गणेश चतुर्थी के अवसर पर विशेष
आज गणेश चतुर्थी है।
मैं हैरान हूं, परेशान हूं, यह कौन से गणेश की बात कर रहे हैं ?
क्या वह गणेश जो लंबी सूंड वाला है ?
या वह गणेश जिसका मोटा सा पेट है ?
या वह गणेश जिसके हाथी जैसे कान हैं ?
या वह गणेश जो चूहे पर बैठकर चलता है अर्थात चूहा जिसकी सवारी है ?
या फिर वह गणेश जो शिव पार्वती का पुत्र है।
आज गणेश चतुर्थी पर यह प्रश्न बहुत प्रासंगिक और समय अनुकूल हैं। अधिकतर लोग भ्रमित हैं कि जो गणेश शिव एवं पार्वती का पुत्र है , हम उसी की बात कर रहे हैं।
परंतु वास्तविकता तो कुछ और है। आर्य समाज के लोग तर्क के आधार पर सत्यान्वेषण करने वाले होते हैं। उनका तर्क जब तक सत्य तर्क से शांत नहीं हो जाता तब तक सत्यान्वेषण और अनुसंधान जारी रहता है। वे कहते हैं कि वह गणेश शिव एवं पार्वती का पुत्र नहीं वह तो कोई और ही गणेश है , जो कि ईश्वर है।
इसलिए आर्य लोग इस गणेश को गणेश नहीं मानते तथा वह पंडित जो गणेश की पूजा करवाता है उसको यदि पूछे तो बोल देगा यह आर्य समाजी गणेश को मानते नहीं हैं इसका तात्पर्य यह हुआ कि गणेश की परिभाषा या परिचय उस पंडित को भी नहीं होता है उसका उद्देश्य उदर पूर्ति के लिए टका बटोरना, गणेश का पूजन कराना होता है।
और अंधकार को प्रसारित करना उनका उद्देश्य होता है जिससे उनकी टका बटोरी चलती रहे। वह पंडित जानता है कि यजमान जितना अंधकार में होगा अविद्या के आवरण में होगा जितना मूर्ख होगा उतना ही वह अच्छा भेंट पूजा प्रस्तुत करेगा।
चलिए विचार करते हैं शास्त्रों के अनुसार गणेश क्या है?
महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश के प्रथम समुल्लास में ईश्वर के 100 नामों की व्याख्या की है । जिसमें ‘गणेश’ गणपति शब्द भी आया है। गण संख्या धातु से गण शब्द सिद्ध होता है ऐसा लिखा है। इसके साथ ‘पति’ शब्द रखने से ‘गणेश’ और ‘गणपति’ शब्द सिद्ध होते हैं। जो प्रकृति आदि जड़ और सब जीव प्रख्यात पदार्थों का स्वामी व पालन करने हारा है , इससे उस ईश्वर का नाम ‘गणेश’ व ‘गणपति’ है।
लौकिक भाषा में हम गण का अर्थ विशाल समुदाय से ही लगाते हैं । हमारे राष्ट्रगान में ‘जन गण मन’ शब्द आते हैं , वहां भी इसका अर्थ यही है । इसके अतिरिक्त हमारे ‘गण’तंत्र में राष्ट्रपति के संदर्भ में भी इस शब्द को विशाल समुदाय के लिए ही अर्थ लेना अपेक्षित है । यदि हम शब्द की वास्तविकता को समझ लेंगे तो उसका वैज्ञानिक और सत्य स्वरूप हमारे भीतर स्थापित हो जाएगा।
और इस विषय में ब्रह्म ऋषि कृष्ण दत्त ब्रह्मचारी (जिन्हें त्रेता युग में पैदा शृंग ऋषि की आत्मा प्राप्त थी)
ने गणेश के विषय में क्या लिखा है या क्या कहा है ? देखें जरा।
आज गणेश जय हो गणपति गणेश आदि के नाम का कई स्थानों पर वर्णन आता है। गणपति परमात्मा को कहा जाता है , जो सर्व गणों में गणपति माना जाता है अर्थात जितने गण हैं , उन सब में जो अग्रगण्य है जो संसार में गणना के तुल्य है उस विधाता को गणश यते कहते हैं।
गणेश मानव को भी कहते हैं। गणेश महाराजा शिव जिनका राज्य हिमाचल में हुआ , उस माता पार्वती का पुत्र भी था । उससे पूर्व गणेश उपाधि मानी जाती थी ।परंतु वेद गान में कहा कि
“गणपति भ्रांचते विश्वा बते रूपायन”
वास्तव में गणेश उसको कहते हैं जो गनेती हो। गनेती करने वाला हो। जो अयुक्त रहने वाला हो अर्थात जो किसी से जुड़ा हुआ नहीं हो अर्थात जिसको ना राग हो ना द्वेष हो। जिसकी सूंघने की शक्ति अधिक हो। अर्थात जो सब गंध सुगंध को अपने में धारण करने वाला हो , उसको गनेभ्यो कहते हैं। परमात्मा सबसे बड़ा गणपति माना गया है । परमात्मा संसार की सुगंध को अपने में धारण करता रहता है।
दूसरा गणेश त्रेता काल में जिस समय महर्षि श्रृंगी पैदा हुए , उन्हीं के समकालीन शिवजी और माता पार्वती थे जिनके एक पुत्र पैदा हुआ और उसका नाम गणेश रखा गया था।
आज गणेश जी का सिर हाथी का माना जाता है यह अविवेकपूर्ण है। गणेश कहते हैं प्रारंभ को । प्रारंभ में केवल एक प्रभु रहता है । इसलिए उस प्रभु का पूजन होता है । जब भी कोई पूजा होती है उस समय महाराजा शिव का पूजन, शिव का नाम उस गणपति का है , जिस का पूजन होता है ।
गणेश जी के पूजन का अभिप्राय क्या है ?
वह क्यों होता है ?
इसका अभिप्राय यह है ‘गणो गणो अस्ती’। गनेभ्यो नम:अस्त -गति नम: वेद में आता है, गनेभ्यो नम:परंतु देखो जो गणपति है वह प्रभु है । जो चैतन्य है, जो प्रारंभ में था जब यह संसार सूर्य गति में रहता था तो उस समय यह प्रभु ही था ,जिसको गणपति कहते हैं ।
उसका उदर या पेट कैसा है ?
जिसका मस्तिष्क ऐसा जैसा गजराज का ऊर्ध्वगति में रहने वाला।
जिसका मस्तिष्क इतना गंभीर हो , इतना सम्मानित हो जैसे गजराज का मस्तिष्क होता है और ऊर्ध्व गति वाला ।इसी प्रकार मस्तिष्क शांत और और ऊर्ध्व गति वाला होना चाहिए। वह जो ऊर्धवागति है , वह मनुष्य को गणपति कहला देती है । गजराज के तुल्य उसका मस्तिष्क बन जाता है अर्थात गणपति नाम प्रभु का है। परंतु शिव पार्वती पुत्र से भिन्न है।
ईश्वर का उदर या पेट इतना विशाल है कि उसके अंदर सर्वत्र संसार समा जाता है । उसी के गर्भ में सर्वत्र सृष्टि रमण करती है । यह गणपति की विवेचना है कि प्रभु के गर्भ में रहने वाला ,उस प्रभु का उदर बहुत ही व्यापक है। उस प्रभु के उदर में संसार का ज्ञान और विज्ञान सब समाहित होता है , इसलिए उसका उदर ऊर्ध्वा होता है ,विशाल होता है।आज भी हम किसी पंडित को यह कह सकते हैं कि उसके पेट में क्या-क्या ज्ञान है ? इसलिए उदर इतना ऊंचा हो, इतना महान हो कि सारे ज्ञान-विज्ञान उसमें समाहित हो।
एक गणेश जी बैठे हैं , जो महाराज पर्वतराज शिव के पुत्र कहलाए जाते हैं और यह गणेश जी की परंपरागत से उपाधि चली आ रही है। शिव नाम परमात्मा का भी है और गणपति नाम भी परमात्मा का है, क्योंकि प्रारंभ में परमात्मा था । परमात्मा की चेतना में यह जगत चेतनित हो रहा है।
हम अपने शरीर को अपने जीवन को इस प्रकार ऊर्ध्व बनाएं और यह जान लें कि हमारे शरीर में 72 करोड़ 72लाख 10 हजार 202 नाड़ियां होती हैं। ब्रह्मरंध्र में ऐसी सूक्ष्म वाहक नाडिया होती है जिनका संबंध नाना लोक लोकान्तरों से होता है। अपने मानव शरीर को तप के द्वारा जाने और ऊर्ध्व गति बनाने का प्रयास करें।
गणपति का वाहन।
गणपति का वाहन विशाची कहलाता है। परंतु हमारे यहां ऐसी अनुभूति है कि देखो पशु जो चूहा है । घुरुणी है, आस्वती है। इसके कई पर्यायवाची शब्द आते हैं , परंतु यह वाहन गणेश का वाहन बन जाए असंभव है।
वेद का ऋषि कहता है कि वह जो गणपति का वाहन है जिसको हम मूषक कहते हैं। वह इसको वाहन क्यों हैं? यह वह एक पशु है जो बिल में रहने वाला है और इसलिए उसे आस्वती कहा जाता है ,परंतु ऐसा नहीं।
वेद का ऋषि कहता है ज्ञाती ब्रह्मा स्वाति लक्षण प्रभे आस लोको अमृतम ब्रह्म ज्ञाता, कि वह इसका वाहन नहीं है।
शिव जी एक योगी थे और एक वैज्ञानिक भी थे। उन्होंने अपने पुत्र के लिए मूषक नाम का वाहन तैयार किया। जिसमें विराजमान होकर के कुछ एक क्षण में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर देता था – गणेश।
इसलिए प्यारे भाइयो ! अंतर कर लेना शिव के गणेश में और परमात्मा गणेश में ।
अब आप किसकी पूजा करोगे यह आपकी विवेक पर निर्भर करेगा।
हमारे वैदिक ऋषियों का ज्ञान विज्ञान बड़ा महान था। उन्होंने अपने ज्ञान विज्ञान के आधार पर संसार का बौद्धिक नेतृत्व किया और संसार में अज्ञान अंधकार को भगाकर ज्ञान का प्रकाश फैलाया। आज भी हमारे लिए यही अपेक्षित है कि हम उनके दिए हुए ज्ञान विज्ञान को यथार्थ रूप में स्वीकार कर उसे संसार में बांटने का प्रयास करें । यदि हम स्वयं पाखंड के और अज्ञान अंधकार के शिकार हो गए तो वेद का ज्ञान रूपी सूर्य अस्त हो जाएगा।
देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
चेयरमैन : उगता भारत समाचार पत्र।
देवेंद्र सिंह आर्य
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।