सुरेश हिंदुस्थानी
देश में किसी भी समाज को प्रगति करने से रोकना है तो उसे आरक्षण की वैसाखियों का सहारा प्रदान कर दीजिये। वह समाज अपने आप ही पतन की ओर अपने कदम बढ़ा देगा। वास्तव में देखा जाये तो आरक्षण समाज की धरातलीय प्रगति और विकास का आधार कभी बन ही नहीं सकता। जो लोग आरक्षण के सहारे विकास का सपना देख रहे हैं वे सभी किसी न किसी रूप में अपने समाज की प्रगति और विकास को जाने अनजाने में रोकने का ही काम करते हुए ही दिखाई देते हैं।
कहा जाता है कि प्रतिभाएं कभी किसी सहारे की तलास नहीं करतीं। प्रतिभा हमेशा किसी न किसी रूप में छलक कर बाहर आ ही जाती है। जो लोग आरक्षण की मांग कर रहे हैं, वे मूलतः अपने समाज की आगामी पीढी के लिए हीनभावना को विकसित करने का मार्ग बना रहे हैं। कौन नहीं जानता कि आज के समय में जिन समाजों को पूर्व से आरक्षण की सुविधा प्राप्त है, उन्हें समाज नीची जाति की संज्ञा देता है। वास्तव में आरक्षण ऊंचनीच का भाव पैदा करने का माध्यम है। जो भारत की सांस्कृतिक अवधारणा को खत्म करने जैसा कदम है।
हम यह भी जानते हैं कि जब तक भारत के ताने बाने में यह ऊंचनीच का भाव विद्यमान रहेगा, तब तक भारत आगे बढ़ने का मार्ग तैयार करने में असमर्थ ही होगा। अंग्रेजो ने यही तो किया था, यहां के समाज में फूट पैदा करके उन्होंने पूरे देश को ही गुलामी की जंजीरों में जकड़ लिया था। वर्तमान में आरक्षण की मांग करने वाले लोग सीधे तौर पर समाज में फूट पैदा करने का ही मार्ग तैयार कर रहे हैं। इस प्रकार का काम करने वाले लोग देश और समाज के दुश्मन हैं। वास्तव में ऐसे लोगों को काम से काम एक बार तो देश का ख्याल करना चाहिए।
गुजरात में चल रहे आरक्षण आंदोलन के पीछे केवल यही बात सामने आ रही है कि उसमें आरक्षण कम और राजनीतिक उद्देश्य ज्यादा दिखाई दे रहा है। शांति प्रिय गुजरात में उथल पुथल मचाने के लिए किये जा रहे इस आंदोलन के सहारे किसी को फायदा मिले या न मिले, लेकिन एक दो व्यक्ति नेता जरूर बन जाएंगे। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता के रूप में जाने जा रहे, हार्दिक पटेल वास्तव में पूरे गुजरात में नेता बनने का दिवास्वप्न देख रहे हैं, लेकिन यह बात याद रखना चाहिए कि देश के सभी वर्गों के आदर के पात्र बने पटेल समाज के मार्गदर्शक सरदार वल्लभ भाई पटेल देश की राजनीति के नीति निर्धारक रहे, क्या उन्होंने कभी आरक्षण का सहारा लिया। वर्तमान में गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल स्वयं पटेल समुदाय से सरोकार रखती हैं, यह सब उनकी खुद की प्रतिभा के कारण ही है। मेरा मानना तो यह है कि देश से आरक्षण की व्यवस्था समाप्त होना चाहिए। जो व्यक्ति इस प्रकार के आंदोलन करके आरक्षण की मांग करते हैं उनको यह बात सोचना चाहिए कि इस प्रकार की मांग के सहारे वे कहीं न कहीं समाज की प्रतिभाओं का हनन तो नहीं कर रहे। क्योंकि आरक्षण के सहारे निश्चित रुप से समाज के वे लोग नौकरियों में जाएंगे जो उन नौकरियों के लिए योग्य ही नहीं है। आरक्षण की मांग करना देश की प्रतिभा के साथ एक मजाक है अगर यह लोग वास्तव में ही समाज का उत्थान चाहते हैं, तो समाज के अंदर शिक्षा के प्रति जो अलगाव पैदा हो रहा है, उसको दूर करने का सफल प्रयास करना चाहिए। समाज के बालकों की उचित शिक्षा प्रबंधन ही समय की धारा के साथ चलने का सामर्थ्य पैदा कर सकता है। वास्तव में किसी की प्रतिभा और क्षमता का आंकलन करना है तो, उसे संसार में खुला छोड़ दो, प्रतिभाशाली व्यक्ति अपनी अलग पहचान के साथ पूरी भीड़ में भी दिखाई दे जायेगा। आरक्षण की मांग करने वाले समाज के पास खुद के बलबूते पर अपनी काबिलियत दर्शाने का जोश नहीं होता। वे अपनी नाकामी को भी समयानुकूल दिखाने का व्यवहार करते दिखाई देते हैं।
जहां तक गुजरात में चलाये जा आरक्षण के आंदोलन का सवाल ही तो सबसे पहले यह जानना जरूरी है, कि कहीं इस आंदोलन के माध्यम से राजनीति तो नहीं की जा रही। अगर यह सत्य है तो इसे सीधे तौर पर देश विरोधी कदम ही माना जाएगा। क्योंकि आंदोलनों के सहारे जो अप्रिय घटनाएं होती हैं, उससे सरकार का तो नुकसान दिखाई देता है, लेकिन सत्य यह है कि यह हम सबका नुकसान है। राजस्थान में चला जाट आरक्षण आंदोलन पूरे भारत के रेल विभाग के आवागमन को प्रभावित कर गया था। आरक्षण आंदोलन के कारण उपजी अव्यवस्थाओं ने कई ट्रेनों के मार्ग परिवर्तित कर दिए थे। इसमें सीधे तौर पर आम जनता का ही नुकसान हुआ।
हम जानते हैं कि हमारे देश ने ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया था, इसलिए यह तो कहा ही जा सकता है कि पुरातन काल से ही भारत की भूमि ने प्रतिभाओं को जन्म दिया है। आज जो समाज आरक्षण का लाभ ले रहा है। उनके समाज में उस समय भी प्रतिभा पैदा हुई थीं। इसलिए यह तो तय है कि आज भी भारत के अंदर प्रतिभाएं जन्म लेती हैं। लेकिन हमारा समाज इस सत्य को भूल गया है। यह सब स्वार्थी सोच और मेहनत से जी चुराने का ही परिणाम है। हमारे अंदर सुशुप्तावस्था में जो प्रतिभा विद्यमान है, उसका विकास करने मार्ग तैयार करना चाहिए।
आरक्षण के सहारे जो व्यक्ति नौकरी प्राप्त करता है, वह सामान्य व्यक्ति के समक्ष अयोग्य ही होता है। इसे एक उदाहरण के साथ समझा जा सकता है। किसी प्रतियोगी परीक्षा में सामान्य वर्ग का परीक्षार्थी अगर 80 प्रतिशत अंक हासिल करके नौकरी प्राप्त करता है और अगर आरक्षण प्राप्त सभी व्यक्तियों के 25 प्रतिशत से भी कम अंक प्राप्त होते है तो नियमानुसार निर्धारित संख्या को उतने प्रतिशत पर भी नौकरी मिल जायेगी। हम जानते हैं कि किसी भी परीक्षा को पास करने के लिए कम से कम 33 प्रतिशत अंकों की जरूरत होती है, लेकिन आरक्षण के तहत व्यक्ति अयोग्यता की श्रेणी में होने के बाद भी 80 प्रतिशत वाले के समान नौकरी प्राप्त करने में सफल हो जाता है। यह योग्य व्यक्ति के अधिकार को समाप्त करने के समान ही माना जाएगा।
भारत सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में युवाओं से आह्वान करते हैं कि देश में बौद्धिक विकास बहुत जरूरी है, लेकिन यह भी तय है कि यह सोच केवल सरकारी स्तर पर पूरी नहीं की जा सकती, इसके लिए जागरूक व्यक्ति और संस्थाओं को सरकार का साथ देना होगा, तभी बौद्धिक विकास की अवधारणा को धरातल पर उतारा जा सकता है। बरना यह भी एक सरकारी कार्यक्रम बनकर केवल फाइलों में कैद होकर दम तोड़ देगा।