महोदय
हम दादरी नोएडा क्षेत्र के सभी निवासी आपका गुर्जरों की राजधानी के रूप में विख्यात दादरी शहर में हार्दिक स्वागत और अभिनंदन करते हैं। हमें आपको यह अवगत कराते हुए अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है कि 1857 की क्रांति हो या फिर उससे पहले का मुगलिया या तुर्क सुल्तानों का काल हो दादरी क्षेत्र के लोगों ने हमेशा विदेशी आक्रमणकारियों और अत्याचारी शासकों का राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भरपूर विरोध किया है। इस विरोध के महान प्रतीक के रूप में गुर्जर सम्राट मिहिर भोज इतिहास के सर्वमान्य ऐसे नायक हैं जिन्होंने अपने काल में विदेशी आक्रमणकारियों को देश की पवित्र धरती से बाहर भगाने का अप्रतिम और अभिनंदनीय कार्य किया था । उनके उस महान कार्य पर हम सब अपने आपको गौरवान्वित अनुभव करते हैं। इतिहास में गुर्जर प्रतिहार वंश के अन्य शासकों ने भी इसी प्रकार के अभिनंदनीय कार्य किए । जिनमें गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के पूर्वज नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
दुर्भाग्य का विषय है कि एक षड़यंत्र के अंतर्गत हमारे इन महान इतिहासनायकों को इतिहास के पृष्ठों से मिटाने का कार्य किया गया। पर आज आप जैसे देशभक्त, संस्कृति प्रेमी और धर्म के लिए समर्पित व्यक्तित्व के रहते हुए समाज में नई चेतना का संचार हो रहा है और हम अपने गौरवपूर्ण इतिहास के प्रति समर्पित होकर कार्य करते हुए दिखाई दे रहे हैं । जिसके चलते गुर्जर सम्राट मिहिर भोज और उनके पूर्वजों या वंशजों के महान बलिदानी कार्यों का गुणगान अब संभव हो पा रहा है । इसके लिए माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और आपका जितना अभिनंदन किया जाए उतना कम है। क्योंकि आप दोनों महान विभूतियों के रहते हुए ही यह संभव हो पाया है कि हम अपने इतिहास पर गर्व करने की स्थिति में दिखाई दे रहे हैं।
महोदय
गुर्जर इतिहास पर यदि विचार किया जाए तो इस वंश के लोगों ने आठवीं, नौवीं और दसवीं शताब्दी से कुछ काल बाद तक अर्थात 300 वर्ष तक निरंतर संघर्ष करते हुए विदेशी आक्रमणकारियों को भारत की ओर बढ़ने से रोके रखने का गौरव पूर्ण कार्य किया। गुर्जरों के इस महान कार्य का वर्णन विदेशी मुस्लिम इतिहासकारों ने भी किया है। जिसे पढ़कर हर राष्ट्रभक्त देशवासी का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है ।
इनके गौरवशाली इतिहास में मां पन्ना धाय का बलिदान भी भुलाया नहीं जा सकता । जिसने राजकुमार उदयसिंह की प्राण रक्षा के लिए अपने प्राणों प्यारे बेटे चंदन का बलिदान दिया था। इसी कड़ी में हमें राजा लूणकरण भाटी जैसलमेर के उन महान कार्यों का भी अभिनंदन करना चाहिए जिन्होंने राम मंदिर के विध्वंस के 6 वर्ष पश्चात ही एक विशाल यज्ञ करके अपने उन सभी हिंदू भाइयों को फिर से वैदिक धर्म में दीक्षित कराया था जो किसी कारण से मुसलमान हो गए थे। उनके उन ऐतिहासिक और महान कार्यों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए गुर्जर वंश के अनेकों वीर योद्धाओं ने वनों और जंगलों में रह-रहकर विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध युद्ध जारी रखा। हमें इस बात पर भी गर्व है कि हिंदू से मुसलमान बने लोगों की घर वापसी का शुद्धि जैसा महान कार्य भी गुर्जर सम्राटों ने ही प्रारंभ किया था।
इससे पूर्व हमें इस बात पर भी गर्व है कि हमारे पूर्वज परमार वंशी राजा भोज ने बहराइच के राजा सुहेलदेव का उस महान कार्य में सहयोग दिया था जिसमें राजा सुहेलदेव ने देशी राजाओं के सहयोग से महमूद गजनवी के भांजे सलार मसूद की 1100000 की सेना को काटकर समाप्त किया था । अपने इस महान कार्य के परिणामस्वरुप ये सभी राजा अपने देश, धर्म और संस्कृति की रक्षा करने में सफल हुए थे।
जहां तक सम्राट मिहिर भोज की बात है तो उनके पास 3600000 की विशाल सेना का वर्णन विदेशी इतिहासकारों ने भी किया है। जिसके बल पर उन्होंने ईरान तक के भारतीय क्षेत्र को विदेशी आक्रमणकारियों के चंगुल से मुक्त किए रखने में शानदार सफलता प्राप्त की थी । उनके रहते हुए भारत की एक इंच भूमि पर भी विदेशी आक्रमणकारी अपना प्रभुत्व स्थापित नहीं कर पाए थे। उनकी 3600000 की विशाल विशाल सेना से भयभीत होकर मुसलमानों ने उस समय अपने लिए शहरे महफूज नामक शहर बसा लिया था । तब उन्होंने भारत की ओर देखना तक बंद कर दिया था । उनकी इस महान सेवा के लिए संपूर्ण राष्ट्र सदा कृतज्ञ रहेगा।
सम्राट मिहिर भोज और उन जैसे अन्य अनेकों गुर्जर वीर वीरांगनाओं ने समय-समय पर अपने बलिदान देकर मां भारती की अप्रतिम सेवा की है। विदेशी आक्रमणकारियों से सदा टकराते रहना और अपने देश धर्म की रक्षा के लिए अपने आप को बलिदान के लिए समर्पित कर देना इस वीर गुर्जर जाति की अनोखी परंपरा रही है । इसलिए उन्होंने कभी भी किसी तुर्क, मुगल या अंग्रेजी शासक से समझौतावादी दृष्टिकोण नहीं अपनाया बल्कि अपने पूर्वजों के शानदार इतिहास पर गर्व करते हुए उसकी परंपरा को निरंतर प्रवाहमान बनाए रखने में ही अपनी शान समझी। गुर्जर जाति के इसी लड़ाकू स्वभाव के चलते अंग्रेजों ने इसे अपमानित शब्दों के साथ संबोधित किया।
इसके उपरांत भी गुर्जरों ने अंग्रेजों का विरोध जारी रखा यही कारण रहा कि 1857 की क्रांति का शुभारंभ भी वीर गुर्जर योद्धा धन सिंह कोतवाल ने सरकारी नौकरी में रहते हुए मेरठ से किया। जिनके साथ उस समय हजारों की संख्या में विभिन्न जाति बिरादरियों के लोगों ने अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की शुरुआत की थी। वीर गुर्जर योद्धा बलिदानी धनसिंह कोतवाल और उनके परिवार सहित गांव के लोगों के साथ अंग्रेजों ने उस समय अवर्णनीय अत्याचार किये। परंतु इसके उपरांत भी गुर्जरों ने अंग्रेजों का अगले 90 वर्ष तक निरंतर विरोध जारी रखा।
धन सिंह कोतवाल जी के साथ उस समय हमारी इस ऐतिहासिक नगरी दादरी के राव उमराव सिंह जी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए थे । जिनके साथ अनेकों बलिदानियों ने अपना बलिदान देकर मां भारती की सेवा में स्वयं को समर्पित कर दिया। यह क्षेत्र उस समय बुलंदशहर जनपद के अंतर्गत आता था। बुलंदशहर जनपद में आज भी काला आम नामक स्थान है, जहां पर इस क्षेत्र के और उस समय के मेरठ व जनपद बुलंदशहर के गांवों के अनेकों वीर क्रांतिकारी बलिदानियों को अंग्रेजों ने फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया था।
हमारा मानना है कि 1857 की क्रांति हो या उसके आगे पीछे का वह ऐतिहासिक काल हो जिसमें गुर्जर समाज के वीर योद्धाओं ने निरंतर विदेशी आक्रमणकारियों की शासन और सत्ता का विरोध जारी रखा तो उस सबसे पीछे हमारे इतिहास के महानायक गुर्जर सम्राट मिहिर भोज का बलिदानी और तपस्वी व्यक्तित्व ही एकमात्र प्रेरणा का स्रोत था।
आज जब आपके पवित्र हाथों से गुर्जर सम्राट मिहिर भोज जी की प्रतिमा का अनावरण किया गया है, तब हम आपसे सभी क्षेत्रवासी आपसे विनम्र भाव से अनुरोध करते हैं कि :-
1- गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के नाम पर एक विश्वविद्यालय की स्थापना नोएडा क्षेत्र में की जाए। जिससे हम अपने इस इतिहास नायक का उचित सम्मान कर सकें।
2 – जेवर के हवाई अड्डे का नाम हमारे इस इतिहास नायक गुर्जर सम्राट मिहिर भोज के नाम पर रखा जाए।
3 – दादरी जैसे ऐतिहासिक नगर को गुर्जरों की राजधानी के नाम से जाना जाता रहा है। अतः आपसे अनुरोध है कि दादरी रेलवे स्टेशन का नाम गुर्जर सम्राट मिहिर भोज रेलवे स्टेशन रखा जाए।
4 – इस अवसर पर हम आपसे यह भी अनुरोध करते हैं कि 1857 की क्रांति के महानायक गुर्जर धनसिंह कोतवाल के बलिदान की स्मृति में गाजियाबाद मेरठ हाईवे का नाम गुर्जर धनसिंह कोतवाल क्रांति पथ रखा जाए और मेरठ के प्रवेश द्वार पर एक विशाल कीर्ति स्तंभ स्थापित कर वहां पर धनसिंह गुर्जर धन सिंह कोतवाल गुर्जर की प्रतिमा स्थापित कर उसके नीचे उन सभी बलिदानियों के नाम अंकित कराए जाएं जिन्होंने 1857 की क्रांति में भाग लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध बगावत की थी और अपना सर्वोत्कृष्ट बलिदान दिया था।
हमें आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि आप हमारी उपरोक्त मांगों पर ध्यान देकर उन्हें अवश्य स्वीकार करेंगे। जिसके लिए हम सभी क्षेत्रवासी आपके सदैव ऋणी होंगे।
भवदीय
डॉ राकेश कुमार आर्य ( संपादक : उगता भारत)
राष्ट्रीय अध्यक्ष : भारतीय इतिहास पुनर्लेखन समिति