श्रीराम तिवारी
एक उत्साही युवा हार्दिक पटेल भी उन्ही सरदार पटेल की जाति -समाज के नाम पर गुजरात में कोहराम मचाने को आतुर है।
पटेल -पाटीदार समाज के आरक्षण आंदोलन की अगुआई कर रहे हार्दिक पटेल का नारा है –
“पटेलों-पाटीदारों को आरक्षण दो या आरक्षण को ही समाप्त करो ,वरना आइन्दा गुजरात में कमल नहीं खिलेगा ”
उसका यह उद्घोष बहुतों को जचा होगा ! मुझे हार्दिक के इस नारे पर आपत्ति है ! मेरा विवेक कहता है कि काश हार्दिक पटेल ने कहा होता कि;-
” देश के तमाम भूमिहीन-खेतिहर मजदूरों ,शिक्षित/अशिक्षित – सभी जाति -मजहब के वेरोजगार युवाओं और वास्तविक कमजोर वर्ग के साधनहीन भारतीयों को आरक्षण दिया जाए !”
यदि हार्दिक या कोई और व्यक्ति ,संगठन अथवा राजनैतिक पार्टी इस तरह का आंदोलन करे तो भारत के करोड़ों युवा उसका समर्थन करेंगे । लेकिन तब वह केवल पटेलों का नेता नहीं होगा ! तब वह तोगड़िया जी की तरह केवल हिन्दुओं का नेता नहीं होगा ! तब वह ओवैसी जी की तरह केवल मुस्लिमों का नेता नहीं होगा ! बल्कि तब वह लेनिन,फीदेल कास्त्रो ,हो-चीं -मिन्ह या गांधी जैसा -पूरे देश का नेता होगा । और तब वह न केवल गुजरात में बल्कि पूरे देश में ‘कमल खिलने’ से रोकने में सक्षम होगा ! तब वह भारत को पंजे की पकड़ से भी मुक्त करने में सफल होगा !
अभी गुजरात में पटेल-पाटीदार जो भी कुछ कर रहे हैं इससे भाजपा और मोदी सरकार पशोपेश में हैं। संघ वाले भी आपाधापी में चकरघिन्नी हो रहे हैं। किन्तु कांग्रेस और विपक्ष को भी ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं है। क्योंकि इस पटेल वाद से प्रेरित आंदोलन का ऊंट किस करवट बैठेगा यह अभी इतिहास के गर्भ में छिपा हुआ है। देश में कभी जाट,कभी गूजर ,कभी पटेल और कभी अलां -कभी फलाँ के जातीय आरक्षणवादी आंदोलन से देश के सर्वहारा वर्ग के संघर्षों को भी कोई मदद नहीं मिलेगी। इस तरह के जातीय उन्माद और उनके नेताओं के भड़काऊ भाषणों से न केवल गुजरात बल्कि पूरे भारत में अराजकता व अशांति फैलेगी। इस तरह के विमर्श से वैश्विक स्तर पर भी भारत की बड़ी बदनामी ही होगी ! भारत के दुश्मन मजाक उड़ाकर कहेंगे कि जिस गुजरात के विकास को भारत के विकास का माडल बताया जा रहा है ,उस भारत की असल तस्वीर यही है !
याने भारत के जो युवा अमेरिका और कनाडा में सफलता के झंडे गाड़ रहे हैं यदि उनके ही बंधू-बांधव भारत में और ख़ास तौर से गुजरात में अपने ही मादरे-वतन में आरक्षण के लिए पथ्थरबाजी कर रहे हों ,बसों में आग लगा रहे हों ,दुकानों में आग लगा रहे हों ! तब यूएन में स्थाई सदस्य्ता की दावेदारी का हश्र क्या होगा ? जो लोग पटेलों ,गूजरों ,जाटों और अन्य तथाकथित पिछड़ी जाति को आरक्षण के लिए भड़का रहे हैं वे यह याद रखें कि आरक्षण की वैशाखी से भले ही किसी समाज विशेष के कुछ युवा -कलक्टर,एसडीओ,एसपी या बाबू बन जाएँ ,किन्तु इससे उनके समाज के अधिकांस लोग वंचित ही रहेंगे। साथ ही आरक्षण की वैशाखी के सहारे चलने वाले अच्छे -खासे हष्टपुष्ट लोग भी स्थाई अपंगता के शिकार होंगे ! उनकी भावी पीढ़ियाँ भी नितांत अकर्मण्य और निठल्ली होती जायेंगी ! आरक्षण नहीं होने पर भी निम्न आर्थिक वर्गों के कुछ युवा आज जिस ठाठ से सीना तानकर अपनी प्रतिभा -क्षमता का लोहा मनवा रहे हैंवह गौरव अतुलनीय है ! सीमाओं पर अपनी वीरता और शौर्य का जो प्रदर्शन कर रहे हैं वे ही राष्ट्र के असली हीरो हैं ! जातीयता के नाम पर आरक्षण की मांग उठाने वाले जो भीड़ जुटा रहे हैं वह भेड़ों का रेवड मात्र है ! उनके जातीयतावादी नेता देश के हीरो नहीं हो सकते। बल्कि ये आरक्षण की वैशाखी मांगने वाले और आरक्षण की पीढ़ी -दर -पीढ़ी मलाई खाने वाले यह याद रखें कि यह स्थाई अपंगता , वंशानुगत कायरता का लज्जाजनक आह्वान है !
जो जातिवादी नेता लोग आरक्षण – जातिवाद से वोट बटोरने का लोभ-लालच पालते हैं वे देश भक्त कदापि नहीं हो सकते ! वेशक वर्तमान में और अतीत में भी कुछ ऐंसे लोग जातीय आरक्षण का लाभ उठा चुके हैं। ये लोग वास्तविक गऱीबों से तो ज्यादा मालदार ही रहे होंगे ! मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐंसे सैकड़ों चालु लोगों को जानता हूँ जो जातीय आधार पर आरक्षण ले रहे हैं। जिन्हे आरक्षण मिला वे आरक्षण से पूर्व भी मेरी व्यक्तिगत माली हैसियत से सैकड़ों गुना धन -सम्पन्न और ताकतवर रहे हैं ! लेकिन हत भाग्य ! जातीयता और उसके वोट बैंक की लोकतंत्र लीला ने सामान्य वर्ग के निर्धन जनों को उन की कुलीनता के लिए निरतंर दण्डित किया है ! कोई मजदूर ,सर्वहारा यदि ब्राह्मण ,क्षत्रीय ,वैश्य कुल में जन्मा है तो इसमें उसकी क्या गलती हो सकती है ? इसी तरह कोई व्यक्ति यदि जातीय रूप से आरक्षित कुल में जन्म लेता है तो उसकी उसमें क्या महानता हो सकती है ? जब दोनों ही इंसान हैं ,दोनों ही भारतीय हैं , दोनों ही शारीरिक और मानसिक रूप से एक समान हैं, जब दोनों के वोट की कीमत एक सी है तो यह आरक्षण जस्टीफाई कैसे किया जा सकता है ?
एक को राजकीय संरक्षण याने आरक्षण और दूसरे के पैरों में गुलामी की बेड़ियां ! कहीं ये किसी एक व्यक्ति की निजी खुन्नस का परिणाम तो नहीं ? इसके अलावा पिछड़े वर्ग की सूची -मंडल कमीशन की रिपोर्ट ,इत्यादि के विमर्श में क्या गारंटी है कि यथार्थ के धरातल पर ही फैसले लिए गए हों ? यदि अब उसी गलती को आधार बनाकर शेष सबल समाज के लोग भी अपने आपको पिछड़ा बताकर आरक्षण की मांग कर रहे हैं तो क्या यह इतिहास की ही भयंकर भूल नहीं है ? अधिकांस आरक्षण धारी वर्ग के अफसर मंत्री और निर्वाचित नेता -जन प्रतिनिधि अब आर्थिक -राजनैतिक दुरूपयोग में मशहूर हो रहे हैं। इसी से प्रेरित होकर कुछ मुठ्ठी भर लोग इस तरह के जातीय पिछड़ेपन को ढाल बनाकर न केवल उनके ही समाज बंधुओं को बल्कि पूरे देश से ही छल कर रहे हैं। वे कितना ही आरक्षण का फायदा उठा लें ,किन्तु अंततोगत्वा उन्हें भी पश्चाताप के अलावा कुछ भी हाथ नहीं आने वाला ! यदि हार्दिक पटेल और उसके समाज में बाकई ‘सरदार पटेल ‘ वाला कोइ सार्थक संघर्ष का माद्दा है , तो वे भारत के ‘केंद्रीय श्रम संगठनों’ के साथ एकजुटता कायम कर अपनी ताकत का सही इस्तेमाल करें और नया इतिहास बनायें ! केवल अपने समाज के लिए आरक्षण मांगना ,उसके उसके लिए आंदोलन चलाना देश हित में कदापि नहीं है !