कुछ प्राचीन शहर हैं इजराइल और यमन के।
कुछ खास इन सब मे।
खास है इनके नाम।
पहला दक्षिण इजराइल के प्राचीन शहर का.. नाम .. “शिवटा” (Shivta) !!
इसे बसाने वाले ‘नाबातियन’ ट्राइब के लोग।
ये शहर बसा है नेगेव मरुस्थल में।
इससे मात्र 43 किलोमीटर दूर और एक शहर है.. नाम है ‘तेल शिवा’ (Tel Sheva) या ‘बीर शिवा’ (Beer Sheva)।
बाइबल में एक राज्य का बड़ा नाम है.. बल्कि कई मर्तबा जिक्र भी हुआ है और वो यहूदी और इस्लाम में भी प्रचलित है।.. उस राज्य का नाम है ‘शेबा’ (Sheba) .. उसकी राजधानी यमन के प्राचीन शहर ‘शिभम’ (Shibham या Shibam) मानी जाती है. जरा नाम मे गौर करें।
ये सभी साइट्स यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल हैं।
अरबी,हिब्रू में Sheba का मतलब टीला होता है.. लाइक शिवलिंग।
ये सभी शहर कालांतर में क्रिश्चन और इस्लामिक राज के तले आते गए और बहुत से ओरिजिनल स्ट्रक्चर समाप्त होते गए। जैसे कि हमलोग रिसेंट में अफगानिस्तान में बौद्ध स्तूप और मूर्तियों को ले कर देखे।
खैर आज जब इंडिया के मंदिरों के स्ट्रक्चर और इंजीनियरिंग की बात पुनः शुरू हुई तो हम जरा फॉरेन घूमना ही पसंद किए।.. आगे और भी है।😊
✍🏻गंगवा, खोपोली से।
#अफगानिस्तान के भाग-
- अपगण-इसे अपरान्त या पश्चिम सीमा कहते थे। अतः यहां के गणों को अपगण कहते थे जिससे अफगान हुआ है। इस क्षेत्र में अपरीत था (मार्कण्डेय पुराण, ५४/४९) जहां के लोगों को आज अफरीद कहते हैं। पश्चिम में कुश द्वीप को भी अपरीक या अफ्रीका कहते थे।
- बाह्लीक- यहां के बाह्लीक (बल्ख) में इल राजा शासन करते थे (#रामायण, उत्तरकाण्ड, ८७/३), जो बाद में स्त्री हो गये और प्रतिष्ठानपुर नाम से एक अन्य नगर बसा कर रहने लगे। उस प्रतिष्ठानपुर क्षेत्र के निवासी पठान कहलाते हैं। बाद में स्त्री रूप इला के पुत्र #पुरुरवा ने #हस्तिनापुर के निकट #प्रतिष्ठानपुर नाम से अपनी राजधाई बनायी तथा प्रयाग में यज्ञ किया। उनके पौत्र #नहुष का हुण्ड दैत्य (हूण?) ने अपहरण कर लिया था। #वसिष्ठ ने उसे छुड़ा कर पालन किया और बाद में नहुष ने उसका वध किया। #महाभारत युद्ध में यहां के राजा को भी बाह्लीक कहा गया है जो शान्तनु के भाई थे। (आदि पर्व, ९४/६१)।
- गजाह्वय- नहुष वहां गजाह्वय (वर्तमान गजनी) नगर में रहते थे (पद्मपुराण, २/१०३-१०७ अध्याय)।
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देव निकाय-नहुष राजा बनने के बाद वृत्र वध के बाद कुछ दिन इन्द्र पद पर थे। तब इस क्षेत्र का नाम देव-नहुष हुआ। पण्डित मधुसूदन ओझा के अनुसार देव-नहुष से डायोनिसस हुआ था (अत्रिख्याति) जिसके वंशज बाक्कस ने यहां कुछ समय राज्य किया था। इसमं देव-निकाय पर्वत था, जिसे अब सुलेमान पर्वत कहते है।
- गान्धार, तक्षशिला-इला के पितामह सोम गन्धर्वों के राजा थे, जिनका स्थान गान्धार (वर्तमान कान्धार) था। महाभारत काल में धृतराष्ट्र की पत्नी गान्धारी यहां की थी। भगवान् राम ने भरत को गन्धर्व राज्य पर आक्रमण के लिए भेजा। भरत ने उनको पराजित कर २ नगर बसाये-तक्ष को तक्षशिला का राज्य दिया तथा पुष्कल को पुष्कलावत का।
- पञ्चगौर-ऋग्वेद (१०/७५/६) में सिन्धु के पश्चिम की ७ नदियों के नाम हैं-गोमती, तृष्टामा, सुसर्तु, रसा, श्वेती (पुराण में गौरी नदी), कुभा (काबुल), मेहन्तु। इनमें ५ नदियां बर्फीले पर्वतों पर हैं जिनको पञ्च-गौरी कहते थे। इनका क्षेत्र पञ्चगौर (पंजकोर) है। चित्रा नदी का भाग चित्राल तथा कुरुम नदी का क्षेत्र काराकोरम है (मार्कण्डेय पुराण, ५४/५०)। हंसमार्ग को हुंजा कहते हैं। पञ्चगौर से बाद में गोर राजधानी बनी जिसका राजा मुहम्मद गोरी था।
- लम्पक-यह काबुल के उत्तर लमघन है जो राजा जयपाल की राजधानी थी। (महाभारत, द्रोण पर्व, १२१/४३)
समुद्रगुप्त के समय यहां के राजाओं को देवपुत्र शाही कहते थे। उन्होंने 60 पीढ़ी तक शासन किया (अल बरूनी का भारत, अध्याय 49)। ईरान पर मुस्लिम अधिकार होने पर गजनी के शाही राजाओं ने 359 वर्षों तक उनका प्रतिरोध किया। 977 ई. में छल से सुबुक्तगीन ने अधिकार कर लिया। उसके पुत्र महमूद गजनवी ने पूर्व भाग के राजा जयपाल को पराजित किया तथा उसे सामान्य गुलाम की तरह गजनी में बेचा। बाद में उसके पुत्रों ने उसे छुड़ाया तो उसने लज्जा से आत्मदाह कर लिया। जयपाल के बाद उसके पुत्र आनन्दपाल तथा पौत्र त्रिलोचनपाल ने संघर्ष जारी रखा। इसमें कालिंजर के चन्देल राजाओं ने बहुत सहायता की। वे गजनवी को अफगानिस्तान में निर्मूल करने वाले थे। किन्तु बर्फ पड़ने के कारण वे हार गये क्योंकि उनको हिमालय पर लड़ने का अभ्यास नहीं था।
गजनवी ने 30 वर्षों में 17 बार चढ़ाई की। हर बार वह धोखे से किसी नगर में घुस कर लूटपाट करता था और भाग जाता था-आज के आतंकवादियों की तरह। कांगड़ा मन्दिर लूटने के लिए उसने अपनी सेना के सामने गायों को रख दिया जिन पर हिन्दू आक्रमण नहीं करें। कश्मीर तथा काफिरिस्तान पर भी आक्रमण किया पर वे लोग भी हिमालय पर लड़ने के अभ्यासी थे। अतः वहां से उसे भागना पड़ा। थानेश्वर तथा मथुरा से उसने काफी लूटा। पश्चिम तट पर सोमनाथ मन्दिर पर भी आक्रमण किया। कुछ क्षति पहुंचायी पर उसे भागना पड़ा (तारीख-ई-जैम-उल-मासीर, दी स्ट्रगिल फौर ऐम्पायर-भारतीय विद्या भवन पृष्ठ 20-21)। अजमेर के राजाओं से बचने के लिए मरुभूमि का मार्ग लिया। पर जैसलमेर के निकट के चौहान सामन्त घोघा राणा ने उसे पराजित किया।
1029 मे उसकी मृत्यु के बाद 1037 में उसका भतीजा सालार मसूद 11 लाख सेना ले कर आक्रमण किया। अयोध्या मन्दिर को नष्ट किया। प्रत्यक्ष मुकाबला कठिन था। अतः जब मन्दिर तोड़ने के बाद वे उत्सव मना रहे थे तो राजा सुहैलदेव (मुस्लिम इतिहासकारों का कथित नाम) ने अचानक उसे घेर लिया । उसकी सेना में कोई भी लौट नहीं सका। (शिव प्रसाद मिश्र ’रुद्र काशिकेय’ की पुस्तक तीसरा नेत्र)
भारत के पश्चिम भाग का वर्णन-मार्कण्डेय पुराण (५४/३५)-बाह्लीका वाटधानाश्च आभीरा कालतोयकाः॥३५॥
अपरान्तश्च शूद्राश्च पह्लवाश्चर्म खण्डिकाः। गान्धारा यवनाश्चैव सिन्धु सौवीर मद्रकाः॥३६॥
शतद्रुजाः कलिङ्गाश्च पारदा हारभूषिकाः। माठरा बहुभद्राश्च कैकेयाः दसमालिकाः॥३७॥
चीनाश्चैव तुषाराश्च पह्लवा बाह्यतोदराः। आत्रेयाश्च भरद्वाजाः पुष्कलाश्च कशेरुकाः॥३९॥
अपर = पश्चिम। अपरगण स्थान = अफगानिस्तान। उसका भाग आप्रीत = अफरीदी। दूर पश्चिम में आप्रीक = अफ्रीका। पारद = पार्थियन। आभीर = तक्षशिला पेशावर क्षेत्र, इन्होंने द्वारका से लौटते समय अर्जुन के साथ यादवों को लूट लिया था तथा बाद में परीक्षित की हत्या की। सिकन्दर आक्रमण के समय यहां के आभीर राजा को अम्भी कहा है। पह्लव (पल्लव) २ हैं, एक वर्तमान ईरान के पहलवी, दूसरे तमिलनाडु के पल्लव। व्यायाम करने वाले की मांसपेशियों में पल्लव (पत्ते) जैसी धारियां बन जाती हैं अतः मल्ल को पल्लव या पह्लव (पहलवान) कहते हैं। गान्धार आज का कन्दहार है, कालतोयक = कलात। यवन अरब में थे, वहां की औषधि को आज भी यूनानी कहते हैं। कैकेय = काकेशस। शतद्रुज = सतलज नदी का क्षेत्र। चर्मखण्डिका = चमड़े का दस्ताना पहनने वाले, या पशुओं को हलाल करने वाले-सम्भवतः यह अरब में इस्लाम पूर्व से चल रहा था। आत्रेय भी भारत के पश्चिमोत्तर भाग में थे-सांख्य अत्रि उस दिशा में गये थे-एट्रुस्कन्? बहुभद्र -बिखरी शक जातियां। सिन्धु-वर्तमान सिन्ध प्रदेश-सिन्धु नदी का अन्त। सौवीर -पश्चिमोत्तर प्रदेश, बलूचिस्तान-जहां बल = छावनी होती थी।
✍🏻अरुण कुमार उपाध्याय