भारत भूमि वीरों की भूमि है। 1947 में आजादी मिलने के बाद भी इस देश के रणबांकुरों ने जब-जब दुश्मन ने चुनौती दी तब-तब उसे धूल चटाने में अपनी अप्रतिम वीरता का परिचय दिया। अब से पचास वर्ष पूर्व 1965 में पाकिस्तान को धूल चटाने वाले भारत के वीर जवान ही थे और 1971 में भारत-पाक युद्घ के समय पाकिस्तान की तिरानवे हजार सेना को आत्मसमर्पण के लिए विवश कर देने वाले जवान भी भारतीय ही थे। 1965 का युद्घ इसलिए और भी अधिक महत्वपूर्ण था कि 1962 में राजनीतिक नेतृत्व के कारण भारत की सेना को निशस्त्र होने के बावजूद इस युद्घ में सफलता मिली थी। अब रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर ने ठीक ही कहा है कि 1965 की लड़ाई के नायकों एवं प्रमुख घटनाओं के बारे में स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाना चाहिए। नई पीढ़ी को यह बताए जाने की जरूरत है कि किस प्रकार हमारे जवानों ने देश की रक्षा की खातिर अपनी जान कुर्बान की। इस मौके पर पार्रिकर ने पाकिस्तान को भी चेताया कि भारतीय सेनाएं उसे उसी की भाषा में जवाब देने में सक्षम हैं।
हम पार्रिकर की इस बात से भी सहमत हैं कि इस युद्ध के बारे में लोगों विशेष रूप से नयी पीढ़ी को अधिक जानकारी नहीं है। इसलिए वह चाहते हैं कि इस लड़ाई की महत्वपूर्ण घटनाओं और इसके नायकों से जुड़ी जानकारी को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। विशेष रूप से हाजी पीर दर्रे पर कब्जे की गाथा बच्चों को पता होनी चाहिए।
हमारे पाठ्यक्रम में जितनी शीघ्रता से वीरों का कृतित्व सम्मिलित कर लिया जाएगा उतना ही अच्छा होगा। आने वाले भारत की तस्वीर संवारने के लिए रक्षामंत्री का वक्तव्य स्वागत योग्य है।
-देवेन्द्रसिंह आर्य