–आर्य धामावाला, देहरादून का रविवारीय सत्सग– “उपासक समाधि से प्राप्त सुख को पाकर फूला नहीं समाताः शैलेशमुनि सत्यार्थी”
ओ३म्
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आज रविवार दिनांक 5-9-2021 को हम आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के रविवारीय सत्संग में सम्मिलित हुए। हमने समाज में सम्पन्न अग्निहोत्र में भाग लिया। आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी यजमान के आसन पर उपस्थित होकर यज्ञाग्नि में साकल्य से आहुतियां दे रहे थे। यज्ञ आर्यसमाज के विद्वान पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी ने कराया। यज्ञ वेदी पर उपस्थित लोगों ने यज्ञ की पवित्र अग्नि में घृत व सामग्री से आहुतियां दीं। यज्ञ के बाद सत्संग का कार्यक्रम आर्यसमाज के भव्य सत्संग भवन में हुआ। सत्संग के आरम्भ ने स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम की तीन कन्याओं ने एक भजन प्रस्तुत किया। भजन के बोल थे ‘आओ मिल के विचार करें, पहले हम आप सुधरें फिर सबका सुधार करें।। ….. बचे पाप की कमाई से, सदा शुभ कर्म करें रहें दूर बुराईयों से।।’ इस भजन के बाद आर्यसमाज के विद्वान पुरोहित श्री विद्यापति शास्त्री जी ने, जो स्वयं एक सुमधुर भजन गायक भी हैं, आर्यकवि प्रकाश आर्य जी का एक लोकप्रिय प्रसिद्ध भजन प्रस्तुत किया। भजन के बोल थे ‘‘हे प्रभु परम पिता तुम गुणों की खान हो, तुम अनादि तुम अनन्त पूर्ण तुम महान हो।” आज के सत्संग में आर्यसमाज के सक्रिय उत्साही कार्यकर्ता श्री यशवीर आर्य भी पधारे थे। उन्होंने भी एक भजन प्रस्तुत किया जो वह अपने बचपन में अपने अभिभावकों के साथ आर्यसमाज के सत्संगों में सुनते थे। उनके भजन के बोल थे ‘वेदों का डंका आलम में बजवा दिया ऋषि दयानन्द ने, हर जगह ओम् का झण्डा फिर फहरा दिया ऋषि दयानन्द ने।’
श्री यशवीर आर्य जी के भजन के बाद सामूहिक प्रार्थना हुई जिसे स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम, देहरादून के छात्र श्री रजत ने प्रस्तुत किया। बालक रजत ने पहले गायत्री मन्त्र का पाठ किया तथा उसके बाद उसका पद्यानुवाद गाकर प्रस्तुत किया। इसके बाद उन्होंने प्रसिद्ध मन्त्र ‘विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव’ व उसके हिन्दी अर्थ का पाठ किया। प्रार्थना में अनेक बातों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि परमात्मा हमारे सभी दुर्गुणों को दूर कर दें तथा सभी अच्छे गुणों को हमें प्राप्त कराये। हम अविद्या को दूर कर विद्या रूपी प्रकाश की ओर बढ़ें। सामूहिक प्रार्थना के बाद आर्यसमाज के पुरोहित जी ने सत्यार्थप्रकाश के चतुर्दश समुल्लास का पाठ किया। इस पाठ में उन्होंने ऋषि दयानन्द जी के ईश्वर की सर्वज्ञता विषयक वचनों को प्रस्तुत कर उस पर प्रकाश डाला।
समाज मन्दिर में मुख्य उपदेश आर्यसमाज के शीर्ष विद्वान श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी, हरिद्वार का हुआ। उन्होंने सत्संग में पूर्व प्रस्तुत भजन ‘आओ मिलकर विचार करें’ की चर्चा की और कहा कि यह भजन सार्थक भजन है। उन्होंने कहा कि हम दूसरों की आलोचना करते हैं परन्तु अपने आचरण व व्यवहारों पर ध्यान नहीं देते हैं। हमें पहले अपना सुधार करना चाहिये और उसके बाद दूसरों का भी सुधार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि ईश्वर का ध्यान व सन्ध्या करनी उस व्यक्ति की सार्थक होती है जो सबको अपना मित्रवत् समझ कर व्यवहार करता है। श्री शैलेश मुनि जी ने सन्ध्या के समर्पण मन्त्र की भी चर्चा की। उन्होंने इस मन्त्र का हिन्दी अर्थ श्रोताओं को हृदयंगम कराया। उन्होंने कहा कि हम सन्ध्या धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिए करते हैं। ईश्वर को विद्वान वक्ता ने दयालु बताया। उन्होंने कहा कि ईश्वर की दया हम सब पर समान रूप से है। ईश्वर ने बिना मांगे ही हमें बहुत कुछ दिया है। परमात्मा ने हमारे बिना मांगे ही हमें शरीर आदि अनेक पदार्थ दिये हैं। उसने हमें सबसे अधिक महत्वपूर्व प्राण दिए हैं। उन्होंने कहा कि प्रभु हमारे जीवन को चलाने के लिए सूर्य को बनाता है। सूर्य पृथिवी से लाखों गुणा बड़ा है। हमारा शरीर, हमारे चक्षु, सूर्य, वायु, पृथिवी, ग्रह तथा उपग्रह आदि उसी ने बनाये है। परमात्मा ने हमारे प्राणों की रक्षा तथा सुरक्षा के लिए सभी पदार्थ बनाये हैं। परमात्मा ने ही हमें सब सुख प्रदान किये हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा ने हमारे जन्म से पहले से ही सब सुख प्रदान करने वाले पदार्थों को बनाकर उपलब्ध करा रखा है। परमात्मा को उन्होंने सबका रक्षक अर्थात् सर्व-रक्षक बताया। उन्होंने कहा कि हमें उन सभी लोगों का धन्यवाद करना चाहिये जो हम पर कुछ भी छोटा या बड़ा उपकार करते हैं। इसी प्रकार हमें जल, वायु, सूर्य, चन्द्र बनाने तथा प्राणों को देने वाले परम उपकारक परमात्मा का भी धन्यवाद करना चाहिये।
आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि हमें प्रातःकाल उठकर पांच प्रार्थना मन्त्रों का अर्थों सहित पाठ करना चाहिये। परमात्मा एकदेशी नहीं अपितु सर्वव्यापक हैं। उसके यथार्थस्वरूप को जानकर तथा अपने कर्तव्यों का पालन कर हमें बन्धनों से मुक्त होना चाहिये। आचार्य सत्यार्थी जी ने महाभारत अन्तर्गत यक्ष और युधिष्ठिर के प्रसिद्ध संवाद को भी प्रस्तुत किया। यक्ष का प्रश्न था कि पाप क्या है? इसका उत्तर युधिष्ठिर जी ने दिया था कि अपने पर दूसरों द्वारा किये गये उपकारों को न मानना ही पाप होता है। श्री शैलेश मुनि जी ने कहा कि परमात्मा दया के भण्डार हैं। हमें उनका धन्यवाद करना चाहिये। सत्यार्थी जी ने कहा कि लोग ईश्वर की उपासना तो करते हैं परन्तु उन्हें उपासना से होने वाली सिद्धियां प्राप्त नहीं होतीं। विद्वान वक्ता ने इस विषय के अपने अनुभवों को श्रोताओं को बताया। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग क्रोध को साथ में लेकर घूमते हैं। हमें क्रोध को छोड़ना चाहिये। हमें कभी किसी से द्वेष नहीं करना चाहिये।
पं. शैलेशमुनि सत्यार्थी जी ने ईश्वर का ध्यान करने की चर्चा कर उस पर प्रकाश डाला। इस संदर्भ में उन्होंने ऋषि दयानन्द जी की योग व ध्यान समाधि की चर्चा भी की। उन्होंने ऋषि दयानन्द जी और स्वामी श्रद्धानन्द जी के मध्य संवाद की भी चर्चा की। इसके बाद आचार्य सत्यार्थी जी ने स्वामी सर्वदानन्द जी द्वारा चार से पांच घंटे समाधि लगाने की चर्चा की। स्वामी सर्वदानन्द जी ने पूछने पर बताया था कि समाधि का आनन्द अवर्णनीय है। उसे शब्दों वा भाषा में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि ईश्वर का ध्यान करते हुए जब उपासक व साधक की समाधि लगती है तो उसे जो सुख प्राप्त होता है उसे पाकर वह फूला नहीं समाता। विद्वान वक्ता ने कहा कि जीवन में नाना प्रकार के साध्य एवं असाध्य रोगों से बचने के लिए मनुष्य को प्रातः व सायं परमात्मा का ध्यान करना चाहिये एवं स्वास्थ्य के नियमों का पालन करते हुए वैदिक जीवन व्यतीत करना चाहिये।
आचार्य सत्यार्थी जी ने कहा कि भक्त अमीचन्द आर्यसमाज के प्रथम भजनोपदेशक थे। सत्यार्थी जी ने ऋषि दयानन्द के अविभाजित भारत के झेलम नगर में उन सत्संगों का उल्लेख किया जिसमें भक्त अमीचन्द जी प्रथम बार उपस्थित हुए थे। प्रसंगों का विश्लेषण कर विद्वान वक्ता ने कहा कि दूसरों को अवसर प्रदान करने पर शुभ परिणाम निकलते हैं। सत्यार्थी जी ने कहा कि ऋषि दयानन्द ने अमीचन्द को कहा था कि तुम हो तो हीरे परन्तु कीचड़ में पड़े हुए हो। ऋषि के इन शब्दों को सुन व विचार कर तथा अपना आचरण सुधार करने पर अमीचन्द का जीवन सुधर गया था। सत्यार्थी जी ने महात्मा मुंशीराम जी के जीवन के सुधार की भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने स्वामी श्रद्धानन्द जी की आत्मकथा से कुछ प्रेरक प्रसंग भी प्रस्तुत किए। उन्होंने स्वामी जी के मांसाहार से युक्त जीवन के बदलने का प्रसंग भी प्रस्तुत कर कहा कि महात्मा मुंशीराम जी ने मांसाहार का सर्वथा त्याग कर दिया था। उन्होंने कहा कि हमें वैदिक साहित्य का स्वाध्याय कर सत्य का ग्रहण करते हुए अपने जीवन से सभी बुराईयों को दूर करना चाहिये। सत्यार्थी जी ने कहा कि मनुष्य को प्रतिदिन ईश्वर के नाम व गायत्री मन्त्र आदि का जप करते हुए उनके अर्थों पर भी विचार करना चाहिये। उन्होंने कहा कि हमें सर्वदा शुभ कर्म ही करने चाहिये। ऐसा होने पर ही दूसरे लोग हमें देखकर हमारा अनुकरण करेंगे। विद्वान वक्ता ने यह भी कहा कि संसार में सुख के पदार्थों वा भोगों से मनुष्य की तृप्ति कभी नहीं होती। मनुष्य की तृप्ति परमात्मा की उपासना तथा उपासना की सफलता पर समाधि में प्राप्त सुख प्राप्ति से होती है। उन्होंने एक प्रसंग में यह भी कहा के पत्नी वह होती है जो अपने पति को पतित होने से रोकती व बचाती है।
श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने कहा कि धन का त्याग करने व धन का दान देने से मनुष्य को समाज में सम्मान मिलता है। उन्होंने श्रोताओं को बताया कि श्री कृष्ण जी बचपन में गोपालन जैसा साधारण काम किया करते थे। अपने पुरुषार्थ तथा श्रेष्ठ स्वभाव से उन्होंने जीवन की सफलता व उसकी पराकाष्ठा को प्राप्त किया था। पुरुषार्थ एवं वैदिक मार्ग का अनुकरण व अनुसरण ही जीवन की सफलता का मन्त्र है। उन्होंने कहा कि परमात्मा ही वस्तुतः हमारा आदर्श आचार्य, गुरु, राजा व न्यायाधीश है। वही ध्यान आदि के द्वारा उपासना करने के योग्य है। सत्यार्थी जी ने कहा कि परमात्मा ही हमारा आदर्श आचार्य है। परमात्मा के अनुरूप आचरण एवं व्यवहार करना हमारा कर्तव्य एवं धर्म है। उन्होंने अपने उपदेश को समाप्त करने हुए सबको ईश्वर की उपासना करने की प्रेरणा की।
आर्यसमाज के मंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने आर्य विद्वान श्री शैलेशमुनि सत्यार्थी जी का विद्वतापूर्ण उपदेश करने के लिए धन्यवाद किया। इसके बाद आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने सूचनायें दी। उन्होंने सब श्रोताओं को कोराना के नियमों का पालन करने तथा आर्यसमाज के सत्संगों व कार्यक्रमों में आते रहने की प्रेरणा की। उन्होंने बताया कि आगामी रविावर को आर्यसमाज में एक शिविर लगाया जा रहा है जिसमें आर्य नेता श्री विनय आर्य एवं डा. विनय विद्यालंकार पधारेंगे। उन्होंने सभी आर्य बन्धुओं से शिविर में भाग लेने की प्रार्थना की। प्रधान जी ने 1 से 3 अक्टूबर, 2021 को वेद प्रचार आयोजन की जानकारी भी दी और सदस्यों से कार्यक्रम को सफल बनाने का अनुरोध किया। अन्त में आर्यसमाज की एक वरिष्ठ सदस्या श्रीमती कमला नेगी जी के पति के देहावसान पर दिवंगत आत्मा को श्रद्धांजलि देते हुए मौन रखकर प्रार्थना की गई। शान्तिपाठ के साथ सत्संग समाप्त हुआ। आज के सत्संग में आर्यसमाज के सदस्यों की अच्छी उपस्थिति थी। प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य