इन दिनों उत्तर भारत के कई राज्यों में डेंगू ने फिर से कहर बरपाना शुरू कर दिया है। माना कि इस रोग की अभी तक कोई एक खास दवा ईजाद नहीं हुई है और न ही इसकी रोकथाम के लिए फिलहाल कोई टीका(वैक्सीन) उपलब्ध है, फिर भी लक्षणों के आधार पर समय रहते इस रोग का इलाज किया जा सकता है। वहीं कुछ सजगताएं बरतकर डेंगू से बचाव भी संभव है…
पिछले कुछ सालों से डेंगू के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। बढ़ता शहरीकरण, अनियमित रूप से कालोनियों का निर्माण, मूलभूत सफाई सुविधाओं की कमी इस भयंकर बीमारी के फैलने के कुछ प्रमुख कारण हैं। भारत में जुलाई से दिसम्बर तक हजारों लोग डेंगू की चपेट में आते हैं।
वाइरस के 4 टाइप
डेंगू नामक वाइरस के संक्रमण से यह बीमारी होती है। यह वाइरस मादा मच्छर एडीज इजिप्टी केकाटने से व्यक्ति के खून में चला जाता है। वाइरस के 4 टाइप हैं। टाइप-1, टाइप-2, टाइप-3 और टाइप-4। एक वाइरस से इंफेक्शन के बाद दूसरे टाइप से डेंगू दोबारा हो सकता है। दोबारा होने वाले डेंगू को सेकंडरी डेंगू कहते हैं और यह पहली बार हुए इंफेक्शन से ज्यादा खतरनाक होता है। ऐसे रोगियों में जटिलताएं होने (कॉम्पलीकेशन) का खतरा ज्यादा होता है।एडीज मच्छर साफ पानी में रहता है और ज्यादातर दिन के समय काटता है।
सामान्य लक्षण
– बुखार होना।
– शरीर में दर्द और सिर दर्द होना।
– पेट दर्द, उल्टी और भूख न लगना।
– पेट में और शरीर में सूजन।
– उल्टी होना या दस्त में खून आना।
– शरीर पर लाल निशान या चकत्ते पडऩा।
– सांस लेने में तकलीफ होना।
जटिलताएं
डेंगू से पीडि़त लगभग 90 प्रतिशत मरीजों में ज्यादा जटिलताएं नहीं होतीं, परन्तु लगभग 10त्न लोगों को कई जटिलताएं हो सकती हैं। यही नहीं लगभग 0.5 से 1 प्रतिशत पीडि़त लोगों की जान जाने का खतरा भी रहता है। डेंगू की गंभीर स्थिति में विभिन्न जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं…
1. शरीर के किसी हिस्से से रक्तस्राव होना जैसे उल्टी, थूक या मल-मूत्र में खून आना।
2. ब्लडप्रेशर का लो होना, जिसे डेंगू शॉक सिन्ड्रोम कहते हैं। इसमें शरीर के विभिन्न अंगों को ठीक से रक्त प्रवाह नहीं हो पाता।
3. गुर्दे पर असर और पेशाब न आना या कम आना।
4. लिवर पर असर पडऩा और कुछ मामलों में लिवर फेल्यर होना।
5.हृदय गति कम होना, हार्ट ब्लाक होना या हृदय कोशिकाओं का सुचारु रूप से काम न करना।
6. दौरे आना और बेहोशी छा जाना।
गौरतलब है कि प्लेटलेट कम होना डेंगू के इंफेक्शन का स्वाभाविक लक्षण है।अनेक मामलों में डॉक्टर के परामर्श पर दवा लेने पर डेंगू 8 से 10 दिनों में स्वत: ही ठीक हो जाता है।
उपचार
डेंगू फीवर का कोई सुनिश्चित इलाज नहीं है। इसका उपचार लक्षणों के आधार पर किया जाता है। जैसे बुखार उतारने के लिए पैरासीटामॉल का उपयोग किया जाता है। रोगी को ज्यादा से ज्यादा मात्रा में तरल पदार्थ जैसे पानी, ओआरएस का घोल, नींबू पानी, लस्सी, जूस, दूध आदि दें। उसे ये तरल पदार्थ समय-समय पर देते रहें। हल्का खाना दें। पीडि़त व्यक्ति को फलों का सेवन ज्यादा करना चाहिए। डेंगू का अभी तक टीका उपलब्ध नहीं है। रोग का समय रहते पता चलना और इससे बचाव करना ही बेहतर है।
इन सुझावों पर भी ध्यान दें…
– बुखार के लिए पैरासीटामॉल आदि का इस्तेमाल करें।
– एस्प्रिन, इबूब्रूफेन आदि दवाएं न लें, क्योंकि इनसे प्लेटलेट्स कम हो जाती हैं।
– यदि प्लेटलेट 10,000 से कम हो या शरीर के किसी भाग से ज्यादा मात्रा में रक्तस्राव हो, तभी प्लेटलेट का ट्रांसफ्यूजन लाभकारी होगा।
– बीमारी से घबराएं नहीं। डॉक्टर की सलाह लें।
बचाव
– अपने आस-पास सफाई का ध्यान रखें। साफ-सुथरी जगह पर मक्खी-मच्छर कम पनपते हैं। और कम बीमारियां फैलती हैं।
– मच्छर ठहरे पानी में पनपते हैं। नालियों की सफाई करवाएं और गड्ढे आदि भरवाएं।
– अगर जल-निकास संभव न हो, तो उसमें कीटनाशक दवा या कैरोसिन का तेल डालें।
– घर में या आसपास पड़े बर्तन, मटके, डब्बे, गमले, टायर आदि में पानी न होने दें।
– बरसात के दिनों में मच्छरों से बचने के लिए पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े जैसे पूरी बाजू का कुर्ता और पायजामा, सलवार आदि पहनें।
– सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करें।
डॉ.सुशीला कटारिया
सीनियर फिजीशियन