भारत का स्वर्णिम इतिहास भारत को ‘सोने की चिडिय़ा’ क्यों कहते थे (3)

एस. सी. जैन

गतांक से आगे…

अंग्रेज जो खगोलशास्त्री है, नक्षत्रशास्त्री है, उन्होंने इस बात को स्वीकार किया है कि भारत के सोम, मंगल, बुध को हमने लेकर संडे, मंडे, ट्यूज्डे कर दिया है। यह सब भारत से उधार लिया है। 10वीं शताब्दी में भारतीय वैज्ञानिकों ने यह प्रमाणित किया था कि पृथ्वी अपने कक्ष के साथ-साथ सूर्य के चारों ओर घूमती है। पृथ्वी के घूमने से रात दिन व मौसम परिवर्तित होते हैं। यह बात भी सारी दुनिया में भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा ही प्रमाणित हुई है। बिना शिक्षा के विज्ञान एवं तकनीकी नही आ सकती और न ही कोई व्यापार चल सकता है।

इस बात से यह पता चलता है कि भारत की शिक्षा अच्छी रही है। इतिहासकार मैक्समूलर ने भारत की शिक्षा नीति पर सबसे ज्यादा शोध किया और कहा कि मैं भारत की शिक्षा से इतना ज्यादा प्रभावित हूं कि शायद ही दुनिया के किसी देश में इतनी सुंदर शिक्षा व्यवस्था होगी जो भारत में है। बंगाल राज्य के बारे में मैक्समूलर कह रहा है कि अस्सी हजार से अधिक गुरूकुल पूरे बंगाल में सफलता के साथ हजारों साल से चल रहे हैं।

इसी तरह से एक अंग्रेज विद्वान है जिनका नाम लुडलू है वह भारत में 18वीं शताब्दी में आया था। उसने भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सर्वे किया है कि भारत में एक भी ऐसा गांव नही है जहां कम से कम एक गुरूकुल नही है। भारत में एक भी ऐसा बच्चा नही जो गुरूकुल में नही जाता है। इनके बाद एक और अंग्रेज विद्ववान जिसका नाम बीडब्ल्यू लिटनेस है उसने भारत के पूरे उत्तर इलाके का सर्वे किया है और बताता है कि भारत में 200 लोगों पर एक गुरूकुल चलता है। यह बात 1822 की है।

इसी तरह थोमस मुंडरो कहता है कि दक्षिण भारत में 400 लोगों पर एक गुरूकुल चलता है। जिस समय यह सर्वे हुआ उस समय भारत की जनसंख्या लगभग बीस करोड़ थी, सन 1868  में इंग्लैंड में सामान्य बच्चों को पढ़ाने के लिए एक भी स्कूल नही था। हमारी शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों से बहुत अधिक ऊंची थी। लिटनेस कहता है कि संपूर्ण भारतवर्ष में साक्षरता प्रतिशत 97 प्रतिशत थी। शिक्षा सर्वे में भारत की साक्षरता दर 54 प्रतिशत आज पाई गयी। सारे भारत में गुरूकुल साधारण लोगों के दान से चलते थे।  एक अंग्रेज अधिकारी पेंडर गा कहता है कि जब कोई बच्चा भारत में 5 साल 5 महीने 5 दिन का हो जाता है बस उसी दिन उसका गुरूकुल में प्रवेश हो जाता है। चौदह साल की शिक्षा प्राप्त कर ही वह गुरूकुल से निकलता है। पेंडर गा कहता है कि भारत में शिक्षा गरीब व अमीर सबके लिए समान है। अंग्रेजों के आने से पहले भारत में शिक्षा अदभुत रही है।

भारत की कृषि कैसी रही है हमारे अतीत की कृषि व्यवस्था में जिन अंग्रेजी ने बहुत ज्यादा शोध किया है उनमें एक वेस्टर नाम के अंग्रेज ने यह कहा कि भारत में कृषि उत्पादन दुनिया में सर्वोच्च है। वह कहता है कि भारत में एक एकड़ में सामान्य रूप से 56 क्विंटल धान पैदा होता है। यह उत्पादन औसतन है। भारत के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां 45-50 क्विंटल पैदा होता है। कपास का उत्पादन भारत में सबसे ज्यादा है व फसलों की विविधता सबसे ज्यादा भारत में ही है। भारत में सन 1822 तक धान की लगभग एक लाख से भी ज्यादा प्रजाति थी। सन 2009 में भी धान की 50 हजार से अधिक प्रजाति है।

हल सबसे पहले भारत में बना और दुनिया ने भारत से हल बनाना व खेत जोतना सीखा। यह भारत को सारी दुनिया का सबसे बड़ा योगदान है। बीज को एक पंक्ति में बोने की परंपरा हजारों साल पहले भारत में विकसित हुई थी।  दूसरे देशों ने तो इसकी कल्पना भी नही की थी। इंग्लैंड के अंग्रेजों ने सबसे पहले 1750 में भारत आकर खेती सीखी और यहां से जाकर इंग्लैंड में खेती पर कुछ  प्रयोग किये जिससे उनकी खेती का काम आगे बढ़ा। इससे पहले इंग्लैंड व यूरोप में खेती इतनी अच्छी नही थी। वो लोग जंगल के फल व मांस पर जीवन यापन करते थे। उस समय भारत में लगभग एक लाख किस्म के चावल पैदा होते थे। इस तरह से भारत ने हजारों सालों से लोहा, चावल, कपड़ा और अन्य चीजें दुनिया को निर्यात किया है। इसके बदले में भारत को दुनिया से हीरे जवाहरात, सोना, चांदी, पन्ना मिलते रहे हैं। भारत में कृषि उद्योग उत्पादन में औद्योगिक उत्पादन में तथा व्यापार में सर्वोच्चता हासिल की है। इन सबका आधार था शिक्षा व्यवस्था। अगर शिक्षा व्यवस्था अच्छी नही होती तो भारत शायद कोई भी अच्छा काम नही कर पाता। किसी भी देश की तरक्की का पैमाना हम नापते हैं तो दो ही चीजों से यह अनुमान लगाया जा सकता है इस देश का विकास कितना  हुआ है? -पहला स्वास्थ्य और दूसरा चिकित्सा। भारत का स्वास्थ्य दुनिया में सबसे अदभुत रहा है जो किसी देश में नही रहा। चिकित्सा विज्ञान में हजारों किस्म के आयुर्वेद की जड़ी बूटियां और सर्जरी की सारी की सारी विद्या पूरी दुनिया को यही से गयी है।

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