आखिर क्या है चीन की नीति की हकीकत
प्रस्तुति:श्रीनिवास आर्य
ये तो साफ है कि अब चीन झुक कर अमेरिका के साथ संबंध बनाए रखने के मूड में नहीं है। तो क्या अब अमेरिका झुक कर चलेगा? कहना मुश्किल है। लेकिन अफगानिस्तान ने एक ऐसी सूरत जरूर पैदा की है, जिसमें मुमकिन है कि चीन से बात करना अमेरिका की मजबूरी बन गई हो।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अचानक चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात करने का फैसला क्यों किया? क्या यह अफगानिस्तान में बनी मजबूरी का परिणाम है? या यह उनके रुख में अस्थिरता का संकेत है? बीते शुक्रवार को हुई वार्ता के बाद चीन ने जो बयान जारी किया, उसमें इसका प्रमुखता से जिक्र किया गया कि ये बातचीत बाइडेन की पहल पर हुई। साथ ही चीन ने यह भी प्रमुखता से दुनिया को बताया कि बाइडेन ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ के प्रति अपनी वचनबद्धता जताई। उन्होंने सफाई दी कि उनके प्रशासन ने वन चाइना पॉलिसी से हटने पर कभी विचार नहीं किया है। अमेरिकी बयान से ऐसा कोई संकेत नहीं मिला कि बातचीत के दौरान बाइडेन आक्रामक मुद्रा में थे। बल्कि शी उनके सामने आलोचना के मूड में थे। शी ने साफ कहा कि दोनों देशों में टकराव की स्थिति अमेरिका के रुख से पैदा हुई है। पश्चिमी मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक बाइडेन ने शी से मुलाकात का आग्रह एक खास वजह से किया। उनके मुताबिक ह्वाइट हाउस के अधिकारी इस निष्कर्ष पर थे कि हाल में जिन चीनी अधिकारियों का अमेरिकी अधिकारियों से संपर्क हुआ, वे कोई ‘गंभीर या ठोस’ बातचीत करने को लेकर अनिच्छुक थे।
बताया जाता है कि बाइडेन ने इस गतिरोध को तोड़ने की कोशिश में शी से बातचीत की। ह्वाइट हाउस के मुताबिक बातचीत के दौरान बाइडेन ने कहा कि दोनों देशों को यह सुनिश्चित करना है कि उनके बीच जारी प्रतिस्पर्धा टकराव में ना बदल जाए। तो सवाल है कि जब ये प्रतिस्पर्धा अमेरिका ने शुरू की है, तो फिर टकराव से वह कब तक और कहां तक बचना चाहता है? और फिर क्यों? गौरतलब है कि राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडेन की नीति चीन से दूरी बनाए रखने की रही है। राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद उन्होंने शी से फोन पर लंबी बात की थी। लेकिन उसके सात महीने तक दोनों में कोई संवाद नहीं हुआ। इस बीच मंत्री या अधिकारी स्तर पर जो भी बातचीत हुई, वह कड़वाहट में समाप्त हुई। ये तो साफ है कि अब चीन झुक कर संबंध रखने के मूड में नहीं है। तो क्या अब अमेरिका झुक कर चलेगा? कहना मुश्किल है। लेकिन अफगानिस्तान ने एक ऐसी सूरत जरूर पैदा की है, जिसमें मुमकिन है कि चीन से बात करना अमेरिका की मजबूरी बन गई हो।