*भारतीय धर्म ग्रंथो मे अलंकार रहस्य एव भ्रम निवारण* – 2
Dr D K GARG
कामदेव को भस्म करने की कथा-भाग 2
भगवान् शिव के बारे में एक कथानक प्रचलित है कि इन्होने कामदेव को भी अपने तीसरे नेत्र से भस्म कर दिया था।
विश्लेषण :इस वार्ता का क्या अभिप्राय हैं? अर्थात जो भी ब्रह्मचारी उस प्रभु के ज्ञान-विज्ञान में रमण करता रहता है, उसके ऊपर काम रूपी वासना का जाल बेकार हो जाता है और यह तीसरा नेत्र ज्ञान का ही नेत्र माना जाता है जिसका स्थान मस्तक पर भृकुटियों के मध्य में ऋषि मुनियों ने बतलाया है। इससे स्पष्ट ही यह प्रतीत होता है कि जब योगी ब्रह्म के ध्यान में दत्तचित समाधिस्थ हो जाता है, फिर भला विषय-वासनाओं का क्या काम? यह रमणीक प्रकृति तो इसकी चेरी अथवा दासी मात्र है और इसी बात को यहां अलांकारिक रूप में कामदेव को भस्म करना लिखा है। अनुभव से भी यही सिद्ध होता है कि जिस समय उस ब्रह्म का ध्यान-चिंतन हो, तब काम रूपी विषय टकरा कर चूर हो जाता है, बिल्कुल निष्प्रभाव बन जाता है। किरणों से वृष्टि होकर यहां नाना प्रकार की सोमलताएं, वनस्पतियां, अन्न आदि उत्पन्न होता है जिससे संसार में प्राणी मात्र का जीवन चलता है। दूसरी व्याख्या इस प्रकार भी कर सकते हैं कि जो महापुरूष इस संसार की सभी विषरूपी बुराइयों को पान कर जाता है, पर उनका उसके ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। एक हस्त में त्रिशूल क्या है? संसार में आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक जो तीन प्रकार के दुःख है, उनको ज्ञान-कर्म-उपासना द्वारा काबू में करना है तथा दूसरे हस्त में ड़मरू तो वेद-विद्या का गान है, जिसके द्वारा मनुष्य इस संसार में विलक्षणता को प्राप्त कर अन्त में मोक्ष का अधिकारी होता है। अनेक वेद मंत्रों में उस परम पिता मरमात्मा शिव की याचना की गई है, जो इस संसार का रचयिता है। वह शिव काल का भी महाकाल है। वेदों में शिव संकल्प सूक्त भी आता है।