यह बिल्कुल ही अचंभित करने वाला नहीं कि पाकिस्तान भारत के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) स्तर की बातचीत से भाग खड़ा हुआ। वार्ता से पहले जिस तरह उसने कॉमनवेल्थ संसदीय संघ की बैठक के लिए जम्मू-कश्मीर विधानसभा के स्पीकर को निमंत्रित नहीं किया, संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर मसले को उठाया और कश्मीर के अलगाववादी हुर्रियत नेताओं से बातचीत की जिद्द दिखायी, के अलावा कश्मीर मसले पर भी बातचीत के लिए दबाव बनाने की कोशिश की उससे यहीं संकेत मिला कि उसकी दिलचस्पी वार्ता के बजाए येनकेनप्रकारेण वार्ता को विफल कर उसका ठीकरा भारत के सिर फोडऩे की है। लेकिन उसका मंसूबा धरा रह गया। हालांकि उसके नापाक हरकतों के बावजूद भी भारत ने भरपूर प्रयास किया कि उफा में जारी साझा बयान के अनुरुप दोनों देश आतंकवाद पर बातचीत करें। लेकिन पाकिस्तानी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सरताज अजीज ने जिस अंदाज में प्रेस कांफ्रेंस कर कश्मीर मसले को वार्ता में शामिल करने और हुर्रियत नेताओं से मुलाकात की शर्तें थोपते हुए भारत के विरुद्ध आरोपों के डोजियर लहराए उससे समझना आसान हो गया कि पाकिस्तान वार्ता नहीं चाहता। अच्छा ही हुआ कि भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने वार्ता से पहले ही स्पष्ट कर दिया कि उफा के साझा बयान के मुताबिक भारत आतंकवाद के अलावा अन्य किसी दूसरे मुद्दे पर चर्चा नहीं करेगा। स्वाभाविक रुप से पाकिस्तान के पास वार्ता से भागने के अलावा कोई अन्य चारा नहीं बचा। दरअसल उसे भय था कि वार्ता के दौरान आतंकियों को मदद पहुंचाने की उसकी नीति का भारत के पास पुख्ता सबूत है और वह उसे पेशकर उसकी मुश्किलें बढ़ा सकता है। पाकिस्तान का यह भय अकारण नहीं था।
अगर पाकिस्तान वार्ता में शामिल होता तो भारत जम्मू-कश्मीर में िजंदा पकड़े गए आतंकी नावेद के पाकिस्तानी होने के ठोस सबूत के अलावा गुरुदासपुर में आतंकी हमले की पाकिस्तानी साजिश और दाऊद इब्राहिम व हाफिज सईद समेत ऐसे 60 वांछित अपराधियों की सूची पेश करता जिससे उसे जवाब देना मुश्किल हो जाता। भारत सबूतों के जरिए बताता कि किस तरह उसकी खूफिया एजेंसी आइएसआइ की मदद से पाकिस्तान अधिकृत जम्मू-कश्मीर में 40 से अधिक आतंकी शिविर चल रहे हैं। गौरतलब है कि इन्हीं में से एक आतंकी शिविर में प्रशिक्षण लेने की बात स्वयं आतंकी नावेद ने कबूली है। भारत वह डोजियर भी सौंपता जिसमें अंडरवल्र्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के पाकिस्तान में नौ ठिकाने होने के ठोस सबूत हैं। नि:संदेह वार्ता में पाकिस्तान का असली चेहरा दुनिया के सामने होता। शायद यही वजह है कि उसने वार्ता से पहले ही अपने दुम को दोनों पैरों के बीच दबा ली है। बहरहाल वार्ता से पीछे हटकर पाकिस्तान ने साबित कर दिया है कि भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए वही जिम्मेदार है। अन्यथा कोई वजह नहीं कि वह आतंकवाद पर चर्चा से मुंह मोड़े। वार्ता से भागने से पाकिस्तान की साख गिरी है और दुनिया में संकेत गया है कि वह आतंकी संगठनों के दबाव में है और उनके इशारे पर ही वार्ता से पीछे हटा है। याद करना होगा कि 10 जुलाई को उफा में जारी साझा बयान के तुरंत बाद ही पाकिस्तान में वहां की सेना और कट्टरपंथी ताकतों ने कड़ा विरोध किया था और नवाज सरकार को सफाई देनी पड़ी थी। सेना के दबाव में ही सरताज अजीत को कहना पड़ा है कि कश्मीर के मसले पर बातचीत और वार्ता में हुर्रियत नेताओं को शामिल किए बिना बिना वार्ता का कोई मतलब नहीं है। इन तथ्यों से साफ है कि पाकिस्तान में नवाज शरीफ की निर्वाचित सरकार संप्रभु नहीं है बल्कि अहम फैसले सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ लेती है।
अब पाकिस्तान की नवाज सरकार किस मुंह से कहेगी कि वह आतंकवाद को लेकर गंभीर है। बहरहाल पाकिस्तान की ऐसी ही हरकतों के कारण भारत-पाकिस्तान वार्ता बेपटरी हो गयी थी जब सत्ता में आने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के संबंधों में बेहतरी के उद्देश्य से सचिव स्तर की बातचीत का वातावरण निर्मित किया था। तब पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने भारत की कड़ी चेतावनी के बावजूद भी अलगावादियों से मुलाकात की। लिहाजा भारत वार्ता से पीछे हट गया और पाकिस्तान को संदेश दिया कि उसे कुटनीतिक वार्ता और अलगाववादियों के साथ बातचीत में से किसी एक को चुनना होगा। टेरर और टॉक साथ-साथ नहीं चल सकते। पाकिस्तान द्वारा वार्ता रद्द किए जाने के बाद अब भारत को चाहिए कि सबूतों के जरिए पाकिस्तान को नंगा करे और दुनिया को बताए कि वह आतंकवादियों का प्रश्रयदाता देश है और वह भारत के दुश्मनों को संरक्षण देता है। हालांकि दुनिया के सामने यह कई बार स्पष्ट हो चुका है कि दाऊद इब्राहिम ही नहीं बल्कि भारत के मोस्ट आतंकी रियाज भटकल, इकबाल भटकल, आमिर रजा खान, अब्दुस सुभान कुरैशी, मुफ्ती सुफियान, अबु अयमान और मोहसिन चैधरी सभी पाकिस्तान में हैं। दुनिया को यह भी पता है कि पाकिस्तान के मदद से ही जम्मू-कश्मीर में कई आतंकी संगठन सक्रिय हैं। दुनिया को यह भी जानती है कि 26/11 मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तान का हाथ था। गत वर्ष पकड़े गए आतंकी अबू जुंदाल द्वारा कबूला जा चुका है कि 26/11 आतंकी हमले के समय लखवी खुद पाकिस्तान स्थित कंट्रोल रुम से कसाब समेत 10 आतंकियों को निर्देश देने का काम किया।
उसने बताया कि कंट्रोल रुम में जकीउर रहमान लखवी के अलावा पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के आला अधिकारी भी मौजूद थे। यही नहीं पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी आतंकी डेविड कोलमैन हेडली द्वारा भी खुलासा किया जा चुका है कि मुंबई आतंकी हमले की साजिश पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ और उसकी पाल्य आतंकी संगठन लश्करे तैयबा द्वारा रची गयी। लेकिन अचंभित करने वाला है कि पाकिस्तान इसे मानने को तैयार नहीं। जबकि अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तारिक खोसा ने उद्घाटित किया है कि 26/11 मुंबई हमले की साजिश पाकिस्तान में रची गयी और उसका संचालन कराची से किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि इस साजिश के मुख्य कर्ता-धर्ता लखवी तथा हाफिज सईद ही थे। अगर पाकिस्तान वार्ता की मेज पर आता तो नि:संदेह भारत आतंकवाद में उसकी संलिप्तता के ढेरों प्रमाण देता। लेकिन सेना और आतंकी संगठनों के दबाव में पाकिस्तान सरकार की एक न चली और वार्ता रद्द करने का निर्णय लेना पड़ा। यह पाकिस्तान के लिए शर्मनाक है। पाकिस्तान को शर्मिंदा होना चाहिए कि विश्व के सामने आतंकवाद से लडऩे की उसकी पोल खुल गयी है और अमेरिका ने उसे हक्कानी नेटवर्क पर एक्शन न लेने के लिए हडक़ाया है। गौरतलब है कि पिछले दिनों पाक सेना और आइएसआइ के इशारे पर हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान में भारत के असेट्स और प्रोजक्ट को निशाना बनाया था। भारत द्वारा सबूत पेश किए जाने के बाद अमेरिका को विश्वास हुआ कि इसके पीछे पाकिस्तान का ही हाथ है।