मोदी सरकार के आर्थिक सुधार कार्यक्रमों के सुखद परिणाम अब नजर आने लगे हैं
प्रह्लाद सबनानी
राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने के कारण मुद्रास्फीति पर भी अंकुश पाया जा सकता है। जोकि अगस्त 2021 माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर में दर्ज की गई कमी के रूप में दृष्टिगोचर हुआ है। अगस्त 2021 माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर घटकर 5.3 प्रतिशत तक नीचे आ गई है।
वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार के स्थापित होने के बाद से आर्थिक क्षेत्र में सुधार कार्यक्रमों की घोषणा लगातार समय समय पर की जाती रही है। हालांकि, कोरोना महामारी के चलते पिछले दो वर्षों के दौरान भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में ही आर्थिक गतिविधियां विपरीत रूप से प्रभावित हुई हैं एवं देश में समय समय पर लागू किए गए विभिन्न सुधार कार्यक्रमों का सुखद परिणाम दिखाई नहीं दिया था। परंतु, अब भारत में कोरोना महामारी पर नियंत्रण प्राप्त कर लेने के बाद से आर्थिक गतिविधियों में तेजी से सुधार दृष्टिगोचर हो रहा है एवं अर्थव्यवस्था में स्पष्टतः V आकार की बहाली दिखाई दे रही है।
सबसे पहले तो कृषि क्षेत्र एवं उद्योग क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियों ने जोर पकड़ना शुरू किया परंतु अब अगस्त 2021 माह में तो सेवा क्षेत्र में भी, जो कोरोना महामारी के दौरान विपरीत रूप से सबसे अधिक प्रभावित हुआ था, आर्थिक गतिविधियों में सुधार दिखाई दिया है। अगस्त 2021 माह के दौरान सेवा क्षेत्र में पिछले 18 माह के प्रत्येक माह में हुई वृद्धि दर की तुलना में सबसे अधिक वृद्धि दर दर्ज की गई है। भारत के सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का सबसे अधिक योगदान रहता है। देश में तेजी से हो रहे वैक्सिनेशन के चलते एवं उपभोक्ताओं के क्रियाशील होने के कारण सेवा पीएमआइ इंडेक्स जुलाई 2021 माह के 45.4 की तुलना में अगस्त 2021 माह में बढ़कर 56.7 पर पहुंच गया है। इस इंडेक्स के 50 अंकों के ऊपर जाने का आशय होता है कि इस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधियों में विस्तार हो रहा है।
कर संग्रहण के मोर्चे पर भी बहुत अच्छी खबर आई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के अप्रैल 2 सितम्बर 2021 की अवधि के दौरान प्रत्यक्ष कर संग्रहण में 95 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। वित्तीय वर्ष 2020-21 के अप्रैल- 2 सितम्बर 2020 की अवधि के दौरान 1.9 लाख करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष कर संग्रहण हुआ था जो इस वर्ष इसी अवधि के दौरान बढ़कर 3.7 लाख करोड़ रुपए का हो गया है। यह आकर्षक वृद्धि दर आर्थिक क्षेत्र में किए गए सुधारों के कारण आर्थिक गतिविधियों में हुई तेजी एवं अनुपालन में हुए सुधार के चलते सम्भव हुई है। उधर, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वसूली में भी लगातार वृद्धि देखने में आ रही है एवं यह अब प्रति माह एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के स्तर पर पहुंच गई है। अप्रैल 2021 माह में तो वस्तु एवं सेवा कर की वसूली, पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए, 1.41 लाख करोड़ रुपए की रही थी एवं अगस्त 2021 माह में इस मद से 1.16 लाख करोड़ रुपए का कर संग्रहण किया गया है।
कर संग्रहण में दर्ज की गई आकर्षक वृद्धि दर के चलते सबसे अच्छी खबर तो राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण के मोर्चे पर आई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम चार माह, अप्रैल-जुलाई 2021 की अवधि के दौरान राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2021-22 के कुल बजटीय अनुमान (15.07 लाख करोड़ रुपए) का केवल 21 प्रतिशत (3.21 लाख करोड़ रुपए) ही रहा है, जो पिछले 11 वर्षों के दौरान की इसी अवधि में सबसे कम है। इसका आशय यह है कि केंद्र सरकार द्वारा खर्चों पर नियंत्रण रखकर कर उगाही एवं अन्य स्त्रोतों से आय की उगाही पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है जिसका परिणाम राजकोषीय घाटे में कमी के रूप में दिखाई दे रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 के अप्रैल-जुलाई 2020 के दौरान राजकोषीय घाटा पूरे वित्तीय वर्ष के बजटीय अनुमान का 103.1 प्रतिशत था। इस प्रकार तो वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान राजकोषीय घाटे के सकल घरेलू उत्पाद के 6.8 प्रतिशत के बजटीय अनुमान को अवश्य ही प्राप्त कर लिया जाएगा। यह राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद के 9.3 प्रतिशत से भी अधिक रहा था।
राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने के कारण मुद्रास्फीति पर भी अंकुश पाया जा सकता है। जोकि अगस्त 2021 माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर में दर्ज की गई कमी के रूप में दृष्टिगोचर हुआ है। अगस्त 2021 माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर घटकर 5.3 प्रतिशत तक नीचे आ गई है, यह जुलाई 2021 माह में 5.59 प्रतिशत पर थी। मुद्रास्फीति की यह दर भारतीय रिजर्व बैंक की सह्यता दर 2-6 प्रतिशत के अंदर ही है। इसका आशय यह है कि देश में ब्याज की दरें अभी निचले स्तर पर ही बनी रहेंगी जिसका सीधा-सीधा लाभ किसानों, व्यापार एवं उद्योग जगत तथा मकान निर्माण एवं वाहन खरीदने हेतु बैकों से ऋण लेने वाले व्यक्तियों को होगा।
हालांकि देश की अर्थव्यवस्था में सुधार दिखाई दे रहा है परंतु केंद्र सरकार विकास दर को गति देने के लिए नित नए फैसले करती जा रही है अर्थात केंद्र सरकार आगे भी आर्थिक सुधार कार्यक्रमों को गतिशील बनाए रखना चाहती है। इसी कड़ी में अभी हाल ही में केंद्र सरकार ने देश के टेलिकॉम उद्योग को विभिन्न आर्थिक समस्याओं से उबारने के उद्देश्य से क्रांतिकारी सुधार कार्यक्रमों की घोषणा की है, जिसके अंतर्गत टेलिकॉम कम्पनियों को अपने वैधानिक करों के भुगतान के लिए चार वर्षों का स्थगन प्रदान किया गया है। साथ ही, टेलिकॉम क्षेत्र में स्वतः मार्ग से 100 प्रतिशत विदेशी निवेश की अनुमति भी प्रदान की गई है। समायोजित सकल आय की परिभाषा में भी सुधार करते हुए अब टेलिकॉम कम्पनियों द्वारा गैर-टेलिकॉम क्षेत्र से अर्जित की गई आय को टेलिकॉम क्षेत्र से अर्जित की गई आय से अलग माना जाएगा। अभी तक दोनों प्रकार की आय को टेलिकॉम क्षेत्र से अर्जित की गई आय मानकर ही इस आय पर टैक्स लगाया जाता था, जिसके चलते टेलिकॉम कम्पनियां बहुत दबाव में आ गईं थीं। इस क्षेत्र में केंद्र सरकार द्वारा लिया गया यह कदम बहुत साहसिक माना जा रहा है। पूर्व में टेलिकॉम कम्पनियों पर भारी ब्याज एवं जुर्माना लगाया जाता था। साथ ही, लायसेंस फी एवं स्पेक्ट्रम (तरंग) उपयोग हेतु प्रभार, आदि निर्धारित अवधि में अदा न करने पर, इस प्रकार की राशि पर ब्याज की वसूली भी की जाती थी। परंतु अब इन सभी प्रकार के खर्चों को युक्तिसंगत बनाया गया है। ब्याज की वसूली के चक्रवृधि सम्बंधी नियम को शिथिल बना दिया गया है एवं इसकी गणना अब मासिक चक्रवृधि के स्थान पर वार्षिक चक्रवृधि की दर से की जाएगी। ब्याज की दर में भी कमी की गई है एवं अब एमसीएलआर+2 प्रतिशत की दर पर ब्याज वसूला जाएगा एवं अर्थदंड की वसूली भी समाप्त कर दी गई है। इन सभी घोषणाओं के बाद अब उम्मीद की जा रही है कि टेलिकॉम क्षेत्र में बहुत भारी मात्रा में निवेश बढ़ेगा। निवेश के साथ-साथ भारी मात्रा में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होंगे।
इसी प्रकार, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत वाहन उद्योग के लिए 26,058 करोड़ रुपए की राशि, विशेष रूप से वाहन, वाहनों के कल पुर्ज़े एवं ड्रोन के उत्पादन को देश में बढ़ावा देने के उद्देश्य से, मंजूर की गई है। इससे वैश्विक स्तर पर भारत में निर्मित वाहनों के निर्यात बढ़ सकेंगे एवं भारत में ही इस क्षेत्र में सप्लाई चैन को मजबूत किया जा सकेगा। उक्त राशि, वाहन उद्योग को, अगले पांच वर्षों के दौरान उपलब्ध करायी जाएगी। उक्त राशि को उपलब्ध कराने के बाद अब यह उम्मीद की जा रही है कि अगले पांच वर्षों के दौरान भारत के ऑटो उद्योग में 42,500 करोड़ रुपए का नया निवेश होगा एवं 230,000 करोड़ रुपए की राशि से उत्पादन में वृद्धि होगी एवं 750,000 रोजगार के नए अवसर निर्मित होंगे। उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना को वर्ष 2021-22 के बजट के माध्यम से 13 उद्योगों के लिए लागू किया गया था एवं इस मद पर 197,000 करोड़ रुपए की कुल राशि खर्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। भारत को वर्ष 2030 तक ड्रोन हब बनाने के उद्देश्य से उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत अगले तीन वर्षों के लिए 120 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई जाएगी। इस योजना के अंतर्गत ड्रोन के उत्पादकों को 20 प्रतिशत की प्रोत्साहन राशि उपलब्ध कराई जाएगी।
साथ ही, वस्त्र निर्माण उद्योग के लिए भी उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत अगले पांच वर्षों के लिए 10,683 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई है। इससे अब उम्मीद की जा रही है कि इस क्षेत्र में कई नई उत्पादन इकाईयों को स्थापित किया जाएगा, जिससे रोजगार के लाखों नए अवसर निर्मित होंगे एवं इस क्षेत्र से निर्यात में भी अत्यधिक वृद्धि होगी। नई उत्पादन इकाईयों की स्थापना करने में टायर-3 एवं टायर-4 में वर्गीकृत शहरों को प्राथमिकता दी जाएगी। नई इकाईयों की स्थापना में सबसे अधिक लाभ गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, पंजाब, आंध्रा प्रदेश एवं तेलंगाना को होने की सम्भावना है।