रमेश ठाकुर
रहस्यमयी बाल बीमारी ने हमारी नाकामी की एक ऐसी तस्वीर उजागर की है, जिसकी भरपाई हम सालों पहले कर सकते थे। भारत में शिशु अस्पतालों और बाल-चिकित्सकों की भारी कमी है, जिसका खमियाजा नौनिहाल अपने असमय मौत से चुका रहे हैं। कुदरत मानव पर पीड़ाओं का दौर किस्तों में दे रहा है। कोरोना संकट हो, कुदरती आपदाएं हों और अब रहस्यमयी बुखार ने समूचे उत्तर प्रदेश में हाहाकार मचाया हुआ है। अगस्त-सितंबर के ये दो महीने ऐसे होते हैं जो नौनिहालों पर कहर बनकर टूटते हैं, बीमारियों के लिहाज से मुसीबतों से भरे होते हैं। गोरखपुर में हो या मुजफ्फरपुर में बेमौत मरने वाले बच्चों का मामला, एकाध दशक से चलन कुछ ऐसा चल पड़ा है कि इन्हीं दिनों में बच्चों को अंजानी बीमारियां घेरती हैं। बीते दो सप्ताह से उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में रहस्यमय बुखार ने तांडव मचा रखा है, जिसने सैकड़ों बच्चों को अपनी चपेट में लिया हुआ है। इस अबूझ बीमारी को थामने में सभी प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। चिकित्सकों द्वारा बीमारी पर नियंत्रण नहीं पाने से एक तस्वीर उभरकर सामने आई है कि हिंदुस्तान में अब भी शीशु अस्पताल और बाल-चिकित्सकों की कितनी कमी है।
बहरहाल, इस घातक बीमारी से कुछ जिले तो बुरी तरीके से प्रभावित हैं। अकेले फिरोजाबाद में ही अस्सी से अधिक नौनिहाल मौत के काल में समा चुके हैं। घरों के आंगनों में किलकारियों की जगह मातम और चीखों की पुकारें ही सुनाई पड़ती हैं। ज्यादातर बच्चे स्वास्थ्य विभाग की अव्यवस्थाओं की भेंट चढ़ रहे हैं। हालांकि विभाग तात्कालिक कोशिशों में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहा है। बिगड़ती स्थिति को देखते हुए हुकूमत ने समूचे स्वास्थ्य अमले को अलर्ट कर दिया है। स्वास्थ्य विभाग की टीमें भी रहस्यमय बुखार से प्रभावित क्षेत्रों में तैनात हैं। लेकिन स्थिति फिर भी काबू से बाहर है। रहस्यमय बुखार से बच्चे अचानक बीमार पड़ रहे हैं। बुखार आने के कुछ ही समय में बच्चे तेज बुखार से तपने लगते हैं और देखते ही देखते अचेत हो रहे हैं। बीमारी के शुरुआती लक्षणों को चिकित्सक भी नहीं पकड़ पा रहे। वे जब तक किसी नतीजे पर पहुंचते हैं, बहुत देर हो जाती है।
ये तल्ख सच्चाई है कि आपातकालिक बीमारियों से निपटने के लिए हमारा स्वास्थ्य तंत्र आज भी उतना सशक्त नहीं, जितनी आवश्यकता है। जब अगस्त-सितंबर में ऐसी बीमारियों से बच्चे प्रभावित होते हैं, तो पूर्व में तैयारियां कर लेनी चाहिए, लेकिन शायद हम घटनाओं के घटने का ही इंतजार करते हैं। बच्चों में वायरल, बुखार, निमोनिया, चेचक, पेचिस, दिमागी बुखार, अन्य मौसमी संक्रमण आदि रोग इन्हीं बरसाती दिनों में ज्यादा मुंह फाड़ते हैं, बावजूद इसके हमारा स्वास्थ्य विभाग पूर्व की तैयारियों में विश्वास नहीं करता। हालात ऐसे हैं कि बच्चों को उपचार नहीं मिल पा रहा। मथुरा, बरेली, बस्ती, आगरा व सबसे ज्यादा प्रभावित जिला फिरोजाबाद के सरकारी अस्पतालों का हाल अब भी रामभरोसे है।
दरअसल, ये व्यवस्था बताती है कि तुरंत आने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने को हमारी तैयारियां कैसी हैं। उत्तर प्रदेश शासन ने सूबे के सभी सीएमओ और अस्पताल कर्मियों को ऐसी आपात स्थिति में लापरवाही नहीं बरतने का निर्देश दिया हुआ है। लेकिन अस्पतालों का आलम जस का तस है। आपात स्थिति में स्वास्थ्यकर्मी भी हाथ खड़े कर देते हैं। बहरहाल, अंदेशा कोरोना की तीसरी लहर का था, लेकिन उससे पहले इस अंजानी बीमारी ने आकर कहर बरपा दिया। कोरोना की संभावित तीसरी लहर को लेकर सरकारों का दावा था कि उनकी तैयारी जबरदस्त है। सच्चाई ये है कि प्रभावित जिलों में बच्चों के लिए अस्पतालों में अतिरिक्त बिस्तरों की व्यवस्था उसी वक्त की गई।
हालात देखकर मुख्यमंत्री अपने दूसरे कामों को छोड़कर सिर्फ स्वास्थ्य तंत्र पर नजर बनाए हुए हैं। दरअसल बच्चों का दर्द किसी को भी बेहाल कर देता है। बच्चों से संबंधित जिस तरह से घटनाएं बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए केंद्र व राज्य सरकारों को बाल-चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। अस्पतालों में बाल स्वास्थ्य से संबंधित संसाधनों को बढ़ाना चाहिए, शीशु रोग अस्पतालों, बाल-चिकित्सकों और विशेषज्ञों की अतिरिक्त तैनाती पर ध्यान देना होगा।