आजकल गुजरात के पाटीदार -पटेल समाज में हार्दिक-हार्दिक की बड़ी धूम है। खबर है कि पांच-दस लाख लोग तो उसके एक इशारे पर ही सडक़ों पर निकल पड़ते हैं। उसकी लोकप्रियता से न केवल कांग्रेस के नेता परेशान हैं बल्कि भाजपा भी परेशान है। खबर तो यह भी है कि गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी पटेल और खुद भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी भी ‘हार्दिक’ शब्द सुनकर असहज होने लगे हैं। दरसल गुजरात के पटेल समाज में आक्रोश तो पहले से ही सुलग रहा था। किन्तु उसे कोई ढंग से ‘स्वर’नहीं दे पा रहा था। केसु भाई पटेल तो पहले ही मोदी जी के हाथों फऩा हो चुके थे । इसलिए अब वाइस साल के हार्दिक पटेल को गुजरात के पाटीदारों-पटेलों ने अपना एकछत्र नेता बनाकर, पटेल समाज को आरक्षण देने की जंग छेड़ दी है।
मेरा ख्याल है कि न केवल पटेल-पाटीदार, बल्कि प्रधान, पोद्दार ,मुखिया ,मौरूसी , लम्बरदार, जमींदार, सेठ , साव ,साहू और चौधरी ये सब जाति ,वर्ण या गोत्र नहीं हैं। बल्कि ये सब तो सामंकालीन सबल सक्षम समाज की पदवियाँ हैं। मध्युग में व्यवस्था संचालन के लिए राजे -रजवाड़े अपने हाकिम -कारकुन रखते थे। जाहिर है कि उन्हें राज्याश्रय भी प्राप्त था। प्रस्तुत पदवीधारी समाज खाते -पीते खास लोगों का ही हुआ करता था। अब यदि ये सनातन से सम्पन्न समाज भी मौजूदा दौर में आरक्षण मांगने की दयनीय अवस्था में आ चूका है तो उनका क्या हाल होगा ? जिनके पूर्वज पहले सिर्फ आम आदमी करते थे !यदि एनआरआई युवाओं की टोली आरक्षण मांगने के लिए ‘हार्दिक-हार्दिक’ कर रही है तो शेष बचे निर्धन भारतीयों को क्या अल्ला मियां के हवाले छोड़ा जा रहा है ? कभी भिक्षा पात्र लेकर ‘भवति भिक्षाम देहि’का नारा लगाने वाले वामनों को बड़ा गुमान था कि वे धरती के ‘भूदेव’ हैं ! किन्तु जब बौद्धों ने दंड-कमंडल पकड़ा तोअधिकांस वामन वेरोजगार हो गए ! अब साध्वी निरंजना ज्योति , साध्वी ऋतम्भरा जी, उमा भारती जी ,राधे मा जी ,रामपाल जी एवं आसाराम जी [जेल वाले] ,स्वामी रामदेव जी -पतंजलि वाले और अन्य अधिकांस साधु सन्यासी इत्यादि सबके सब ‘पिछड़े’ वर्ग के होते हुए भी जब धर्मध्वज हो गए हैं , तो उनके समाज को पिछड़ा कैसे कहा जा सकता है ?
इसी तरह अधिकांस नक्सलवादी भाई आदिवासी ही हैं। जब तक वे नक्सली हैं तब तक तो वे वामनों- ठाकरों और कायस्थों पर ही नहीं बल्कि भारत सरकार पर भी भारी हैं। किन्तु यदि वे हथियार डालकर मुख्य धारा में शामिल हो जाएँ तो वहाँ आरक्षण का पैदायशी हक भी उनका इन्तजार कर रहा है। याने चिट भी मेरी -पट भी मेरी -क्योंकि अंटा मेरे बाप का ! जाति प्रथा महा ठगनी हम जानी ,आरक्षण की अकथ कहानी ,हम जानी या तुम जानी ! संविधान की मंशानुसार भारत के निर्धन -दलित -आदिवासियों को आरक्षण दिए जाने पर तो किसी को कोई एतराज नहीं है।यह तो नितांत जरूरी है कि शोषितों -पीडि़तों को आरक्षण मिले ! किन्तु जब देश के भूस्वामी – जमींदार ,पूँजीपति ,अफसर, मंत्री और अपराधी जब तथाकथित पिछड़ी जाति के आधार पर देश की सत्ता पर अनवरत काल तक अपना प्रभुत्व बनाये रखना चाहेंगे ,तो बड़ी मुश्किल होगी। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ की यदि द्वारकाधीश – भगवान श्रीकृष्ण के वंशज पिछड़े और दरिद्र हो सकते हैं, तो निर्धन सर्वहारा – सुदामा के वंशज अगड़े कब और कैसे हो गए ? सम्राट बिन्दुसार ,चन्द्रगुप्त , अशोक, के वंशज यदि दलित और पिछड़े हो सकते हैं, तो झोपड़ी में रहने वाले लँगोटीधारी चाणक्य के वंशज अगड़े कब और कैसे हो गए ? कहीं ऐंसा तो नहीं कि संसदीय लोकतंत्र में बहुमत की दादागिरी के वास्ते , वोट की राजनीती वालों ने निरीह -निर्दोष -निधन जनता की छाती पर यह आरक्षण की दुंदभी बजाई हो !
ज्यों -ज्यों देश की जनसंख्या बढ़ती जा रही है ,त्यों-त्यों सभी जातियों -सम्प्रदायों के आधुनिक युवाओं को -आजीविका के लिए गलाकाट प्रतिस्पर्धा में जूझना पड़ रहा है। वेशक जो युवा प्रतिभाशाली हैं ,जिन्हे आधुनिक तकनीकी उच्च शिक्षा के अवसर उपलब्ध हैं, उनकी तो वर्तमान दौर के उदारीकरण,बाजारीकरण और भूमंडलीकरण के परिदृश्य में वेशक बल्ले -बल्ले है। उनमें से कोई एक सौभाग्यशाली तो गूगल का सीईओ भी बन गया है। कोई एमएनसी में प्रतिष्ठित हो चूका है। कोई यूएन सेक्रेट्रिएट में नौकरी पा गया है। कोई एक भारतीय युवा व्हाइट हाउस में ही काम पर लग गया है। कोई ऑस्ट्रलिया में ,कोई यूके में ,कोई सिंगापुर में और कोई कनाडा में भी अपनी योग्यता और हुनर का झंडा गाड़ रहा है। किन्तु यह खुशनसीबी सब को उपलब्ध नहीं है ! अधिकांस युवा जो कुदरती तौर पर वैश्विक स्तर के प्रतिभाशाली नहीं होते और जातीय तौर पर यदि वे सामान्य वर्ग से होते हैं, तो उन के लिए एमएनसी या विदेशी कम्पनियों में चांस नहीं के बराबर हैं। मजबूरी में उन्हें अपने देश में ही किसी सेठ -साहूकार की या कार्पोरेट कम्पनी के मालिक की गुलामी करनी पड़ रही है !
क्योंकि सरकारी नौकरी पर तो आरक्षित श्रेणी का बोर्ड टंगा हुआ है ! आधुनकि शिक्षा संसाधनों की बढ़त ने इधर सभी वर्ग के युवाओं को प्रतिश्पर्धा की आग में झोंक दिया है।आरक्षण के अभाव में यदि सामान्य श्रेणी के कुछ युवा प्रतिश्पर्धा में है भी तो उनके सामने जातीय आरक्षण की लौह दीवार मौत की तरह मुँह बाए खड़ी है।सूचना संचार क्रांति ने भी इसमें नकरात्मक भूमिका ही अदा की है। व्यापम काण्ड ,डेमेट काण्ड और मुन्ना भाइयों के किस्से अब आम हो चले हैं !इनमें भी सत्ताधरी वर्ग के बगलगीर और निहितस्वार्थी लोग ही संलग्न पाये गए हैं। सभी वर्गों के कमजोर युवाओं और खास तौर से अनारक्षित वर्ग के युवाओं ने इस शार्ट – कट में फंसकर ‘मरता क्या न करता ‘कि तर्ज पर अपना बहुत कुछ गंवाया है।
जन्मना सामान्य जाति के जो युवा किसी किस्म के आरक्षण की सीमा में नहीं आते .जो गरीबी-अभाव के चलते उचित शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं , ऐंसे साधनहीन युवा मामूली सी पगार और कठोर सेवा शर्तों पर 12-12 घंटे अपना श्रम बेचकर , हर किस्म के शोषण का शिकार हो रहे हैं ! इस व्यवस्था से असंतुष्ट कुछ युवा तो शहीद भगतसिंह और सफ़दर हाशमी के राह चल देते हैं।जिनका अंत केवल शहादत ही हो सकता है। और कुछ जो अक्ल के दुश्मन हैं वे जि़ंदा रहने के लिए ,चोरी-चकारी -डकैती जैसे अनैतिक रास्ते अपनाकर बेमौत मरने पर मजबूर हो जाते हैं । इसके अलावा कुछ ऐंसे भी हैं जो अपनी जातीय संख्या बल की ताकत से अपने आर्थिक-सामाजिक और राजनैतिक हितों को साधने के लिए आरक्षण की मांग उठाते हैं। वे उग्रतम आंदोलन करते हैं.रेल की पटरियाँ उखाड़ते हैं ,न्यायालय की अवमानना करते हैं ,और फिर वे राजनीति में एक ‘जातीय गैंग ‘ बनकर चुनाव में अपनी अपनी ताकत दिखलाते हैं। इनका यह शौर्य केवल आरक्षण की खुरचन खाने के लायक ही होता है।