24 अप्रैल की सुबह ही छावनी के 90 सैनिकों को परेड के लिए बुलाया गया। हरेक को तीन कारतूस फायर करन्ने को कहा गया लेकिन सिपाहियों ने कारतूस छूने तक से इनकार कर दिया। अधिकारियों के लाख समझाने धमकाने के बावजूद सैनिक अपनी बात पर डटे रहे और आज्ञा का पालन करने से साफ इनकार कर दिया। 9 मई को मेरठ छावनी के सभी सिपाहियों को मैदान में परेड के लिए बुलाया गया। यूरोपीय सैनिक भी मौजूद थे। 24 अप्रैल को आज्ञा का पालन न करने वाले सिपाहियों को सजा सुनाई गयी और करीब 85 सैनिकों की वर्दी उतार ली गयी। इसकी तीखी प्रतिक्रिया भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों को बुरा भला और गुस्से में उबलते हुए अपनी कोठरियों में चले गये। गिरफ्तार कर लिया गया। बात आग सी फेेली और पूरी छावनी में काना फूसी और संदेह का माहौल पैदा हो गया।
दस मई की सुबह का सूरज बगावत की किरणों को ले आया। हिंदुस्तानी सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारियों की आज्ञा में से एकदम से इनकार कर दिया है। सिपाहियों ने सूचना दी अंग्रेज सैनिक बुलाये गये हैं और उनके आते ही हिंदुस्तानी सैनिकों को कत्ल कर दिया जाएगा। लिहाजा जो कुछ हुआ है तुरंत कर डालो। इसके बाद तो चारों ओर अफरा तफरी का माहौल फैल गया। हिंदुस्तानी सैनिकों ने अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं। कई अधिकारी तुरंत मौत के घाट उतार दिये गये।
देखते ही देखते बगावत छावनी से बाहर शहर में फैल गया और जहां भी कोई अंग्रेज दिखा मौत के घाट उतार दिया गया। क्रांतिकारियों ने दिल्ली पहुंचने का आवाहन किया अंग्रेज सैनिक मेरठ की भयावह दशा देखकर जहां के ठिठक गये और देर रात तक मेरठ पूरी तरह बागियों के कब्जे में आ गया।
11 मई को बागी दिल्ली पहुंच गये। वहां हिंदुस्तानी सैनिकों ने भी उनका साथ दिया। मुगल शाह बहादुर बतौर पेंशनभोगी राजा लालकिले में गुजारा को विवश थे। बागियों ने उन्हें हिंदुस्तान का बादशाह घोषित करवाया। मौलवियों ने अंग्रेज के खिलाफ जेहाद का फतवा जारी कर दिया।