त संस्थान को मीणा/मीना आरक्षण को समूल समाप्त करवाने का ठेका दे रखा है? जिनकी ओर से माधुरी पाटिल केस की आत्मघाती और मनमानी सिफारिशें लागू करवाने के लिये कोर्ट में याचिक दायर की हुई है।

यही नहीं मीणा नहीं, बल्कि मीना नाम से राजस्व जमीन/रिकॉर्ड वाले मीनाओं को जाति प्रमाण—पत्र जारी करवाने के आदेश जारी करवाने की हाई कोर्ट में याचिका दायर की जा चुकी है।

जिसका साफ अर्थ है कि जिन मीनाओं/मीणाओं के राजस्व रिकॉर्ड में मीणा लिखा होगा या जिनके पास जमीन ही नहीं होगी, उनको जनजाति प्रमाण—पत्र नहीं मिलेगा।

अब राजस्थान के विशेष रूप से मीणा—मीना समाज को शीघ्रता से तय करना होगा कि समाज चाहता क्या है? एक ओर तो हम दिन रात आरक्षण बचाने के लिये लगे हुए हैं, दूसरी ओर संयुक्त संस्थान आरक्षित वर्गों, विशेष रूप से मीना, भील, भील मीना, बैरवा सहित अनेक जाति के आरक्षण को समाप्त करवाने के लिये माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों को लागू करवाना चाहता है। क्योंकि कम्प्यूटर द्वारा अंग्रेजी में दर्ज राजस्व रिकॉर्ड में मीणा/मीना को भील को भील मीना को बैरवा को दर्ज कर रखा है।

जबकि अजा एव अजजा की सूची में इन जातियों के नाम दर्ज है। ऐसे में माधुरी पाटिल केस की सिफारिशों के लागू होते ही ऐसी सभी जातियों को जाति प्रमाण—पत्र मिलना असम्भव हो जायेगा। क्या अब भी आरक्षित और वंचित वर्गों को हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना होगा?

Comment:Cancel reply

Exit mobile version