वैदिक संपत्ति
गतांक से आगे…
जिस तरह उपनिषदों में मिलावट है, उसी तरह गीता में भी मिलावट है।इस जमाने में लोकमान्य तिलक जैसा गीता का विद्यार्थी और दूसरा नहीं हुआ। गीता की मिलावट के विषय में गीतारहस्य भाग 3,पृ. संख्या 536 में आप कहते हैं कि, ‘जिस गीता के आधार पर वर्तमान गीता बनी है, वह बादरायणचार्य के पहले भी मौजूद थी’। कोई गीता बादरायणचार्य के पहले मौजूद थी या नहीं और बादसरायण कौन है, इन बातों की यहां व्याख्या करने की आवश्यकता नहीं है।यहां तो यही देखना कि यह संपूर्ण वर्तमान गीता मूलगीता नहीं है।यह मूल गीता के आधार पर बनी है।पर मूलगीता कितनी थी इसका अनुमान करना कठिन है।हां, एक गीता अभी हाल ही में प्रसिद्ध प्रवासी मिस्टर एन० जी० देसाई को भारत से दूर बालीद्वीप में मिली है जो भीष्मपर्व के अंदर हैं और उसमें कुल 70 ही श्लोक पाये जाते हैं।यह भीष्मपर्व हस्तलिखित प्राचीन पुस्तक है। किंतु हम देखते हैं कि, वर्तमान जी का में 700 श्लोक हैं।इससे ज्ञात होता है कि सिर्फ एक शून्य ही बढ़ाया गया है।बढाने के बाद तब और भी अधिक द्दढ़ हो जाती है,जब हम देखते हैं कि इस पर शंकराचार्य से पूर्व पृथक रूप से किसी अन्य कि टीका नहीं मिलती और मैं शंकर के पूर्व महाभारत से पृथक इसका अस्तित्व ही पाया जाता है इसके अतिरिक्त गीता के 18वें अध्याय के अंत में संजय कहते हैं कि –
व्यासप्रसादात श्रुतवानेतद गुह्यमहं परम।
योगं योगेश्वरात् कृष्णात् साक्षात् कथयतः स्वयम्॥
अर्थात व्यास की कृपा से मैंने इस परमगुह्म योग कों योगीराज कृष्ण से सूना। संजय ने कृष्ण से सुना, पर व्यास की कृपा से,यह कैसी बात है? क्या व्यास संजय को अपने साथ लेकर वहां गए थे, जहां कृष्ण अर्जुन को उपदेश कर रहे थे ? ऐसा तो कहीं वर्णन नही है और वह इस श्लोक से ही यह बात सिद्ध होती है। संजय तो खुद धृतराष्ट्र से युद्ध का हाल कह रहे हैं।व्यास से पहिले तो सारा हाल संजय को ही मालूम होता था। यह ठीक भी है।राजा के लिए तो उनको सब हाल पहले मिलना ही चाहिए। संजय ने बंदोबस्त कर रखा होगा कि,जिससे सब हाल मिलता रहे। व्यास को तो संजय के द्वारा हाल मिला होगा,पर उनकी व्यास के प्रसाद से गीता सुनने को मिली, यह बात बड़े ही सन्देह की है।इससे तो श्लोक का यह मतलब मालूम होता है कि कृष्ण का उपदेश जो व्यास के द्वारा लिखा गया था, वह संजय को सुनने या जानने को मिला। परंतु समस्त गीता संजय और धृतराष्ट्र की बातचीत है। इस बातचीत को यदि व्यास ने श्लोकबद्व किया, तो श्लोकबद्घ करने के पहले ही संजय ने व्यास की कृपा से कैसे सुना ? इस गोलबाल से प्रकट होता है कि समस्त गीता दो संपादकों ने रची है। व्यासकृत गीता से कृष्ण का हाल संजय को मालूम हुआ, पर यह संजय -धृतष्ट्र का वार्तालाप और व्यास की कृपा की बात दूसरे संपादक की रचना प्रतीत होती है। इसी तरह ‘मुनीनां चाप्यहं व्यास:’ तथा ‘असितो देवलो व्यास:’ आदि रचना भी व्यास की नहीं है। क्योंकि वेदव्यास अपने आप को कभी न कहते ,कि सब मुनियो में व्यास परमेश्वर के तुल्य हैं अर्थात् परमेश्वर ही हैं।इसलिए गीता के यह प्रकरण प्रक्षेपित ही है। इस तरह से उपनिषदो और गीता में मिश्नण दिखलाने के बाद अब हम यह प्रतिपादन करने की चेष्टा करते हैं कि,उपनिषदों में असुरोने आसुर उपनिषद का किस प्रकार मिश्रण किया।
क्रमशः
प्रस्तुति देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन: उगता भारत
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।