भरत भूमि ने तुमको कल की
लक्ष्मी ,पदमावत माना है
उठ तुमको अपना किर्ति ध्वज
पर्वत पर लहराना है
उठ बेटी, बेजान पंख में
पुनः जोश और प्राण भरो
फिर से पावन-पुण्य धरा पर
स्व चरित्र निर्माण करो
सहज सरल व्यवहार कुशल हो
मृदु रस रखना बातों में
अपने कुल की आन-बान और
शान को रखना हाथों में
विषम समय है फौलादी
हौसलों से आगे बढ़ना है
प्रेम भंवर में फंस कर देखो
फांसी पर ना चढ़ना है
सुनो बेटियों कभी न पड़ना
जिहादियों के प्यार में
वरना एकदिन बिकना होगा
बिना भाव बाजार में
अग्नि परीक्षा दे ना सकोगी
लक्ष्मण रेखा पार न कर
लज्जा चीर बचानी है तो
उपहासों से वार न कर
यदि मर्यादा को तोड़ी
दुष्टों से ना बच पाओगी
अध्नंगे कपड़ों में कभी
इतिहास नहीं रच पाओगी
रानी ,पदमा के जोहर की
लाचारी को याद करो
रानी लक्ष्मी के साथ हुई
उस गद्दारी को याद करो
रहना सजग ये दुष्ट दुशासन
चीर ना तेरा लूट पाए
जब तक जीना गर्व से जीना
शान न तेरा टूट जाए
खुली चक्षु रख गांधारी सी
पट्टी अब ना बांधो तुम
गंगा पुत्र पितामह जैसे
मौन नहीं अब साथ हो तुम
मूक बधिर के महासभा में
बेटी अब लाचार ना हो
खुद को सक्षम करो बेटियों
ताकि तुझपे वार ना हो
रचे गए हर चक्रव्यूह का
तोड़ तुम्हारे पास हो
तुझ पर आंख उठाने वाले
का तत्क्षण ही नाश हो
आगे बढ़ और निकल पड़ो कल्पना, किरण की राहों में
मेरीकाम और उड़न परी सी
सपने बुनों निगाहों में
“ममता” की कविता से लेकर
अपना फर्ज निभा हो तुम
स्वर्णिम अक्षर में गरिमामय
गाथा दर्ज कराओ तुम
ममता उपाध्याय
वाराणसी