इन दिनों बार-बार ऐसी घोषणा की जा रही है,जिससे भारत और विश्व को यह विश्वास हो जाये कि इस्लाम शान्ति का संदेश देने वाला मजहब है।यह घोषणाए कुरान का संदर्भ की जाती है।आजकल ऐसी घोषणाओ ने एक फैशन का रुप ले लिया है,जबकि भारत और विश्व का अनुभव इसके बिल्कुल विपरीत है।जहाँ तक भारत का प्रश्न है,भारत से तो तथाकथित इस्लामी शांति को लगभग गत १००० वर्षो से भुगता है और दुर्भाग्य यह है कि भारत को छद्म शांति को अभी भी भुगतना पड़ रहा है।
अपुष्ट सूचना के अनुसार इस्लाम और कुरान की पढ़ाई कराने वाले मदरसे भारत में लगभग १ लाख से १.४६ लाख की संख्या में है।जिनमें कहने के लिए तालिबान तैयार की जाते हैं।तालिबान शब्द तालिब का बहुवचन है, इसका हिंदी में अर्थ विधार्थी होता है अर्थात विद्या अर्जन करने वाला।जहाँ तक भारत का प्रश्न है,भारत में विद्या का अर्थ अंतरिक्ष से लेकर अध्यात्मक ज्ञान,भौतिक ज्ञान और आर्युविज्ञान तथा ऐसे अनेक प्रकार की ज्ञान होते हैं,किंतु तालिबान सामान्यतः कुरान के पाठक होते हैं।उन्हें कच्ची उम्र में ही मदरसों में इस्लाम मजहब के प्रचार-प्रसार के लिये तैयार किया जाता है।
लखनऊ से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक ‘पायनियर’ के १४ अगस्त १९९५ के अंक में केंद्रीय सरकार के तत्कालीन नागर विमानन मंत्री-गुलाम नबी आजाद का जम्मू में किया गया बयान का छपा था;जो निम्नलिखित है- “जमात-ए-इस्लामी द्वारा चलाए जा रहे मदरसों ने कश्मीर घाटी के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंचाया है।नौजवानों में कट्टरवाद को हवा दी है।घाटी के युवकों को बंदूक की संस्कृति से इन मदरसों द्वारा परिचय कराया गया है और वह हिंसा का प्रचार करते हैं।”
इस तथ्य को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती कि मदरसों में कट्टर इस्लामी तालिबान तैयार होते हैं।मदरसा चाहे कहीं भी हो,इसका लक्ष्य संपूर्ण भारत में,संभवत विश्व,उन देशों में जो ‘दारुल इस्लाम’ नहीं है,एक जैसा ही होता है अर्थात उन देश को जो गैर-इस्लामी है,’दारुल-इस्लाम’ बनाना है।यह तथ्य भारत को भली-भांति समझ लेना चाहिए।
स्मरण रहे भारत भारत ही रहना चाहिए और भारत के नागरिकों को अपनी कमर कस लेनी चाहिए कि भारत को दारुल-इस्लाम नही बनने देना है,क्योंकि इस्लाम के अनुयायियों के अत्याचारों को जितना भारत ने भोगा हैं, झेला हैं और प्रतिकार किया है,उतना कदाचित कही नहीं हुआ है।
भारत की खंडित आजादी के पश्चात आज तक भी भारतीयों ने कई दफा इस इस्लामी जिहाद का स्वाद चखा है।यदि भारत के कई स्वार्थी और कपटी पंथनिरपेक्ष राजनीतिबाजों और कम्युनिस्टों ने इन अत्याचारो पर पर्दा डालने का पूरा-पूरा प्रयास किया है;किंतु ऐसा लगता है कि भारत की नियति भारत को संभालने का अवसर देना चाहती है और इसलिए वह एक के पश्चात दूसरी चेतावनी भारतीयों को ढंग से दे रही है।
स्मरण रहे कि इस्लाम में शांति का अर्थ उसी समय तक कार्य करता है,जब तक इस्लाम के अनुयाई किसी देश में २५ से ३९% से कम होते हैं और अधिक होते ही उस शान्ति का भावार्थ बदल जाता है।
पुस्तक ‘सही मुस्लिम,खंड-१:३१,पृष्ठ-२०’ पर इस्लाम मे मुस्लिमो के लिए स्पष्ट आदेश हैं,जो कि मुहम्मद कहता हैं कि-
” मुझे लोगों से तब-तक युद्ध करते रहने का (अल्लाह से) आदेश मिला है,जब-तक कि वे सत्यापित न करने लगे कि अल्लाह के अतिरिक्त दूसरा कोई उपास्य नहीं है और मुझ में अल्लाह का रसूल (संदेश वाहक) होने के नाते और उन सब में,जो मेरे द्वारा लाया गया है;विश्वास न करने लग जाए।”
अब जब कि अफगानिस्तान में तालिबान जबरन स्थापित हो गया हैं।तब से पूरे विश्व के जेहादियों के हौसले बढ़ गए है।अब सब स्पष्ट होता जा रहा है,अब हमको अपनी भूमिका तय करनी होगी और भारत को बचाना ही होगा,यही अंतिम विकल्प हैं!!
संजीव कुमार पुंडीर
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