संसार में ऐसा कुछ भी नहीं जिसे असंभव कहा जा सके
सीताराम गुप्ता
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित उर्दू शायर ‘शहरयार’ साहब की ग़ज़ल का एक लोकप्रिय शे’र है :-
कहिए तो आस्मां को जमीं पर उतार लाएं,
मुश्किल नहीं है कुछ भी अगर ठान लीजिए।
अनुष्का के कॉलेज में एक दिन रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। वह मित्रों के साथ रक्तदान शिविर में गई। उसके रक्त की जांच करने के पश्चात डॉक्टर ने कहा, ‘तुम रक्तदान नहीं कर सकती क्योंकि तुम्हारे रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा इतनी कम है कि यदि तुम्हारा एक यूनिट ब्लड ले लिया गया तो तुम्हें फौरन चार यूनिट ब्लड चढ़ाना पड़ेगा।’ वह जिद पर अड़ी थी कि उसे हर हाल में ब्लड डोनेट करना है। डॉक्टर ने समझाया कि तुम एनीमिक हो। तुम्हारे शरीर में लौह तत्व की बेहद कमी है। अतः ऐसे में तुम्हारा ब्लड बिल्कुल भी नहीं लिया जा सकता। उसका सारा उत्साह ठंडा पड़ गया।
घर आकर उसने सारी बात माता-पिता और भाई को बतलाई। घर वालों ने कहा कि पहले अपना ख़ुद का ब्लड ठीक कर लो, उसके बाद ब्लड डोनेट करने की सोचना। घर वाले उसके खानपान को लेकर चिंतित थे लेकिन वह इस सबसे बेपरवाह रही। उस बात को कई साल गुजर गए। घर वालों ने समझ लिया कि उसके सर से रक्तदान करने भूत उतर चुका है।
एक दिन अनुष्का के पापा ने देखा कि मेज पर रक्तदान का कार्ड पड़ा है। उस पर अनुष्का का नाम लिखा था। शाम को जब अनुष्का से पूछा गया कि क्या उसने रक्तदान किया है तो उसने कहा कि हां। उसने कहा कि वह इससे पहले भी कई बार रक्तदान कर चुकी है और ये कहकर उसने कई कार्ड लाकर घर वालों के सामने रख दिए। घर वालों ने पूछा कि क्या उसने कभी आयरन डेफिशिएंसी का इलाज करवाया है तो अनुष्का ने कहा कि नहीं। कैसे एक रक्ताल्पता से पीड़ित लड़की का हीमोग्लोबिन इतना सामान्य हो गया कि वह रक्तदान तक करने लगी?
अनुष्का की उत्कट इच्छा थी कि वह रक्तदान करे। उसका दृढ़ निश्चय एक संकल्प बन गया। वह इसे बार-बार दोहराती थी। रक्तदान करना उसकी प्रतिष्ठा से जुड़ गया। यह उसके आत्मसम्मान का प्रश्न बन गया। इस संकल्प की पूर्ति के लिए उसकी मानसिक कंडीशनिंग हो गई। जब हम किसी चीज या स्थिति की कामना करते हैं अथवा मन से चाहते हैं तो इस ब्रह्मांड की सारी शक्तियां उसे हमें उपलब्ध करवाने के लिए सहयोग करने लगती हैं। इस ब्रह्मांड की सहयोगी शक्तियों में हमारा अपना मन सबसे महत्वपूर्ण होता है।
जब हम किसी लक्ष्य का पूर्ति के लिए कोई संकल्प लेते हैं तो हमारे मस्तिष्क की कोशिकाएं सक्रिय होकर हमें इतना अधिक प्रेरित कर देती हैं कि हम प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उसकी प्राप्ति में संलग्न हो जाते हैं। अवरोध समाप्त होकर परिस्थितियां हमारे अनुकूल होने लगती हैं और हम अपेक्षित सफलता प्राप्त कर लेते हैं।
यह ठीक है कि बीमारी अथवा शरीर में पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए उपचार व खानपान में सुधार व अपेक्षित परिवर्तन अनिवार्य है लेकिन यदि हममें अच्छे स्वास्थ्य और रोगमुक्ति के लिए दृढ़ इच्छा है तो स्थितियों में स्वतः परिवर्तन होते देर नहीं लगती। माना कि अनुष्का अपने स्वास्थ्य के प्रति अत्यंत सचेत नहीं थी लेकिन रक्तदान के लिए अत्यंत सचेत व दृढ़प्रतिज्ञ थी। उसे रक्तदान करना था, अतः उसके रक्त में अपेक्षित मात्रा में हीमोग्लोबिन बढ़ना भी अनिवार्य हो गया था। बिना उचित खानपान व उपचार के यह असंभव है तो फिर यह कैसे संभव हुआ?
हमारी इच्छा अथवा विचारों के अनुरूप ही हमारे शरीर में जैव-रासायनिक तथा विद्युत-चुंबकीय परिवर्तन होते रहते हैं जो भौतिक शरीर व स्वास्थ्य को अपेक्षित दशा व दिशा प्रदान करने में सहायक व सक्षम होते हैं। हमारे शरीर में कुछ अंतःस्रावी ग्रंथियां होती हैं जो हमारे लिए लाभदायक व हानिकारक हार्मोंस उत्सर्जित करती रहती हैं। यह हमारी मनोदशा पर निर्भर करता है कि कैसे हार्मोंस उत्सर्जित हों। हमारे विचार अथवा संकल्प हमारी मनोदशा के निर्धारण में सहायक होते हैं। सकारात्मक दृष्टिकोण अथवा आशावादी विचार उपयोगी हार्मोंस का उत्सर्जन संभव बनाते हैं। हमारा स्वास्थ्य हमारे मस्तिष्क की कोशिकाओं की विशेष प्रााथमिकता होता है। जब भी हम अच्छे स्वास्थ्य या रोगमुक्ति अथवा उससे संबंधित क्रियाकलापों के विषय में सोचते हैं तो हमारे स्वास्थ्य में अपेक्षित सकारात्मक परिवर्तन होने लगता है।
सूरदास का एक पद का सार है कि हे प्रभु! आपसे क्या नहीं हो सकता? आपकी कृपा हो जाए तो गूंगा बोलने लगे, पैरों से असमर्थ पर्वत पार कर जाए व नेत्रहीन सारे संसार को देख आए। प्रभु आपकी कृपा से असंभव भी संभव हो जाए। वह कृपा करने वाला ईश्वर कहां है? वह कृपा करने वाला ईश्वर वास्तव में हमारे अंदर ही विराजमान है। वह हमारी इच्छाशक्ति से ही जाग्रत होता है। उसकी कृपा का द्वार हमारी इच्छाशक्ति की खटखटाहट से ही खुलता है। सगुण-साकार अथवा निर्गुण-निराकार प्रभु की प्रार्थना करके हम अपनी असीमित सुप्त मानसिक शक्तियों को ही जगाते हैं। वह अपने विश्वास को पुष्ट करने का ही एक मार्ग है। वास्तव में सकारात्मक दृष्टिकोण से उत्पन्न सात्विक इच्छाओं का चयन करके हम अपने जीवन में हर ख़ुशी प्राप्त कर सकते हैं।