कब, क्यों और किसलिए मनातें है रक्षाबंधन का पर्व
श्रावण पूर्णिमा के दिन शनिवार 29 अगस्त को रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन दोपहर 1.50 बजे तक भद्राकाल होने के कारण राखी बांधने का शुभ मुहूर्त इसके बाद ही है। भद्राकाल में राखी बांधना शास्त्रों में वर्जित माना गया है। ज्योतिषाचार्य रोहित वशिष्ठ ने बताया कि भाई-बहन के पावन प्रेम के प्रतीक रक्षाबंधन पर इस बार भी लोगों को अपनी कलाई पर राखी बंधवाने के लिए दोपहर तक इंतजार करना पड़ेगा। यह संयोग ही है कि वर्ष 2013, 2014 के बाद अब 2015 में लगातार तीसरे साल रक्षाबंधन पर भद्रा की साया है। दोपहर 1.50 तक भद्रा होने की वजह से भाइयों की कलाइयां सज सकेंगी।
रोहित वशिष्ठ ने कहा कि भद्रा पर शुभ कार्य नहीं किए जाते। भद्रा में यात्रा, विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, रक्षाबंधन जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। भद्रा का संबंध सूर्य और शनि से है। शास्त्रनुसार यह त्योहार 1.51 बजे के बाद शुरू किया जाए तो अच्छा रहेगा। यदि परिस्थितिवश भद्रा काल में यह कार्य करना हो तो भद्रा मुख को त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में इसे करना चाहिए। इस कारण से अत्यंत आवश्यक होने पर 29 अगस्त को सुबह 10.15 बजे से 11.16 बजे तक भद्रा पुच्छ काल में यह कार्य किया जा सकता है। जब भी कोई कार्य शुभ समय में किया जाता है, तो उस कार्य की शुभता में वृद्धि होती है। भाई-बहन के रिश्ते को अटूट बनाने के लिए राखी बांधने का मुहूर्त समय में करना चाहिए।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
रक्षा बंधन भाई और बहन के रिश्ते की पहचान माना जाता है। राखी का धागा बांध बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का प्रण लेती है। यूं तो भाई-बहनों के प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं, लेकिन रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है। रक्षाबंधन के संदर्भ में भी कहा जाता है कि अगर इस पर्व का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व नहीं होता तो शायद यह पर्व अब तक अस्तित्व में रहता ही नहीं।
महाभारत में रक्षाबंधन
महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी। शिशुपाल का वध करते समय कृष्णकी तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दी थी। यह भी श्रवण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था।
हुमायूं ने निभाई राखी की लाज
चित्ताैड़ की विधवा महारानी कर्मावती ने जब अपने राज्य पर संकट के बादल मंडराते देखे तो उन्होंने गुजरात के बहादुर शाह के खिलाफ मुगलसम्राट हुमायूंको राखी भेज मदद की गुहार लगाई और उस धागे का मान रखते हुए हुमायूं ने तुरंत अपनी सेना चित्ताैड़ रवाना कर दी। इस धागे की मूल भावना को मुगल सम्राट ने न केवल समझा बल्कि उसका मान भी रखा।
सिकंदर ने अदा किया राखी का कर्ज
कहते हैं, सिकंदर की पत्नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बांध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवन दान दिया था
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